विकास के दौर में भी नरसिंहपुर के आदिवासियों की हर ज़रूरत पर लगा है सवालिया निशान


‘आजादी के 73 वर्ष बाद भी सड़क बिजली, स्वास्थ्य सुविधा जैसी बुनियादी चीजें उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं तो हम आगामी चुनाव का बहिष्कार करते हैं’


ब्रजेश शर्मा
उनकी बात Updated On :

रसिंहपुर। पहाड़ी और आदिवासी क्षेत्र में बिजली पहुंचाई तो बिजली कंपनी और जिले के कई नेता वाहवाही और सुर्खियां बटोरने लगे।  इसके बाद उन्होंने आदिवासी बाहुल्य गांव हींगपानी, भिलमाढाना की सुध नहीं ली कि अब भी गांव बिजली से रोशन हैं या नहीं।

सड़क और स्वास्थ्य सुविधाओं के हाल तो और भी बदतर हैं। अब गांव के लोगों ने कलेक्टर को ज्ञापन देकर कहा कि जब आप आजादी के 73 वर्ष बाद भी सड़क बिजली, स्वास्थ्य सुविधा जैसी बुनियादी चीजें उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं तो हम आगामी चुनाव का बहिष्कार करते हैं। आदिवासियों के मुताबिक योजनाएं तो बहुत हैं लेकिन उन तक कितनी पहुंचेंगी यह एक बड़ा सवाल है।

ग्राम भिलमाढाना, हींगपानी के कई ग्रामीण सोमवार को नरसिंह भवन पहुंचे। आदिवासी बाहुल्य गांव पहाड़ी क्षेत्रों में बसे हैं जहां सड़क, बिजली, स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा, रोजगार के तमाम दरवाजे बंद हैं।

सड़क?

इस गांव के लोगों ने सड़क को लेकर बताया कि जिला मुख्यालय से 75 किमी दूर और चीचली से लगभग 12 किमी दूर घने जंगलों के बीच सतपुड़ा जंगलों में हींगपानी गांव के करीब 150 -175 भरिया आदिवासी 73 वर्षों से अपने गांव के लिए सड़क, बिजली का सपना देख रहे हैं। यहां कच्ची सड़क तक नहीं है जिससे लोगों को नारकीय जीवन जीना पड़ रहा है। प्रसूति कराने के लिए महिलाएं अस्पताल तक नहीं पहुंच पाती।

बिजली?

गांव के लोगों का कहना रहा कि हमारा पूरा गांव पिछड़ा है। पर हम केवल दो चीजें मांग रहे हैं। सड़क और बिजली। अगर जिम्मेदार इन दो प्रमुख मांगों पर ध्यान दें तो बेहतर है अन्यथा वह आने वाले चुनाव से दूर हट जाएगें।

चुनाव के बाद बंद पड़ी है बिजली- बिजली के हाल यह है कि सन 2018- 19 में ग्राम में बिजली के खंभे व तार बिछा दिए गए और कहा गया कि प्रधानमंत्री के प्रयास से बिजली पहुंची है। इस खबर ने सुर्खियां तो खूब बटोर लीं पर लोकसभा चुनाव के बाद बंद हुई बिजली आज तक नहीं लौटी। इसे लेकर सीएम हेल्प लाइन में भी शिकायत भी की गई लेकिन बिजली चालू नहीं हुई। यहां अंधेरे में जीवन जीना मजबूरी है।

इस बारे में मप्र पूर्व क्षेत्र कंपनी गाडरवारा डिवीजन के कार्यपालन यंत्री सुभाष राय कहते हैं

मुझे इस मामले में जानकारी नहीं है, दिखवाते हैं। हो सकता है कि सोलर पैनल के जरिए बिजली पहुंचाई गई है। केबिल है की नहीं। आदिवासी हैं तो उन्हें सब्सिडी भी मिलती होगी। पता करवाता हूं। ऊपर से निर्देश होगें तो कार्य करवाएगें।

 

पानी?

ग्रामीणों का कहना है कि आदिवासियों के लिए कई योजनाएं हैं पर हालात यह हैं कि पीने का पानी भी गांव के लोगों को नसीब नहीं है। कई महीनों से बिगड़ा पड़ा हैडपंप सुधारने के लिए कोई नहीं पहुंच रहा है। नदी नालों का पानी पीने की मजबूरी है यहां सिंचाई की उम्मीद भी दूर की बात है।

स्वास्थ्य?

गांव के लोगों का कहना है कि स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए चीचली दूर है। वहां तक पहुंचने के लिए प्रसूति और गर्भवती महिलाएं जंगली रास्ते में ही दम तोड़ देती हैं। सड़क विहीन गांव में कोई सुविधा नही है। ग्रामीणों की मांग है कि भिलमाढ़ाना में छोटा का अस्पताल खुल जाता तो उन्हें लाभ मिल पाता।

शिक्षा?

ग्रामीणों ने मुताबिक उन्हें क-ख-ग सीखने के लिए भी स्कूल नहीं है। उनके बच्चे पढ़ना चाहते हैं। गांव में प्राईमरी स्कूल ज़रूर है लेकिन माध्यमिक शाला छींदखेड़ा भिलमाढाना में है जिसकी दूरी 15 किमी है। सड़क नहीं होने के कारण बच्चे 5वीं के बाद पढ़ नहीं पाते। हाईस्कूल हायरसेकेण्डरी तक पढऩा तो उनके लिए बहुत बड़ी बात है।

 

रोजगार?

ग्रामीणों का कहना था कि पंचायत और वन विभाग के द्वारा रोजगार मिलते तो बेहतर रहता। मनरेगा जैसी योजनाएं उनके लिए दूर की कौड़ी है। रोजगार की तलाश में बाहर घूमना पड़ता है। भोले-भाले आदिवासी ठगी और लूट के शिकार होते हैं। इन ग्रामीणों के रोजगार की स्थिति के बारे में किसी को ज्यादा ख़बर नहीं है। यहां की जनपद के पूर्व अध्यक्ष और जिला भाजपा के नेता वीरेन्द्र फौजदार के मुताबिक इन आदिवासियों को मनरेगा के तहत काम मिलना चाहिये और वे अब इस बारे में अधिकारियों से बात करेंगे।

 

वहां निश्चित तौर पर 8-10 टोले हैं जहां हितग्राही व रोजगार मूलक योजनाओं की जरूरत है। वहां की जमीन उपजाऊ नहीं है। वह आमदनी के लिए नीचे दूसरे गांव में गन्ना काटने के लिए ही पहुंच पाते हैं। मनरेगा जैसी योजनाएं उनके लिए ही हैं पर उन्हें कार्य नहीं मिल पा रहा है तो  हम देखते हैं।

        प्रतिभा परते, सीईओ जनपद पंचायत चीचली

 

निश्चित तौर पर बहुत दयनीय स्थिति उन क्षेत्रों की है। १५ दिन पहले ही उन्होंने रोड के लिए चर्चा की है। अब उनका प्रयास है कि इन आदिवासी गांवों में विशेष बजट हो। किसी भी सरकारी योजनाओं का लाभ यहां आदिवासियों को नहीं मिला है। मनरेगा के कार्य भी नहीं हुए है। मैंने विधायक निधि से जरूर थोड़े बहुत काम कराए थे लेकिन वह नाकाफी है फिर ध्यान दूंगी।

          सुनीता पटेल, विधायक गाडरवारा


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