ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है। इस साल अपरा एकादशी 26 मई 2022 दिन गुरुवार को है। अपरा एकादशी व्रत धार्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण व्रत है। शास्त्रों में इसे अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। ये व्रत भगवान विष्णु को समर्पित माना जाता है।
पदम पुराण के अनुसार इस एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा उनके वामन स्वरूप में की जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव के बालों से मां भद्रकाली प्रकट हुई थी इसलिए इस पर्व को भद्रकाली एकादशी भी कहते हैं। इसके अलावा इस एकादशी को अचला एकादशी एवं जलक्रीड़ा एकादशी के नाम से जाना जाता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस एकादशी व्रत से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है और स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। अपरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के भक्त व्रत रखते हैं और विधि-विधान से पूजा करते हैं। इसके अलावा ज्योतिष में कुछ उपाय बताए गए हैं, जिन्हें करने से तमाम तरह के कष्ट दूर होते हैं और भगवान विष्णु की कृपा से तरक्की के रास्ते खुलते हैं। आइए जानते हैं उन उपायों के बारे में….
क्या करें और क्या नहीं…
- अपरा एकादशी के दिन प्रातः जल्दी उठकर घर की साफ सफाई करें।
- स्नान ध्यान कर भगवान विष्णु के साथ देवी लक्ष्मी की पूजा करें। इससे विष्णु जी के माता लक्ष्मी की भी कृपा प्राप्त होगी।
- भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति के लिए पीपल के पेड़ को जल देकर दीपक जलाएं।
- भगवान विष्णु के मंत्र का जप करें।
- विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
- चावल खाने से परहेज़ करें। घर में तामसिक भोजन न बनाएं।
- एकादशी गुरुवार को है तो इसलिए किसी जरूरतमंद ब्राम्हण अथवा इसी अवस्था के किसी अन्य व्यक्ति को हल्दी, घी, केसर, पीला वस्त्र, चने की दाल, गुड़, पीतल के बर्तन आदि का दान करें।
- ब्रम्हचर्य का पालन करें।
आज की तिथि … ज्येष्ठ कृष्णपक्ष एकादशीआज का करण – बलवआज का नक्षत्र – रेवतीआज का योग – आयुष्यमानआज का पक्ष – कृष्णआज का वार – गुरुवार
ज्येष्ठशुभ समय – 11:50:39 से 12:45:42 तक।
व्रत कथा…
महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई से द्वेष रखता था। एक दिन अवसर पाकर इसने राजा की हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी। मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को आत्मा परेशान करती। एक दिन एक ऋषि इस रास्ते से गुजर रहे थे। इन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना।
ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। राजा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया। एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेतयोनि से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया।
एकादशी आपके जीवन में आनंद लाए…