मध्यप्रदेश में क्यों धीमी है गेहूं की सरकारी खरीद!


बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से गेहूं की गुणवत्ता प्रभावित हुई है.


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उनकी बात Updated On :

मध्य प्रदेश में गेहूं की सरकारी खरीद की रफ्तार चालू रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 में वैसी नहीं है जैसी पहले के वर्षों में होती रही है। राज्य में गेहूं की सरकारी खरीद शुरू हुए एक महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है। मालवा क्षेत्र को छोड़कर यहां के बाकी इलाकों में फसलों की कटाई भी मध्य मार्च से ही शुरू हो जाती है। इसके बावजूद सरकारी खरीद की रफ्तार बढ़ नहीं पा रही है। इसके मुकाबले देर से शुरू हुई सरकारी खरीद के बावजूद पंजाब मध्य प्रदेश से काफी आगे निकल चुका है। इसे देखते हुए इस बात की भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि मध्य प्रदेश में गेहूं की सरकारी खरीद के लक्ष्य को संशोधित किया जा सकता है। मध्य प्रदेश में इस बार 80 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद का लक्ष्य रखा गया है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, मध्य प्रदेश में 26 अप्रैल तक 49.47 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई है, जबकि पंजाब में 89.79 लाख टन और हरियाणा में 54.26 लाख टन की खरीद हो चुकी है। इस अवधि तक देशभर में कुल 195 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई है जो पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले कहीं ज्यादा है। रबी मार्केटिंग सीजन 2022-23 में तो गेहूं की कुल सरकारी खरीद ही 188 लाख टन रही थी, जबकि लक्ष्य 444 लाख टन का रखा गया था। इस बार 341 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा गया है। मध्य प्रदेश में 25 मार्च से सरकारी खरीद शुरू हुई थी लेकिन तीन दिन बाद 28 मार्च को इसे रोक दिया गया था क्योंकि किसान बेमौसम बारिश से प्रभावित नमी वाला गेहूं लेकर खरीद केंद्रों पर पहुंच रहे थे। 1 अप्रैल से दोबारा खरीद शुरू की गई थी।

रबी मार्केटिंग सीजन 2022-23 में 26 अप्रैल तक मध्य प्रदेश में हालांकि 46.03 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई थी लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि पिछले वर्ष गेहूं का बाजार मूल्य ज्यादा होने की वजह से किसानों ने सरकारी खरीद केंद्रों की बजाय निजी व्यापारियों को फसल बेचने को तवज्जो दी थी। इसी वजह से गेहूं की सरकारी खरीद लक्ष्य से आधे पर ही अटक गई थी। केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं 2021-22 में राज्य में समीक्षाधीन अवधि तक 128.16 लाख टन और 2020-21 में 129.42 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई थी। उसके मुकाबले इस बार खरीद की रफ्तार धीमी है।

रूरल वॉयस के यह पूछने पर कि रफ्तार धीमी रहने की वजह क्या है, मध्य भारत कंसोर्टियम ऑफ एफपीओ के सीईओ योगेश द्विवेदी कहते हैं, “दरअसल, इस साल भी किसान सरकारी खरीद केंद्रों की बजाय मंडियों का ही रुख कर रहे हैं और निजी व्यापारियों को अपनी फसल बेच रहे हैं। जबकि इस साल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2125 रुपये प्रति क्विंटल के मुकाबले बाजार भाव कम है। इसके पीछे कारण यह है कि बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से गेहूं की गुणवत्ता प्रभावित हुई है। हालांकि, सरकार ने गुणवत्ता मानकों में छूट दी है लेकिन कीमतों में कटौती की भी शर्त लगा दी है। यह कटौती गुणवत्ता के हिसाब से अलग-अलग है। इससे किसानों में भ्रम की स्थिति है। निजी व्यापारी उनके भ्रम को और बढ़ा रहे हैं।”

योगेश द्विवेदी के मुताबिक, भ्रम की वजह से किसानों को लग रहा है कि सरकारी खरीद केंद्रों पर पता नहीं उनके गेहूं को किस स्लैब में रखा जाएगा और कीमतों में कितनी कटौती होगी। इससे बेहतर है कि मंडियों में ही फसल को बेचा जाए। वहां पैसे भी हाथ के हाथ मिल जाएंगे, जबकि सरकारी खरीद पर गेहूं बेचने पर पैसे मिलने में एक हफ्ते से 15 दिन तक का समय लगता है। गेहूं का मंडी भाव पूछने पर उन्होंने बताया कि इस बार गुणवत्ता की वजह से भाव में काफी अंतर है। इस समय गेहूं का मंडी भाव 1800-2500 रुपये प्रति क्विंटल तक है। जिन किसानों के गेहूं की गुणवत्ता अच्छी है उन्हें कीमत भी अच्छी मिल रही है। इस वजह से भी ऐसे किसान सरकारी खरीद केंद्रों पर नहीं जा रहे हैं। जबकि जिनकी गुणवत्ता अच्छी नहीं है वे कीमतों में ज्यादा कटौती की आशंका में मंडियों का रुख कर रहे हैं।

यह पूछने पर कि क्या मध्य प्रदेश में खरीद लक्ष्य पूरा हो पाएगा, योगेश द्विवेदी कहते हैं कि अभी काफी समय बचा हुआ है इसलिए इसकी आशंका कम ही है। इसमें ज्यादा परेशानी नहीं होगी।

यह खबर रुरल वॉयल से ली गई है। जिसे पत्रकार अभिषेक राजा ने लिखा है। इस लिंक पर मूल ख़बर को पढ़ा जा सकता है।


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