मनरेगा से 39 लाख मजदूरों को हटाया गया: NGO रिपोर्ट का खुलासा


नई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि पिछले पांच महीनों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (मनरेगा) से 39 लाख से अधिक मजदूरों को हटाया गया है। आधार लिंक न होने के कारण 6.7 करोड़ मजदूर अब रोजगार के लिए पात्र नहीं हैं। राज्यों में ABPS अनुपालन में भी भारी असमानताएं देखी गईं, जिससे रोजगार के अवसरों में कमी आई है।


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महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में आधार आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) लागू होने के बाद से ही देश भर में लाखों मजदूरों को रोजगार से वंचित होना पड़ा है। लिबटेक इंडिया और NREGA संघर्ष मोर्चा द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट (MGNREGA रिपोर्ट 2024) में यह खुलासा हुआ है कि अप्रैल से सितंबर 2024 के बीच 39 लाख से अधिक मजदूरों के नाम मनरेगा सूची से हटा दिए गए। यह जानकारी ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट से जुटाए गए आंकड़ों पर आधारित है।

 

आधार आधारित प्रणाली और मजदूरों की अयोग्यता

जनवरी 2024 में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने एबीपीएस को अनिवार्य कर दिया था, जिसके अनुसार मजदूरों के आधार कार्ड का उनके जॉब कार्ड और बैंक खाते से जुड़ा होना आवश्यक है। इसके बावजूद, कई मजदूरों की आधार जानकारी या तो अधूरी है या उनके जॉब कार्ड से मेल नहीं खाती है, जिसके कारण वे इस प्रणाली के तहत रोजगार पाने के लिए अयोग्य हो गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 6.7 करोड़ मजदूर इस कारण मनरेगा के तहत कार्य से वंचित हो गए हैं। इस पर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एबीपीएस पर तुरंत रोक लगाने की मांग की है और इसे “विनाशकारी नीति” बताया है।

 

रोजगार अवसरों में 16.6% की कमी

पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में इस वर्ष मनरेगा के तहत रोजगार अवसरों में 16.6% की गिरावट आई है। पिछले वर्ष 184 करोड़ व्यक्ति-दिवस रोजगार सृजित हुआ था, जो इस वर्ष घटकर 154 करोड़ व्यक्ति-दिवस रह गया। तमिलनाडु और ओडिशा में रोजगार के अवसरों में सबसे अधिक गिरावट देखी गई है, जबकि महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश में रोजगार के दिन बढ़े हैं। यह गिरावट उन लाखों ग्रामीण परिवारों के लिए चिंता का विषय है जो मनरेगा पर अपनी आजीविका के लिए निर्भर हैं।

 

राज्यों के स्तर पर असमानता

आधार आधारित भुगतान प्रणाली में अनुपालन के स्तर पर राज्यों के बीच बड़ा अंतर देखा गया है। असम में सबसे अधिक सक्रिय मजदूर एबीपीएस के लिए अयोग्य पाए गए हैं, जबकि केरल में सबसे कम संख्या है। महाराष्ट्र में 66.3% पंजीकृत मजदूर और असम में 22% सक्रिय मजदूर एबीपीएस का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि एबीपीएस अयोग्य मजदूरों को भी रोजगार से वंचित न किया जाए, लेकिन जमीनी स्तर पर समस्याएँ अब भी बनी हुई हैं।

 

काम के अधिकार पर संकट और बजट में कटौती

मनरेगा संघर्ष मोर्चा के निखिल डे का कहना है कि इस वर्ष रोजगार की मांग में कोई कमी नहीं आई है, बल्कि प्रशासनिक दिक्कतों और एबीपीएस की वजह से मजदूरों को कार्य मिलने में बाधाएँ आ रही हैं। गलत तरीके से हटाए गए मजदूरों को पुनः जोड़ने की मांग के बावजूद, केंद्र सरकार के बजट में भी कमी देखी गई है। 2023-24 में 60,000 करोड़ रुपये के बजट से बढ़कर 2024-25 में 86,000 करोड़ रुपये हुआ, लेकिन यह भी पर्याप्त साबित नहीं हो रहा है।

 

पश्चिम बंगाल में मनरेगा का निलंबन और कानूनी विवाद

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि दिसंबर 2021 से पश्चिम बंगाल में मनरेगा कार्य ठप हैं, और इस पर कोलकाता उच्च न्यायालय में मामला विचाराधीन है। इससे राज्य में लाखों मजदूर रोजगार से वंचित हैं और इस योजना की कार्यक्षमता पर भी सवाल उठ रहे हैं। रिपोर्ट में अपील की गई है कि इस विवाद को जल्द सुलझाकर मजदूरों को राहत प्रदान की जाए।

 

रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि आधार आधारित भुगतान प्रणाली के कारण लाखों मजदूर मनरेगा के तहत रोजगार से वंचित हो रहे हैं। इन गलत हटाओं के कारण ग्रामीण समुदायों में आर्थिक असुरक्षा बढ़ रही है। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए नीतिगत बदलाव और सुधार की आवश्यकता है ताकि गरीब और कमजोर वर्ग के मजदूरों को रोजगार के अवसर मिल सकें और योजना की प्रभावशीलता बरकरार रहे।

 



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