महिला दिवस विशेष: महिलाएं बदल सकती हैं समाज की आब-ओ-हवा :- पैड वूमन माया विश्वकर्मा


पैड वूमेन माया विश्वकर्मा ने नरसिंहपुर के गांव से लेकर यूएसए तक में नाम किया रोशन 


ब्रजेश शर्मा
उनकी बात Updated On :

कुछ समय पहले सामाजिक बदलाव के लिए बॉक्स ऑफिस में हिट हुई अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन देश और गांव में सामाजिक बदलाव का कारण बनी । खास बात यह कि पैडमैन का फ़िल्मांकन मध्यप्रदेश के महेश्वर में हुआ। फिल्म के बाद अक्षय कुमार पैडमैन के नाम से चर्चाओं में आए तो पैडवूमेंस के नाम से सुर्खियों में आईं माया विश्वकर्मा, नरसिंहपुर जिले बल्कि मध्य प्रदेश की चर्चित महिला समाजसेवी से उनके कार्यों की खूबियों को लेकर बात की गई उनसे हुई बातचीत…

 

  •  पैड वूमेन के नाम से आप काफी चर्चा हैं आखिर ऐसी क्या वजह थी कि आप इस सामाजिक बदलाव का संवाहक बन पाईं ?

जवाब: मेरी परवरिश गांव में ही हुई। नरसिंहपुर जिले का साईं खेड़ा कस्बे का बहुत दूर का गांव मेहरागांव । जहां जागरूकता , मूलभूत सुविधाओं के लिए भी कनेक्टिविटी नहीं थी । तो इस कारण से। बहुत सारी समस्याएं रहीं । इसमें से एक महिलाओं की समस्याऐं मैं देखती थी कि महिलाएं माहवारी आने पर कई तरह की कही ,अनकही समस्याएं झेलती हैं । आज भी मतलब संकोच करती हैं। स्वास्थ्य का एक अहम पहलू है । इस पर ध्यान नहीं दिया जाए तो कई तरह की बीमारियों को भी जन्म देता है । इनके लिए स्कूल में भी सुविधाएं नहीं हैं और ऐसे भी मतलब कहीं उनके पाठ्यक्रम में स्वास्थ्य की इन पहलुओं पर ध्यान नहीं है। जब परेशानियां होती हैं तो फिर वो कही ना कही बीमारी के कारण होते हैं । तो यही लगा कि क्यों ना इस पर ध्यान दिया जाए। गांव में ही जो महिलाएं लड़कियां हैं उनको सेनेटरी पैड सेनेटरी पैड मुहैया कराए और उनकी परेशानियों पर खुलकर बात की । महिलाओं के समूह में जागरूकता लाने के लिए बातचीत शुरू हो गई।z प्रोग्राम चलाया और मैं उनके बीच आज भी काम कर रही हूँ।

 

  •   अब तक कितना सामाजिक बदलाव ला पाए हैं ?

जवाब: सामाजिक बदलाव तो आया है । बदलाव धीरे धीरे होता है । लोगों का देखने का नजरिया भी काफी मायने रखता है । पहले लड़कियां बहुत झिझकती थीं, पैड कके लिए। खरीदने जाती थीं तो बोलती नहीं थीं । कहती थीं पैड ढक कर दीजिए ताकि कोई देखे ना । हम आज देखते हैं कि मेडिकल स्टोर या दुकानों पर संकोच और झिझक नहीं है । वह बेधड़क आती है । और यहाँ तक कि महिलाएं या लड़कियां घर के जो मेल सदस्य हैं मतलब पुरुष या कोई भी है वह भी पैड में लेने चले जाते हैं । कहीं ना कहीं यह एक बड़ा बदलाव है ।

अब लोगों ने समझा भी है । कम से कम में चर्चा होने लगी और जहाँ भी हम चाहते हैं वहां बहुत सा बदलाव देखने को मिल रहा है ।

  • अभियान की शुरुआत आपने कब की थी?

जवाब: 2016 में हमने सुकर्मा फाउंडेशन बनाया । तय किया कि हम इस परेशानी पर काम करेंगे और उस समय जब हमें कुछ ऐसा अनुभव नहीं था कि हम कोई फैक्टरी चलाएं या फिर हम बिज़नेस के पॉइंट ऑफ व्यू से देखें या कुछ? लेकिन हाँ, परेशानी थी तो हमने शुरू कर दिया। तब से ये लगा नहीं कि बड़ा काम है, फिर सोचा कि सब जगह जाने की आवश्यकता है। फिर हमने मध्य प्रदेश के ऐसे 21 और नरसिंहपुर मिला कर 22 जिले जो आदिवासी बाहुल्य हैं । वहां यह अभियान शुरू कर दिया ।

लोगों को बताया कि पर्यावरण और खानपान चेंज हो रहा है पूरे देश में सबसे अधिक आबादी आदिवासी की मध्यप्रदेश में है । अलग अलग छोटे छोटे टोलों में रहते हैं तो उन तक पहुँच पाना बड़ा मुश्किल होता है । हर जगह घूमे लेकिन उसका एक अच्छा जरिया निकला एकलव्य स्कूल । जहां हजारों आदिवासी लड़कियां इधर-उधर से आकर पढ़ती हैं । हमने ऐसी स्कूलों और छात्रावासों को लक्ष्य कर उन तक पहुंच कर लोगों को, बालिकाओं व महिलाओं को जागरूक किया। मुहिम आज भी चल रही है। उसमें काफी लोगों को रोजगार भी मिला है और बहुत सारी महिलाएं हमारी एक फैक्टरी में काम करती है और उनको निशुल्क पैड देते हैं।

सरपंच बनने के बाद सबसे पहले हमने यही काम किया है की हमारे गांव का स्कूल है, मिडल स्कूल है। वहां जो बच्चियां हैं वो आराम से पढ़ाई कर सके और उनको आने का एक जरिया यह हो जाता है कि स्कूल चलो वहां एक्चुअली में पैड मिलेगा ।

  •  आप मुहिम की बात कर रहे हैं । यह मुहिम जो कि महिलाओं से संबंधित है , कई बार यह देखा जाता है कि महिलाएं ही अन्य महिलाओं के लिए विरोध का विषय बन जाती हैं । कभी इस तरह की स्थिति का सामना करना पड़ा ?

जवाब: नहीं, इस तरह की स्थिति तो नहीं आई, लेकिन शुरुआत में जब हम बाहर गए तो किसी गांव में शाम को पहुँचे तो कुछ शराब पिए हुए नशे वाले लोग थोड़ा विरोध करते थे, लेकिन जब हम उनके साथ भी बैठे उन्हें घर की समस्या, महिलाओं , बेटियां जो उनके घर की होती थी, वही समस्याएं रही । फिर आराम से हमें घर में इनवाइट करते ।

 

  •  आप नरसिंहपुर जिले के एक दम पिछड़े सांईखेड़ा ब्लाक के मेहरागांव से हैं, फिर आपकी गांव से यूएसए कैसे हो गई ?

    जवाब: मैं बहुत छोटे से गांव में पैदा हुई, थोड़ी बहुत पढ़ाई गांव में करने के बाद अलग अलग गांवों में जाकर पढ़ाई की। फिर जबलपुर में पढ़ाई करने के बाद एम्स दिल्ली चली गई। जहां केमिकल रिसर्च में पढ़ाई करने की कोशिश की फिर वहां से आगे पढ़ने के लिए विदेश जाने का मौका मिला । इस तरह यूएसए पहुंच गई। बहुत टाइम बाद लौटे तो देखा कि हमारा गांव अभी तक वैसा ही है जैसा हम छोड़ के गए थे। ज्यादा कुछ बदलाव नहीं हुआ था। तो सोचा है कि विदेश में तो हर कोई रह लेता है, लेकिन देश में काम करने का मौका बहुत कम लोगों को मिलता है तो कुछ समय नौकरी और रिसर्च करने के बाद गांव में ही काम कर रही हूँ। आज लगभग 11 – 12 साल होने वाले है। अभी भी शिक्षा व स्वास्थ को ले के गांव की स्थिति काफी बदतर है।

  •   आपने अमेरिका कॉन्टैक्ट बेस पर किसी तरह के टेली मेडिसिन सेंटर की शुरुआत भी गांव में की है ताकि गांव के लोगों को इलाज मिल सके?

जवाब: हाँ, देखिए वहाँ तक दूर दराज गांव है। हमारा जो मेहरागांव है उसकी दूरी जिला मुख्यालय से लगभग 100 किलोमीटर की है । इस एरिया में बहुत ज्यादा रेत माइनिंग होता है तो उस वजह से हमारे गांव की रोड अच्छी नहीं है । वहाँ तक एम्बुलेंस , जननी एक्सप्रेस नहीं पहुंचती । स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल यह कि अस्पताल में सही इलाज नहीं मिलता है । गांव के लोगों के पास नरसिंहपुर 100 किलोमीटर आने के लिए उनके पास ट्रांसपोर्टेशन नहीं है। हम तो हमें लगता था कि क्यों ना हम यहाँ पर प्राथमिक इलाज के लिए कुछ व्यवस्था कर सकें। अमेरिका में वहाँ टेक्नोलॉजी काफी एडवांस हैं तो वहाँ हमने एक टेली कॉन्फ्रेन्स में देखा है कि टेली मेडिसिन के द्वारा आप कहीं से भी इलाज कर सकते हैं, कुछ भी सकता है और जो रेजिस्टर्ड डॉक्टर है वो आपके मरीज को देख सकते हैं। तो हमने गांव में निशुल्क इलाज देने के लिए यह टैली मेडिसिन सेंटर शुरू कर दिया । त 2018 – 19 में तो हमने यह हॉस्पिटल खोला और यह मध्य प्रदेश का पहला ऐसा टेलीमेडिसिन सेंटर है जो गांव में चलता है । और उस समय यह भी नहीं पता था कि भयंकर कोविड समस्या आने वाली है । वो गोभी डालने वाला है। लेकिन ऊपर वाला था, जिसकी जहां पर जरूरत है वो उसको वही फिट कर देता है । तो हमको भी गांव में भेजा और हमने उसी टेलीमेडिसिन से गांव को बचाया। आसपास के लोगों को बचाया ।

सारे प्राइवेट अस्पताल बंद हो गए तब लाक डाउन हो गया। अब स्ट्रीम एडिशन सेंटर नहीं हजारों लोगों को इलाज उपलब्ध कराया। अमेरिका की डॉक्टर डॉक्टर अनु कोठारी ने हमें सेवाएं दी। अभी उसमें हमने एक और नया प्रोग्राम जोड़ा है कि किशोरी बालिकाओं के लिए जिन्हें एनीमिया है ।अधिकतर छोटे बच्चों को भी थायराइड हो रहा है उनके लिए हम काम कर रहे हैं ।

 


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