
यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे के निष्पादन के बहाने यह तथ्य भी सामने आया है कि पूरी दुनिया रासायनिक प्रदूषण की चपेट में है। पर्यावरण पर काम कर रही संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की हाल ही में आई वार्षिक रिपोर्ट में यह सवाल उठाया गया है कि क्या रासायनिक प्रदूषण एक वैश्विक संकट बन चुका है? इसका जवाब है—हां। दुनिया का कोई भी कोना अब रसायनों के प्रभाव से मुक्त नहीं है।
यूनियन कार्बाइड इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। इसने जहरीले रसायनों का उत्पादन कर न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में इनका विस्तार किया। अमेरिका से भारत तक, फिर मुंबई होते हुए भोपाल तक इस कंपनी ने जो जहर फैलाया, उसकी कीमत मध्य प्रदेश की पीढ़ियां आज भी चुका रही हैं। भोपाल गैस त्रासदी सिर्फ एक हादसा नहीं था, बल्कि एक स्थायी पर्यावरणीय आपदा थी, जिसका दुष्प्रभाव आज भी देखने को मिल रहा है।
हर जगह फैला है जहरीला रासायनिक कचरा
यूनियन कार्बाइड का जहर सिर्फ भोपाल तक सीमित नहीं है। यह खेतों, खलिहानों, गांवों और शहरों तक फैला हुआ है। कृषि में इन जहरीले रसायनों का भारी उपयोग हुआ, जबकि इनमें से कई रसायन इतने घातक हैं कि उनका एक ग्राम भी जानलेवा हो सकता है।
रसायनों के प्रभाव पर अध्ययन करने वाले विशेषज्ञ एन. रेड्डी बताते हैं, “हम अपने ग्रामीण इलाकों में कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग कर रहे हैं—हर साल करीब 2,55,000 टन। जबकि इन रसायनों की थोड़ी मात्रा भी गंभीर खतरा पैदा कर सकती है।” इसके बावजूद, यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा आज भी सरकार द्वारा जलाया जा रहा है। हालांकि, यह कदम मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के निर्देश पर उठाया गया है, लेकिन सरकार चाहती तो जनता की भावना को ध्यान में रखते हुए और बेहतर समाधान तलाश सकती थी।
रासायनिक प्रदूषण: हर इंसान पर खतरा
CSE की रिपोर्ट “भारत का पर्यावरण 2025” के अनुसार, रासायनिक प्रदूषण अब हमारे ग्रह पर सर्वव्यापी हो चुका है। यह वायुमंडल से लेकर समुद्र की तलहटी तक हर जगह फैल चुका है। मनुष्य ने अपने स्वार्थ और मुनाफे के लिए इसे हर जगह पहुंचा दिया है।
विजिटिंग सीनियर फेलो एन. रेड्डी कहते हैं,
आज दुनिया में कोई भी स्थान ऐसा नहीं बचा, जो रासायनिक प्रदूषण से अछूता हो।” पत्रकार रोहिणी कृष्णमूर्ति के अनुसार, “2019 में, पर्यावरण में रसायनों के कारण दुनिया भर में 20 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई, जबकि 5.3 करोड़ लोग विभिन्न विकलांगताओं का शिकार हुए।
रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल लगभग 220 अरब टन रसायन वातावरण में छोड़े जाते हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इंसान हर सेकंड 65 किलोग्राम कैंसर पैदा करने वाले रसायन हवा में छोड़ता है। यह प्रदूषण सीधे हमारे शरीर को प्रभावित कर रहा है, जिससे कैंसर, अंगों को नुकसान, प्रतिरक्षा प्रणाली की कमजोरी, एलर्जी और अस्थमा जैसी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं।
रासायनिक प्रदूषण: एक अदृश्य महामारी
रसायनों के अनियंत्रित उपयोग का सबसे बड़ा खतरा यह है कि नए-नए रसायन बाजार में उतारे जा रहे हैं, जिनके दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को कोई जानकारी नहीं होती। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दुनिया में अब तक 1.6 लाख से अधिक रसायनों की पहचान की जा चुकी है, जिनमें से कई बेहद जहरीले हैं।
अमेरिका हर साल औसतन 1,500 नए रसायन विकसित करता है, जिनका व्यापक उत्पादन और निर्यात होता है। लेकिन इनके संभावित खतरों पर पर्याप्त शोध नहीं किया जाता। ऐसे में कई देशों में प्रतिबंधित रसायनों का उपयोग अब भी जारी है।
रिपोर्ट कहती है कि “मनुष्य ने 1,40,000 से अधिक रसायनों और उनके मिश्रणों का निर्माण किया है, जिनमें से कई कुछ दशक पहले तक अस्तित्व में भी नहीं थे।” इनका प्रभाव धीरे-धीरे सामने आ रहा है, लेकिन जब तक इसके पूरे खतरे का आकलन होता है, तब तक लाखों लोग इसकी चपेट में आ चुके होते हैं।
जहर हर जगह, बचाव का रास्ता कौन सा?
यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे को अब लैंडफिल में दफन किया जाएगा, लेकिन यह समाधान नहीं है। यह जहर मिट्टी में मिलकर भूजल और खाद्य श्रृंखला तक पहुंच सकता है। यदि सरकार ने इस विषय पर ठोस नीति नहीं बनाई, तो आने वाले वर्षों में भोपाल जैसी त्रासदियां और बढ़ सकती हैं।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के इस युग में हमें यह तय करना होगा कि क्या हम सिर्फ मुनाफे के लिए आने वाली पीढ़ियों को जहरीला भविष्य देंगे, या फिर समय रहते इस संकट से निपटने के लिए कदम उठाएंगे? सवाल यह है कि क्या सरकार और समाज इस अदृश्य महामारी के प्रति गंभीर हैं, या फिर जब तक देर न हो जाए, तब तक सिर्फ मूकदर्शक बने रहेंगे?