अंगद के पैर से भी मजबूत इनकी कुर्सी, सालों से जमे बाबू और कर्मचारियों का नहीं आता है ट्रांसफर में नंबर


मानसून से पहले तबादले का मौसम, कुछ नेतानगरी से जुड़े तो कुछ दिखाते हैं ऊपर तक की पहुंच, प्रशासन से लेकर पुलिस तक में नहीं बदली तस्‍वीरें।


आशीष यादव आशीष यादव
घर की बात Published On :
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धार। मध्‍यप्रदेश में इस बार मानसून की बारिश से पहले तबादलों का मौसम आ गया है। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तबादलों से रोक हटा दी है और तबादला नीति के तहत 30 जून तक सभी विभागों से आवेदन बुलवाए गए हैं।

तबादलों से प्रतिबंध हटने के बाद अब सभी विभाग अपने-अपने विभागीय अधिकारी व कर्मचारियों की ट्रांसफर सूची बनाने में जुटे हुए हैं। प्रशासन से लेकर पुलिस विभाग तक में ट्रांसफर सूची तैयार हो रही है। प्रभारी मंत्री की सहमति के बाद यह ट्रांसफर सूची जारी कर दी जाएगी जिसके लिए 30 जून की डेटलाइन तय की गई है।

चुनाव के साथ जमावट भी जरूरी –

मध्‍यप्रदेश में साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके पहले हर नेता अपने-अपने हिसाब से अधिकारी-कर्मचारियों की जमावट चाहता है। इस कारण जनप्रतिनिधि से लेकर राजनीति से जुड़े हर पदाधिकारी इन दिनों ट्रांसफर सूची में खासी दिलचस्‍पी लेते दिख रहे हैं।

हर कोई अपने-अपने हिसाब से सरकारी अधिकारी और कर्मचारी की नियुक्ति चाहता है इसलिए अपने-अपने आकाओं के पास बैठकर सूची तैयार करवा रहा है, लेकिन इन सबके बीच उन मठाधीशों का भी ट्रांसफर करना जरूरी है, जो लंबे समय से प्रशासनिक गलियारों में अपना सिक्‍का चलाते आए हैं।

ये वे हैं जो अफसर नहीं हैं, लेकिन इनके बगैर अफसर किसी काम को अंजाम नहीं देते हैं। इन्‍हें सरकारी भाषा में बाबू कहा जाता है।

35 से अधिक विभाग में दो हजार से ज्यादा कर्मचारी जमे बैठे हैं –

कलेक्‍टर कार्यालय से लेकर एसडीएम, तहसील, खाद्य, एडीएम, आरटीओ, जनपद पंचायत, सिविल सर्जन, खनिज विभाग, सीएमएचओ, आरईएस, पीडब्ल्यूडी, पीएचई महिला एवं बाल विकास, शिक्षा विभाग, पीआईयू, औघोगिक विभाग, पुरातत्व विभाग, कृषि विभाग, वन विभाग, नगरपालिका, मंडी, सहकारिता, जनजातीय कार्य विभाग सहित आबकारी और जिला पंजीयन विभाग में ऐसे अधिकारी और कर्मचारी हैं, जिन्‍हें तबादला नीति के उलट तीन साल से अधिक वक्‍त हो चुका है।

इसके बाद भी ये लोग अपनी-अपनी सेटिंग लगाकर अपनी कुर्सी बचाने में अब तक सफल ही रहे हैं। इतना ही नहीं पुलिस विभाग भी इससे अछूता नहीं है। फिर वह एसपी ऑफिस हो, सीएसपी धार ऑफिस हो या कोतवाली व नौगांव थाना हो या अन्य थाने, इनमें पदस्‍थ थानेदार और बड़े अधिकारी तो आते-जाते रहते हैं, लेकिन थाने में काम करने वाला स्‍टाफ वही रहता है।

इन कर्मचारियों के ठाठ किसी धन्ना सेठ से कम नहीं हैं। कहने को तो यह पुलिस कर्मचारी हैं, लेकिन इनकी प्रॉपर्टी की जांच की जाए तो करोड़ों के आसामी निकलेंगे। कई कर्मचारी तो आज सरकारी नौकरी के साथ-साथ ठेकेदारी में भी अपना हाथ आजमा रहे हैं।

अगर इनकी जांच जमीनी स्तर पर की जाए तो प्रशासनिक कर्मचारी हो या पुलिस कर्मचारी दोनों ही विभाग के कर्मचारी अपनी ऊपरी कमाई से अपने आने वाली पीढ़ियों का भला करने में लगे हैं।

इन कर्मचारियों की मर्जी के बिना नहीं हिलता एक कागज –

इन अधिकारी-कर्मचारी का एक ही विभाग और स्‍थान से लगाव यह दर्शाता है कि विभाग में इनकी पकड़ कितनी मजबूत है। खासतौर पर प्रशासन और पुलिस के बाबूओं की मर्जी से ही अधिकारी सारे कामकाज को अंजाम देते हैं।

इन्‍हीं से पहले आवेदनकर्ता और आम व्‍यक्ति का संपर्क होता है और इन्‍हीं की मर्जी से कागज आगे बढ़ते हैं और मर्जी के बगैर कागज बाबू की टेबल पर ही रूक जाते हैं।

स्‍वच्‍छ और पारदर्शी व्‍यवस्‍था देने के लिए जरूरी है कि इस तबादला नीति में उन अधिकारी व कर्मचारियों को भी शामिल किया जाए जो अब तक विभागों को अपने-अपने हिसाब से चलाते आए हैं।



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