पचास साल पहले 25 जून को इंदिरा गांधी द्वारा लाया गया आपातकाल अब होगा ‘संविधान हत्या दिवस’


भाजपा सरकार के शीर्ष नेताओं ने आपातकाल के बहाने कांग्रेस पर तीखा हमला बोला है, हालांकि संघ नेताओं के आपातकाल के दौरान इंदिरा सरकार को सर्मथन देने की बातें भी रिकार्ड में रहीं हैं।


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बड़ी बात Updated On :

केंद्र सरकार ने तय किया है कि पचास साल पहले आपातकाल लागू होने वाले दिन 25 जून का दिन संविधान हत्या दिवस के तौर पर मनाया जाएगा। इसके लिए सरकार ने एक राजपत्र भी जारी किया है। इसे लेकर भाजपा लगातार कांग्रेस पर हमला बोल रही है और अब भाजपा सरकार का यह दांव कांग्रेस को परेशानी में धकेल रहा है। कांग्रेस, जिन्होंने हालही में हुए आम चुनावों के दौरान भाजपा को संविधान के लिए खतरा बताया था। भाजपा, इसे अपना बड़ा कदम मान रही है वहीं कांग्रेस फिलहाल बैकफुट पर दिखाई दे रही है। हालांकि कांग्रेस के कई पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरागांधी के द्वारा लगाए गए आपातकाल को गलत बताते आए हैं। इनमें पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और मौजूदा नेता विपक्ष राहुल गांधी तक शामिल हैं वहीं एक तथ्य यह भी है कि भाजपा की मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेताओं ने आपातकाल का सर्मथन भी किया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपातकाल को कांग्रेस द्वारा लाया गया काला दौर बताते हुए कहा है कि हर साल 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय इस बात की याद दिलाएगा कि जब भारत के संविधान को कुचल दिया गया था, तब क्या हुआ था। उन्होंने इसे आपातकाल की ज्यादतियों के कारण पीड़ित हुए हर व्यक्ति को श्रद्धांजलि देने का दिन भी बताया।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने एक्स पर लिखा, “25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाना इस बात की याद दिलाएगा कि क्या हुआ था जब भारत के संविधान को कुचल दिया गया था। यह दिन हर उस व्यक्ति को श्रद्धांजलि देने का भी है, जो आपातकाल की ज्यादतियों के कारण पीड़ित हुए थे।”

प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा, “25 जून को #SamvidhaanHatyaDiwas देशवासियों को याद दिलाएगा कि संविधान के कुचले जाने के बाद देश को किस तरह की परिस्थितियों से गुजरना पड़ा था। यह दिन उन सभी लोगों को नमन करने का भी है, जिन्होंने आपातकाल की घोर पीड़ा झेली।”

अमित शाह का बयान

इससे पहले, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हर साल 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाने के निर्णय से जुड़े सरकार के राजपत्र की कॉपी को एक्स पर शेयर करते हुए बताया, “25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी तानाशाही मानसिकता को दर्शाते हुए देश में आपातकाल लगाकर भारतीय लोकतंत्र की आत्मा का गला घोंट दिया था। लाखों लोगों को अकारण जेल में डाल दिया गया और मीडिया की आवाज को दबा दिया गया। भारत सरकार ने हर साल 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय किया है। यह दिन उन सभी लोगों के विराट योगदान का स्मरण कराएगा, जिन्होंने 1975 के आपातकाल के अमानवीय दर्द को झेला था।”

 संघर्ष का सम्मान

अमित शाह ने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार द्वारा लिए गए इस निर्णय का उद्देश्य उन लाखों लोगों के संघर्ष का सम्मान करना है, जिन्होंने तानाशाही सरकार की असंख्य यातनाओं व उत्पीड़न का सामना करने के बावजूद लोकतंत्र को पुनर्जीवित करने के लिए संघर्ष किया। ‘संविधान हत्या दिवस’ हर भारतीय के अंदर लोकतंत्र की रक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की अमर ज्योति को जीवित रखने का काम करेगा, ताकि कांग्रेस जैसी कोई भी तानाशाही मानसिकता भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न कर पाए। इस प्रकार, 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाकर हम उन सभी को याद करेंगे जिन्होंने आपातकाल की कठिनाइयों का सामना किया और लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष किया।”

आपातकाल में संघ का साथ

आपातकाल के दौरान राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के कई नेता इंदिरा गांधी के प्रशंसक दिखाई दे रहे थे। इनमें तत्कालीन संघ प्रमुख बाला साहेब देवरस भी थे। जिन्होंने आरएसएस को आपातकाल के विरोध में चल रहे आंदोलन से अलग बताया। हालांकि इस दौरान संघ के बहुत से दूसरे नेता खुलकर का आपातकाल का विरोध कर रहे थे। देवरस की किताब “हिंदू संगठन और सत्तावादी राजनीति” में उल्लेखित है कि आपातकाल के दौरान, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख, एमएस देवरस, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलने के इच्छुक थे। यह इच्छा उनके जेल जाने के बाद लिखे गए कई पत्रों में परिलक्षित होती है। देवसर का सर्मथन उस समय इंदिरा के पक्ष में दिखाई दे रहा था जब वे आरएसएस पर प्रतिबंध लगा चुकी थीं।

22 अगस्त 1975 को यरवदा जेल पहुंचने के लगभग दो महीने बाद लिखे गए अपने पहले पत्र में, देवरस ने इंदिरा गांधी के 15 अगस्त 1975 के लाल किले से राष्ट्र को दिए गए भाषण की सराहना करते हुए, उस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की।

उन्होंने लिखा, “आपका भाषण समयोचित और संतुलित था। इसी प्रेरणा से मैंने आपको यह पत्र लिखने का निर्णय लिया।” पत्र में आगे, देवरस ने संघ की क्षमताओं और राष्ट्रीय उत्थान में योगदान करने की उसकी इच्छा पर प्रकाश डाला।

उन्होंने लिखा, “आपने अपने 15 अगस्त के भाषण में पूरे समाज का जो आह्वान किया था वह अत्यंत महत्वपूर्ण है। आरएसएस का कार्य देशभर में फैला हुआ है। इसमें समाज के सभी वर्गों और स्तरों के लोग शामिल हैं। संघ में अनेक त्यागी कार्यकर्ता हैं जो निस्वार्थ भाव से कार्य करते हैं। देश के उत्थान के लिए योजनाबद्ध तरीके से संघ की शक्ति का उपयोग किया जाना चाहिए।” अंत में, संघ पर लगे प्रतिबंध को हटाने का अनुरोध करते हुए देवरस ने लिखा, “यदि आपको उचित लगे तो मैं आपसे मिलकर बात करना चाहूंगा।” इस प्रकार, देवरस ने इंदिरा गांधी को एक राष्ट्रवादी संगठन के रूप में संघ की क्षमताओं का उपयोग करने और देशहित में काम करने का प्रस्ताव दिया। उन्होंने आपातकाल के दौरान संघ पर लगाए गए प्रतिबंध को हटाने की भी अपील की। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह देवरस के पत्रों का केवल एक संक्षिप्त सारांश है।

 



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