“भारत में धार्मिक आधार पर अत्याचार की घटनाएं नहीं हैं। जिस देश में हम रहते हैं विविधता में एकता है। जहां विविधता है…थोड़ा बहुत चलता रहता है।”
यह बयान राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष इकबाल सिंह लालपुरा ने 18 दिसंबर 2021 को दिया था।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष 18 दिसंबर को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस पर दिल्ली में यह दावा कर रहे थे, जबकि 17 दिसंबर को दिल्ली से सटे गुरुग्राम में शुक्रवार को अल्पसंख्यक समुदाय से ताअल्लुक रखने वाले मुसलमान जुमा की नमाज़ अदा न किये जाने से आहत होकर सवाल कर रहे थे कि “क्या ये हमारा मुल्क नहीं है?”
दरअस्ल गुरुग्राम में मस्जिद न होने की वजह से प्रशासन ने 37 स्थानों पर जुमा की नमाज़ अदा करने की अनुमति दी हुई थी, लेकिन पिछले दिनों हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा ‘खुले’ में नमाज़ का विरोध करने के कारण ज्यादतर स्थानों की अनुमति को रद्द कर दिया गया। जिसके बाद से हर शुक्रवार को हिंदुत्ववादी संगठनों और नमाज़ियो के बीच विवाद जारी है।
अल्पसंख्यक आयोग की चुप्पी
हरियाणा के गुरुग्राम में नमाज़ विवाद कोई एक दिन का नहीं है, बल्कि यह विवाद पिछले दो महीने से भी अधिक समय से जारी है। लेकिन अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिये बना राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग इस प्रकरण पर चुप्पी साधे हुए है।
10 दिसंबर को हरियाणा के ही रोहतक जिला स्थित एक चर्च में दक्षिणपंथी संगठनों की भीड़ ने धर्मांतरण का आरोप लगाकर एक चर्च पर धावा बोला। इस मामले में पुलिस ने धर्मांतरण के आरोपों को खारिज कर दिया। गुरुग्राम में नमाज़ प्रकरण पर खामोश रहने वाला अल्पसंख्यक आयोग रोहतक में ईसाई समुदाय के साथ घटी घटना पर भी खामोश रहा।
अक्टूबर महीने में त्रिपुरा में मुसलमानों के ख़िलाफ हिंसा हुई, यह हिंसा कई रोज़ जारी रही। जमीयत उलमा-ए-हिंद द्वारा जारी फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में बताया गया कि त्रिपुरा हिंसा में 16 मस्जिदों को नुक़सान पहुंचाया गया है, जिसमें से तीन मस्जिदों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया है।
इस घटना के ख़िलाफ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, सोशल एक्टिविस्टों, ने अपना विरोध दर्ज कराया। यहां तक कि अमेरिकी संस्था United States Commission on International Religious Freedom ने त्रिपुरा की घटना की निंदा की, लेकिन राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग इस घटना पर भी चुप रहा है।
हद तो तब हो गई, जब इस घटना का सोशल मीडिया पर विरोध करने वाले पत्रकारों, वकीलों, सोशल एक्टिविस्टों को त्रिपुरा पुलिस ने यूएपीए का नोटिस थमा दिया, पत्रकारों को यूएपीए का नोटिस दिये जाने का एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने विरोध किया, लेकिन राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग इस घटना पर भी चुप रहा है।
इन दिनों सोशल मीडिया पर हरिद्वार में दक्षिणपंथियों द्वारा लगने वाली “धर्म संसद” के वीडियो तैर रहे हैं। धर्म के नाम पर लगी इस “अधर्म संसद” में मुसलमानों के ख़िलाफ जमकर ज़हर उगला गया, मुसलमानों के जनसंहार का आह्वान किया गया।
इस घटना के ख़िलाफ विपक्ष बोला, सोशल एक्टिविस्टों ने तो इसका विरोध किया ही, इसके साथ ही अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी ने भी इसकी निंदा की। लेकिन राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग इस घटना पर भी चुप रहा है।
हाल ही में कर्नाटक की भाजपा सरकार धर्मांतरण रोकने के लिये एक बिल लेकर आई है। यह बिल गुरुवार को कर्नाटक विधानसभा में पारित हो गया, गुरुवार से लेकर अब तक कर्नाटक में ईसाई समुदाय को निशाना बनाए जाने की तीन घटनाएं सामने आ चुकी हैं। लेकिन राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग इन घटनाओं पर भी चुप है।
25 दिसंबर को मनाए जाने वाले ईसाई समुदाय के प्रमुख त्योहार क्रिसमस पर दक्षिणपंथियों संगठनों के लोगों ने देश भर में सात जगह बाधा पहुंचाई है। असम, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों में हिंदुत्ववादियों ने क्रिसमस के त्योहार में बाधा पहुंचाई है।
आगरा में क्रिसमस के मौक़े पर बजरंगदल के लोगों ने सेंटा क्लॉज का पुतला फूंका, गुरुग्राम में क्रिसमस के मौक़े पर यही हिंदुत्ववादी, ईसाई समुदाय की एक प्रार्थना सभा में घुस गए, वहां उन्होंने जय श्री राम के नारे लगाए। लेकिन अल्पसंख्यक आयोग ने चुप रहने की अपनी परंपरा को बरक़रार रखा।
क्यों बना अल्पसंख्यक आयोग
केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) की स्थापना की। छह धार्मिक समुदाय, अर्थात; मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन को पूरे भारत में केंद्र सरकार द्वारा भारत के राजपत्र में अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में अधिसूचित किया गया है।
भारत के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का मानना है कि वह 18 दिसंबर 1992 की संयुक्त राष्ट्र घोषणा का पालन करता है जिसमें कहा गया है कि “राज्य अपने संबंधित क्षेत्रों के भीतर अल्पसंख्यकों की राष्ट्रीय या जातीय, सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई पहचान के अस्तित्व की रक्षा करेंगे और उस पहचान को बढ़ावा देने के लिए शर्तों को प्रोत्साहित करेंगे।”
देश में सभी अल्पसंख्यक जनसंख्या का 18.80% हैं। कुल 130 करोड़ के लिहाज से यह 24.40 करोड़ इंसान और भारतीय नागरिक होते हैं। संख्या के लिहाज से यह दुनिया के तीसरे सबसे बड़े जनसंख्या वाले अमेरिका के बाद भारत के अल्पसंख्यक की गिनती होती है। यानी अमेरिका की जनसंख्या है 33 करोड़, भारत में 24.40 करोड़ अल्पसंख्यक रहते है जबकि चौथी सबसे बड़ी आबादी इंडोनेशिया की है जहां 27.35 करोड़ लोग रहते हैं।
इतनी बड़ी आबादी अगर इंसाफ़ की पुकार लगाए तो समझना चाहिए कि एक लोकतंत्र के रूप में हमें कितना सफ़र तय करना है। महिलाएं, बुजुर्गों, पिछड़े और अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार से ही किसी लोकतंत्र की सेहत मापी जा सकती है। भारत को बीमार होने से बचाना होगा।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, विचार व्यक्तिगत हैं)