मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ ने 18 वर्षीय मुस्लिम किशोर को जमानत पर रिहा कर दिया, जो कथित तौर पर धार्मिक जुलूस पर थूकने के आरोप में 151 दिनों तक हिरासत में था।
बीते साल जुलाई में उज्जैन से एक धार्मिक विवाद का मामला सामने आया। बताया गया कि तीन नाबालिग बच्चों ने उज्जैन में पारंपरिक रूप से निकलने वाली महाकाल की सवारी के साथ चल रहे जुलूस पर थूका। इसकी शिकायत के बाद पुलिस ने तीनों किशोरों को गिरफ्तार कर लिया और प्रदेश में प्रचलित हो चुके बुल्डोजर कानून के मुताबिक उनके पिता अशरफ हुसैन मंसूरी का घर गिरा दिया गया। हालांकि इसके पीछे यह दलील भी दी गई कि घर खतरनाक स्थिति में था। किशोरों का घर तोड़ने की इस कार्रवाई के दौरान खूब ढोल भी बजाए गए।
आवेदक के वकील ने दलील दी थी कि आवेदक निर्दोष है और उसे इस मामले में झूठा फंसाया जा रहा है। वकील ने आगे तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता और गवाह ने बयान दिए थे कि पुलिस ने उनसे एक शिकायत पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा था, उन्हें न तो पता था कि प्रथम सूचना रिपोर्ट में क्या था और न ही वे इससे सहमत थे। इन बयानों के आधार पर हाई कोर्ट ने तीनों आरोपियों में से मंसूरी के बड़े बेटे और एकमात्र बालिग अदनान को जमानत दे दी है। हालांकि इस मामले में सरकारी वकील ने सीसीटीवी फुटेज का भी हवाला दिया और कहा कि यह एक मजबूत केस है।
19 जुलाई 2023 को जब घर गिराने की कार्रवाई की गई उस समय परिवार की एक मृत महिला के नाम पर नोटिस जारी किया गया। यह नोटिस पिछली तारीख में जारी कर अब परिवार को दिया गया था। महज़ आधे घंटे तक चली इस कार्रवाई में जिससे तीन परिवारों के एक दर्जन पुरुष, महिलाएं और बच्चे बेघर हो गए, जिनमें से अधिकांश का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था और उन पर किसी अपराध का आरोप नहीं लगाया गया था।
यह कार्रवाई हिंदू युवाओं के एक समूह द्वारा दो नाबालिगों सहित तीन किशोरों पर जानबूझकर उनकी इमारत की छत से हिंदू धार्मिक जुलूस पर थूकने का आरोप लगाने के दो दिन बाद हुआ था।
जुलूस पर थूकने की अफवाह जैसे ही फैली तो जुलूस में शामिल कई लोगों ने मंसूरी के परिवार और आम तौर पर मुसलमानों को गाली दी, और हिंदू कट्टरपंथी कार्रवाई की मांग करते हुए स्थानीय खाराकुआ पुलिस स्टेशन के बाहर जमा होकर विरोध प्रदर्शन किया।
इस धार्मिक जुलूस में शामिल होने के लिए उत्तर में 55 किमी दूर इंदौर से अपने दोस्तों के साथ आए एक “भक्त” सावन लोट (28) की शिकायत पर, उज्जैन पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की पांच धाराओं के तहत तीन किशोरों को गिरफ्तार किया। ), 1860: 295-ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य), 153-ए (पूजा स्थल पर किया गया अपराध), 296 (धार्मिक सभा में खलल डालना), 505 (सार्वजनिक शरारत पैदा करने वाले बयान) और 34 (सामान्य इरादे को आगे बढ़ाने में कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य)।
गिरफ्तार किए गए आरोपियों में से दो मंसूरी के बेटे थे, जिनकी उम्र 18 और 15 साल थी। तीसरा उनका दोस्त था, वह भी 15 साल का था।
इस घटना के बाद जमकर धार्मिक उन्माद फैलाया गया और मुस्लिम संप्रदाय के खिलाफ एक राजनीतिक माहौल बनाकर बुल्डोजर कानून को सही बताया गया। कई राजनेताओं ने इस मामले पर तीखे बयान दिए और एक तरह से प्रशासन पर कार्रवाई करने का दबाव बनाया।
पांच महीने बाद, 15 दिसंबर 2023 को, शिकायतकर्ता सावन लोट और उनके दोस्त और गवाह अजय खत्री मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के समक्ष अपने बयान से पलट गए और कहा कि उन्होंने न तो आरोपियों की पहचान की है और न ही उन्हें जुलूस पर थूकते हुए देखा है।
लिखित बयानों में, उन्होंने अदालत के सामने कहा कि पुलिस ने उनसे शिकायत पर हस्ताक्षर कराए थे, भले ही उनका विवरण पहली सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के एक हिस्से से मेल नहीं खाता था।
15 दिसंबर 2023 को, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ ने अशरफ के 18 वर्षीय बेटे अदनान मंसूरी को जमानत दे दी, जो इस मामले में एकमात्र वयस्क आरोपी था और जो 18 जुलाई से 151 दिनों तक जेल में था। न्यायाधीश ने कहा कि चश्मदीद गवाह अजय खत्री भी मुकर गया और अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया।
(उक्त ख़बर के कई अंश लाइव लॉ और आर्टिकल 14 की खबर से लिए गए हैं आर्टिकल 14 की खबर को पत्रकार काशिफ काकवी ने लिखा है।)