इंदौर। मालवा निर्माण के बीच महामंडलेश्वर हाईवे से करीब 100 मीटर की दूरी पर माधवपुरा गांव में एक झोपड़ी है। पिछले चार दिनों में यहां दर्जनों छोटे बड़े नेता आ चुके हैं।
यह झोपड़ी 18 साल के युवक भैरूलाल की है जो अपने काम से लौटते हुए 15 मार्च की रात एक भीड़ में समा गया और पुलिस की गोली ने बिना उसे जाने अपना इंसाफ पूरा कर दिया।
रोज़ी रोटी के लिए शहर गए बेटे अपने नौजवान बेटे की मौत के बाद इस आदिवासी परिवार के जीवन की रोशनी जैसे खत्म हो गईं लेकिन पेट की आग बुझाने के लिए तीन दिन बाद शनिवार को चूल्हा जला।
पुलिस की गोली से भेरूलाल की मौत हुई उसी पुलिस की फाइलों में उसका नाम एक अपराधी के रूप में भी दर्ज कर लिया गया। पिछले करीब डेढ़ साल से मध्यप्रदेश में आदिवासी मतदाताओं को रिझाने के लिए भाजपा सरकार ने खूब करतब दिखाए, लेकिन भैरूलाल पर चली गोली और मौत के बाद भी दर्ज हुआ अपराध फिलहाल आदिवासी नागरिकों की स्थिति और उनके प्रति व्यवस्था के रवैये को काफी हद तक बता रहा है।
भैरूलाल क्या था और क्यों वो उस भीड़ में फंस गया, यह बात समझना मुश्किल नहीं। उसकी झोपड़ी उसकी हैसियत बता रही है। पहाड़ पर मिट्टी और घासपूस की पतली दीवारों की बनी झोपड़ी ही भैरूलाल की हैसियत है।
बताया जाता है कि गोली लगने के बाद भेरूलाल की देह सरकार के लिए ज्यादा बड़ी परेशानी थी ऐसे में 16 मार्च की सुबह ही उसी पुलिस के साए में अंतिम संस्कार करवा दिया गया जिस की गोली से उसकी मौत हुई थी।
कांग्रेस व भाजपा नेता अपने अपने तरीके से सांत्वना व्यक्त कर रहे हैं। कांग्रेस इस मुद्दे को गर्म रखना चाहती है जबकि भाजपा हर हाल में ठंडा करना चाहती है।
शनिवार को कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ मृतक भेरूलाल के घर पहुंचे तथा सांत्वना जताने पहुंचे और कहा कि प्रदेश की भाजपा सरकार के राज में आदिवासियों पर सबसे ज्यादा अत्याचार हुए हैं इस मामले में मुख्यमंत्री के सर का ताज भी है।
वहीं दूसरी ओर भाजपा की ओर से राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ,सांसद छतर सिंह दरबार, शनिवार को प्रदेश के मंत्री उषा ठाकुर भी मृतक भेरूलाल की झोपड़ी में पहुंची।
उन्होंने मृतक के परिवार को समझाया कि वे राजनीति में ना पड़े। उन्होंने कहा कि हर घटना दुर्घटना में राजनीति करना अच्छी बात नहीं।
शनिवार को नेताओं की आवाजाही का शोर थमने के बाद परिजनों ने हमें बताया कि गुरुवार की रात को ही जब हमें उन्हें बताया गया कि उनके लड़के को गोली लग गई है और सुबह जल्दी ही उसका अंतिम संस्कार कर देना कुछ परिजन पहुंचे कुछ दिन बाद पहुंचे।
मृतक भेरूलाल के पिता का कहना है कि मेरे बेटे की कीमत सरकार ने कितनी और क्यों लगाई है, उन्हें नहीं मालूम। मैंने तो अपना बेटा खो दिया।
वहीं परिवार की महिलाओं ने कहा कि लोग तो बहुत आए, लेकिन तीन दिन से हम किस तरह गुजारा कर रहे हैं। यह किसी ने नहीं पूछा।
वहीं, परिवार के लिए सबसे ज्यादा अचरज की बात तो यह रही कि जिस पुलिस प्रशासन ने गोली मारी, उसके एक भी अधिकारी ने आकर परिवार से बात नहीं की और न ही अपनी गलती मानी या कोई दुख जताया।
यह मामला चाहे राजनीतिक रूप से गरमा जाए, लेकिन मध्यप्रदेश में भैरूलाल की मौत ने इस राज्य में एक बार फिर आदिवासी नागरिकों के खिलाफ हो रहे अपराधों को लोगों की नजरों में आया है।