मेवाणी मामले में कोर्ट की पुलिस को फटकार, कहा संघर्ष से हांसिल लोकतंत्र को पुलिस स्टेट नहीं बनने देंगे


कोर्ट ने कहा कि FIR के विपरीत, महिला ने मजिस्ट्रेट के सामने एक अलग कहानी बताई है। महिला की गवाही को देखते हुए प्रतीत होता है कि जिग्नेश मेवाणी को लंबे समय तक हिरासत में रखने के उद्देश्य से तत्काल झूठा केस बनाया गया।


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उनकी बात Published On :

नई दिल्ली। असम पुलिस ने गुजरात के विधायक और लोकप्रिय दलित नेता जिग्नेश मेवाणी को फंसाने के लिए झूठा मनगढ़ंत केस बनाया था। बारपेटा कोर्ट में इस बात की पुष्टि हुई है। कोर्ट ने पुलिस को इस कृत्य के लिए जमकर लताड़ा और कहा कि मेहनत से अर्जित लोकतंत्र को हम पुलिस स्टेट में बदलने नहीं देंगे।

बारपेटा कोर्ट ने शुक्रवार को जिग्नेश मेवाणी को जमानत देते हुए कहा कि असम पुलिस लोगों को फंसाने में अव्वल होती जा रही है। सेशन कोर्ट के जज जस्टिस अपरेश चक्रवर्ती ने अपने आदेश में कहा कि हमारे मेहनत से अर्जित लोकतंत्र को पुलिस राज्य में बदलना अकल्पनीय है।

अदालत ने कहा कि अगर तत्काल मामले को सच मान लिया जाता है और मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज महिला के बयान के मद्देनजर… जो नहीं है, तो हमें देश के आपराधिक न्यायशास्त्र को फिर से लिखना होगा।’

कोर्ट ने कहा कि FIR के विपरीत, महिला ने मजिस्ट्रेट के सामने एक अलग कहानी बताई है। महिला की गवाही को देखते हुए प्रतीत होता है कि जिग्नेश मेवाणी को लंबे समय तक हिरासत में रखने के उद्देश्य से तत्काल झूठा केस बनाया गया। मेवानी को जेल में भेजने के लिए, अदालत की प्रक्रिया और कानून का दुरुपयोग किया गया है।

कोर्ट ने कहा कि पुलिस कर्मियों द्वारा ऐसे आरोपियों को गोली मारकर हत्या कर देना या घायल कर देना राज्य में एक नियमित घटना बन गई है। सेशन कोर्ट ने गुवाहाटी हाईकोर्ट से यह भी आग्रह किया है कि वह असम पुलिस को बॉडी कैमरा पहनने और अपने वाहनों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश दे ताकि किसी आरोपी को हिरासत में लिए जाने पर घटनाओं के क्रम को रिकॉर्ड किया जा सके।

उधर, जेल से छूटने के बाद जिग्नेश मेवाणी ने कहा कि असम में बीजेपी सत्ता में है। बीजेपी ने एक महिला का उपयोग करके उनके खिलाफ कहानी गढ़ी, जो कायरतापूर्ण काम किया है। मेरी गिरफ्तारी कोई साधारण मामला नहीं था। यह PMO में बैठे राजनीतिक आकाओं के निर्देश के तहत किया गया है। बीजेपी यह सब गुजरात चुनाव को ध्यान में रखकर कर रही है।

दरअसल, असम में कोकराझार की एक अदालत ने गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी को पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ किए गए ट्वीट से जुड़े मामले में सोमवार को ही जमानत दे दी थी। हालांकि, जमानत मिलते ही असम पुलिस ने एक दूसरा फर्जी केस बनाकर जिग्नेश को दोबारा गिरफ्तार कर लिया। असम पुलिस ने जिग्नेश के खिलाफ एक महिला पुलिस के साथ छेड़छाड़ का झूठा आरोप लगाया था।


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