मप्र में उपचुनाव के परिणाम सामने आ गए हैं। विजयपुर और बुधनी विधानसभा उपचुनाव ने राजनीति के दो अलग-अलग रंग पेश किए। श्योपुर जिले की विजयपुर सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की, तो सीहोर जिले की बुधनी सीट पर भाजपा ने अपनी पकड़ बरकरार रखी। दोनों चुनावों में स्थानीय मुद्दों से लेकर दलों की रणनीति तक सबकुछ चर्चा का विषय रहा। लेकिन जो सबसे अहम बात उभरकर सामने आई, वह थी जनता का संदेश, जो दोनों क्षेत्रों में बिल्कुल अलग रहा।
विजयपुर: कांग्रेस की जीत और भाजपा की हार
विजयपुर में कांग्रेस के मुकेश मल्होत्रा ने भाजपा के रामनिवास रावत को 7,000 से ज्यादा वोटों से हराकर सीट अपने नाम की। रामनिवास रावत, जो कांग्रेस से भाजपा में गए और प्रदेश सरकार में मंत्री बने, उन्हें इस कदम का भारी नुकसान उठाना पड़ा। शुरूआती गिनती में भाजपा बढ़त बनाए हुए थी, लेकिन 15वें राउंड के बाद हालात तेजी से बदले। कांग्रेस ने 3,500 से अधिक वोटों की बढ़त बना ली और 16वें व 17वें राउंड में यह बढ़त निर्णायक हो गई।
इस जीत का एक बड़ा कारण सहरिया समुदाय की एकजुटता भी रही, जो विजयपुर में प्रमुख भूमिका निभाता है। मुकेश मल्होत्रा, जो इसी समुदाय से आते हैं, ने इस बार कांग्रेस का टिकट पाकर मजबूत जनाधार तैयार किया। वहीं, रावत का दल बदलने का फैसला मतदाताओं को रास नहीं आया। कांग्रेस ने इस जीत को संविधान की रक्षा और कार्यकर्ताओं के संघर्ष का नतीजा बताया।
बुधनी: भाजपा का गढ़ बरकरार
दूसरी ओर, बुधनी सीट पर भाजपा ने अपना दबदबा कायम रखा। रमाकांत भार्गव ने कांग्रेस के राजकुमार पटेल को 13,109 वोटों से हराया। यह सीट पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का गृह क्षेत्र है और यहां भाजपा की जीत को पहले से लगभग तय माना जा रहा था। रमाकांत भार्गव ने इस जीत का श्रेय शिवराज सिंह चौहान के विकास कार्यों और डबल इंजन सरकार को दिया।
हालांकि, कांग्रेस ने मुकाबला दिलचस्प बनाया। पहले राउंड में कांग्रेस ने बढ़त बनाई, लेकिन दूसरे राउंड के बाद से भाजपा ने पकड़ मजबूत कर ली। अंतिम दो राउंड में भाजपा ने निर्णायक बढ़त लेते हुए जीत सुनिश्चित कर ली। इस जीत ने भाजपा को यह संदेश दिया कि उसका गढ़ बुधनी में अभी भी सुरक्षित है।
राजनीतिक संदेश और आगे की राह
विजयपुर और बुधनी दोनों ही सीटों के परिणामों ने राजनीतिक दलों को अहम संदेश दिया है। विजयपुर में जनता ने यह दिखा दिया कि दल बदलने और क्षेत्रीय मुद्दों की अनदेखी करने का क्या अंजाम हो सकता है। वहीं, बुधनी की जीत भाजपा के मजबूत संगठन और शिवराज सिंह चौहान की विकासवादी छवि का प्रमाण है।
ये उपचुनाव दोनों दलों के लिए सबक भी हैं। कांग्रेस को यह समझना होगा कि उसके लिए स्थानीय स्तर पर जातीय और सामाजिक समीकरण साधना कितना जरूरी है। वहीं, भाजपा को अपनी परंपरागत सीटों के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी ध्यान देना होगा, क्योंकि विजयपुर जैसा नतीजा उसके लिए खतरे की घंटी हो सकता है।
आने वाले लोकसभा चुनावों के लिए ये नतीजे साफ संकेत हैं कि जनता अब सिर्फ बड़े नारों या वादों पर भरोसा नहीं करती। विजयपुर और बुधनी के फैसले ने यह साफ कर दिया कि मतदाता जागरूक हो चुके हैं और हर क्षेत्र की जरूरतें अलग-अलग हैं।