Explainer: क्या है जीएम सरसों और क्यों मचा हुआ है इसे लेकर गतिरोध ?


संकर किस्में आम तौर पर अधिक सशक्त मानी जाती हैं और जीएम सरसों से ज्यादा तेल उत्पादन होने की उम्मीद है हालांकि स्वास्थ्य के नज़रिये से इसे सुरक्षित कहना मुश्किल है।


Shree Prakash Shree Prakash
काम की बात Updated On :

जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) फसलों के मामले में भारत लंबे समय से अनिर्णय की स्थिति में है, लेकिन जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग करके विकसित की गई सरसों की किस्म, डीएमएच-11 (धारा मस्टर्ड हाइब्रिड-11) को लेकर जीएम फसलों के समर्थकों में उम्मीद की लहर दौड़ पड़ी है, क्योंकि अब पर्यावरण मंत्रालय की एक कमिटी ने सरसों की जीएम फसल को व्यावसायिक उद्देश्य तथा खेती के लिए मंजूरी दे दी है और सरकार भी इसे हरी झंडी मिलने की संभावना है।

अब अगर जीएम सरसों को पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति मिल जाती है तो यह भारतीय कृषि में व्यावसायिक खेती के लिए पहली ट्रांसजेनिक खाद्य फसल होगी। डीएमएच-11 मिट्टी के जीवाणु के जीन का उपयोग करके सरसों को एक स्व-परागित पौधा बनाता है, जो अन्य किस्मों के साथ संकरण करके और संकर किस्मों का उत्पादन करता है।

डीएमएच-11भारतीय सरसों की किस्म ‘वरुण’ और पूर्वी यूरोपीय ‘अर्ली हीरा-2’ सरसों के बीच संकरण के बाद बनी है।

संकर किस्में आम तौर पर अधिक सशक्त होती हैं और जहां तक सरसों का मामला है, बताया जा रहा है कि अधिक तेल का उत्पादन करेंगी। हालांकि भारत में सरसों की कई किस्में हैं, लेकिन खराब पैदावार के कारण भारत को तेल आयात करना पड़ रहा है। हालांकि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने स्पष्ट तौर पर यह नहीं कहा कि इस नई किस्म से भारत में खाद्य तेल की ज़रूरत पूरी हो सकती है।

जेनेटिक इंजिनियरिंग के जरिए किसी भी जीव या पौधों के जीन को दूसरे पौधों में डाल कर एक नई प्रजाति विकसित की जाती है। इस प्रक्रिया में पौधे में नए जीन यानी डीएनए को डालकर उसमें ऐसे मनचाहे गुणों का समावेश किया जाता है जोकि प्राकृतिक रूप से उस पौधे में नहीं होते हैं। इस तकनीक के जरिए तैयार किए गए पौधे कीटों, सूखे जैसी पर्यावरण परिस्थिति और बीमारियों के प्रति अधिक प्रतिरोधी होते हैं। जीनांतरित फसलों से उत्पादन क्षमता और पोषक क्षमता को बढ़ा सकते हैं।

GM सरसों

भारत में खेती की पैदावार बढ़ाने के लिए जीएम फसलों को अनुमति देना अहम निर्णय माना जा रहा है। भारत में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। एक अनुमान के अनुसार, 2030 तक आबादी के मामले में हम चीन को भी पीछे छोड़ देंगे और हमें लगभग 1.5 अरब लोगों के भोजन का प्रबंध करना होगा। दूसरी तरफ, शहरीकरण के कारण खेती योग्य भूमि समाप्त होती जा रही है, जो कृषि क्षेत्र के लिए एक अहम संकट बनता जा रहा है।

हालाँकि 2017 में भी, जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रैजल कमिटी (जीईएसी)  ने इसके लिए मंजूरी दे दी थी लेकिन पर्यावरण मंत्रालय की असहमति और विरोध के बाद सरकार पीछे हट गई थी। अभी तक केवल कपास की गैर-खाद्य फसल के मामले में ही जीएम फसल बीटी कॉटन की अनुमति दी गई है।

इसके पहले, 2009 में, जीईएसी ने एक ट्रांसजेनिक खाद्य फसल, बीटी बैंगन, को मंजूरी दे दी थी, जिसे विरोध के बाद यूपीए सरकार ने खारिज कर दिया था। इसके अलावा, दो बार जीएम बैंगन की फसल व फिर जीएम सरसों के लिए अनुमति हासिल करने पर बहुत जोर लगाया गया, लेकिन व्यापक विरोध के कारण यह संभव नहीं हुआ। तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने सुरक्षा परीक्षणों की कमी के सवाल पर मंजूरी देने से इंकार कर दिया था।

हालांकि इस सम्बंध में जीएम को संदेह के साथ देखने वाले भी हैं। जीएम फसलों के विरोध का एक मुख्य आधार यह रहा है कि ये फसलें स्वास्थ्य व पर्यावरण के नज़रिये से सुरक्षित नहीं हैं और इसका बुरा प्रभाव अन्य फसलों व पौधों में फैल सकता है। इसके अलावा स्वास्थ्य के लिहाज से भी ये फसलें अच्छी नहीं मानी जाती।

किसानों पर खतरा!

इसके अलावा, एक मुख्य डर यह है कि जीएम फसलों के जरिए बीजों के मामले में भारतीय किसान विदेशी कंपनियों पर निर्भर हो जाएंगे। सामाजिक कार्यकर्ता सिद्धांत रूप में आनुवंशिक संशोधन तकनीक का विरोध करते हैं और कुछ किसान समूह जो उन्हें खतरनाक मानते हैं।

GM सरसों

20 राज्यों के 120 से अधिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने जीएम सरसों के व्यावसायिक उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी की है, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों, प्रमुख किसान संघों, ट्रेड यूनियनों, शहद उद्योग, वैज्ञानिकों और अन्य सिविल सोसायटी संगठनों के नेता शामिल हैं।

एलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड होलिस्टिक एग्रीकल्चर (ASHA) ने आरोप लगाया कि भारत में जीन प्रौद्योगिकी के लिए नियामक संस्था, जीईएसी, पूर्ण जैव सुरक्षा डेटा प्रकाशित किए बिना या किसी विशेषज्ञ की स्वतंत्र जांच के लिए पर्याप्त समय दिए बिना अनुमोदन प्रक्रियाओं के साथ आगे बढ़ रही है।

जीएम फसलों के विरोध में स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) और भारतीय किसान यूनियन भी हैं। पीटीआई के अनुसार, एसजेएम ने जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) पर “गैर-जिम्मेदार तरीके” से काम करने का आरोप लगाया और कहा है कि “आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) सरसों के समर्थन में किए गए दावे पूरी तरह से असत्य थे, निराधार और गलत तरीके से पेश किये गए”।

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत कहते हैं कि “हमारे पास 400 वैज्ञानिकों की रिपोर्ट है, जिसके आधार पर हम जीएम फसलों से जुड़े खतरों को भांप सकते हैं। जब बीटी कपास की खेती के बुरे परिणाम हमारे सामने हैं, तो भारत सरकार को जीएम सरसों की खेती की अनुमति देने की क्या आवश्यकता है।” टिकैत ने दावा किया कि अगर सरकार किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य देती है तो फसलों की कमी नहीं होगी।

 

क्यों जरूरी माना जा रहा है जीएम सरसों?

  •  घरेलू मांग को पूरा करने के लिए भारत का खाद्य तेलों का आयात लगातार बढ़ रहा है। इसने अंततः विदेशी मुद्रा में कमी हो रही है। कृषि-आयात पर विदेशी मुद्रा निकासी को कम करने के लिए जीएम सरसों आवश्यक है।
  • भारत में तिलहनी फसलों अर्थात, सोयाबीन, रेपसीड सरसों, मूंगफली, तिल, सूरजमुखी, कुसुम और अलसी की उत्पादकता इन फसलों की वैश्विक उत्पादकता से बहुत कम है।
  • अलग अलग फसलों के मिलने से बने पौधे बेहतर उत्पादन देने वाले और अनुकूल होते हैं।

क्या हैं खतरे?

  • इसमें दो एलियन जीन (‘बार्नेज़’ और ‘बारस्टार’) शामिल हैं, जो बेसिलस एमिलोलिकफैसियंस नामक मिट्टी के जीवाणु से अलग किए गए हैं, जो उच्च उपज वाले वाणिज्यिक सरसों के संकरों के प्रजनन को सक्षम करते हैं। यह तकनीक बार्नेज़, बारस्टार और बार के निर्माण में इस्तेमाल किए गए तीन जीनों की सुरक्षा पर सवाल उठाया जा रहा है।
  • विभिन्न क्षेत्रों के 111 डॉक्टरों द्वारा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र प्रस्तुत किया गया है, जिसमें आनुवंशिक रूप से संशोधित धारा सरसों हाइब्रिड (DMH) -11 के परीक्षण रोपण को तत्काल बंद करने की मांग की गई है। डॉक्टरों ने फसल द्वारा खाद्य प्रणाली में संभावित स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं की चेतावनी दी है।



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