पर्यावरण के हक में बड़ा फैसला: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अवैध कटाई पर कसा शिकंजा


मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 53 प्रजातियों के पेड़ों की कटाई की छूट देने वाली अधिसूचना को रद्द कर दिया। कोर्ट ने ‘पुष्पा सिंडिकेट’ का जिक्र करते हुए अवैध लकड़ी तस्करी पर सख्त टिप्पणी की। जानिए पूरा मामला।


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बड़ी बात Published On :

मध्यप्रदेश में जंगलों की अवैध कटाई और लकड़ी माफिया के बढ़ते प्रभाव को लेकर हाईकोर्ट ने सख्त फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट की लार्जर बेंच ने 2019 में जारी उस सरकारी नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया है, जिसमें 53 तरह के पेड़ों की कटाई और लकड़ी परिवहन को सरकारी अनुमति से छूट दी गई थी। इस फैसले को पर्यावरण संरक्षण के लिए एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

 

कोर्ट ने ‘पुष्पा सिंडिकेट’ का किया जिक्र

हाईकोर्ट की लार्जर बेंच ने अपने 100 पन्नों के फैसले में फिल्म पुष्पा का संदर्भ देते हुए कहा कि जिस तरह फिल्म में अवैध लकड़ी कटाई और तस्करी का संगठित अपराध दिखाया गया है, वैसा ही मध्यप्रदेश के जंगलों में भी हो रहा है। कोर्ट ने कहा कि वन विभाग, पुलिस और अन्य सरकारी संस्थाएं इस माफिया के प्रभाव में आकर कार्रवाई करने में विफल हो रही हैं। इससे जंगलों की अवैध कटाई और लकड़ी के अवैध व्यापार को बढ़ावा मिल रहा है।

एक पेड़ दस पुत्रों के बराबर – कोर्ट का सख्त संदेश

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि एक जलाशय दस कुओं के बराबर है, दस जलाशय एक पुत्र के बराबर है और दस पुत्र एक पेड़ के बराबर है। इससे जंगलों और पेड़ों के महत्व को दर्शाया गया है। हाईकोर्ट ने कहा कि 2015 में जारी विवादित अधिसूचना और 2017 में किया गया संशोधन वन अधिनियम, 1977 की धारा 41(1), (2) और (3) के प्रावधानों के खिलाफ था। इसके अलावा यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 48-ए का भी उल्लंघन करता है।

हाईकोर्ट ने इन अधिसूचनाओं को अवैध करार देते हुए ट्रांजिट पास नियम, 2000 को तत्काल प्रभाव से सभी वृक्षों की प्रजातियों पर लागू करने का आदेश दिया है।

इंदौर के दस्तावेजों ने कोर्ट को चौंकाया

कोर्ट में पेश दस्तावेजों से यह खुलासा हुआ कि इंदौर के वन प्रभाग में बड़े पैमाने पर हरे-भरे और फलों से लदे पुराने पेड़ों की अवैध कटाई हो रही थी। वन संरक्षक इंदौर द्वारा 2017 में लिखे गए पत्र में यह उल्लेख किया गया था कि हर दिन 100-150 वाहन हजारों टन लकड़ी और अन्य वन उत्पादों को अवैध रूप से बाजारों में ले जा रहे थे, लेकिन इनका स्रोत अज्ञात था।

2019 में मुख्य वन संरक्षक द्वारा एक रिपोर्ट तैयार की गई थी, जिसमें कहा गया था कि 53 प्रजातियों को छूट देने की नीति का दुरुपयोग करके जंगलों में बड़े पैमाने पर अवैध कटाई हो रही थी। इस रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई थी कि सरकार को इस अधिसूचना को वापस लेना चाहिए।

 

पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से जंगलों का अस्तित्व खतरे में

 

कोर्ट में पेश रिपोर्ट्स में यह भी बताया गया कि लकड़ी माफिया हरे-भरे और पुराने पेड़ों को तेजी से काट रहा था, जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा था। सरकारी अधिसूचना ने अवैध रूप से खरीदी गई लकड़ी और वन उत्पादों के परिवहन को कानूनी रूप देने का रास्ता खोल दिया था। इससे जंगलों की लूट और पेड़ों के विनाश को बढ़ावा मिला।

 

 

कोर्ट का फैसला: पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अहम कदम

हाईकोर्ट के इस फैसले को पर्यावरणविदों और वन संरक्षण कार्यकर्ताओं ने स्वागत योग्य कदम बताया है। इससे जंगलों की अवैध कटाई पर रोक लगेगी और लकड़ी माफिया पर भी नकेल कसी जाएगी। कोर्ट का आदेश है कि अब से किसी भी पेड़ की कटाई के लिए सरकारी अनुमति और ट्रांजिट पास अनिवार्य होगा ताकि अवैध गतिविधियों पर नजर रखी जा सके।

 

मध्यप्रदेश में जंगलों की रक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लिए यह फैसला मील का पत्थर साबित हो सकता है। अब सरकार और वन विभाग की जिम्मेदारी होगी कि वे इस आदेश को सख्ती से लागू करें और प्रदेश के जंगलों को बचाने के लिए ठोस कदम उठाएं।

 



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