सोपा पर संकट: वादे अधूरे, सदस्यों में असंतोष


SOPA, जो कभी सोयाबीन प्रोसेसर्स के हितों की रक्षा करने वाला प्रमुख संगठन था, अब अपने उद्देश्यों को पूरा करने में असफल हो रहा है। संगठन की निष्क्रियता, पारदर्शिता की कमी, और खर्चीले आयोजनों पर फोकस ने सदस्यों और हितधारकों के बीच असंतोष पैदा कर दिया है। SOPA की डिजिटल उपस्थिति भी कमजोर है, और इसके प्रमुख उद्देश्यों पर ध्यान न देने के कारण इसकी प्रासंगिकता घट रही है। सुधार की तत्काल आवश्यकता है, अन्यथा संगठन अप्रासंगिक हो सकता है।


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उनकी बात Published On :

सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA), जिसे कभी सोयाबीन प्रोसेसर्स के हितों की रक्षा करने वाला एक प्रमुख संगठन माना जाता था, हाल के वर्षों में अपने मिशन को पूरा करने में विफल रहा है। SOPA के सदस्यों में इस बात को लेकर बढ़ती चिंता है कि संगठन की गतिविधियाँ उसके घोषित उद्देश्यों से मेल नहीं खा रही हैं।

 

SOPA हर साल एक वार्षिक संकल्प पत्र की तरह एजेंडा तय करता है, लेकिन वर्ष भर में कोई ठोस प्रगति नहीं होती। संगठन के अध्यक्ष के पास समय का अभाव होता है और पद के लिए आंतरिक संघर्ष चलते रहते हैं, जिससे संगठन का ध्यान उसके सदस्यों और सोयाबीन उत्पादकों से भटक गया है। SOPA केवल अपने हितों की पूर्ति के लिए किसान और सोया उद्योग की बात करता है, और इसके लिए साल में एक बार खर्चीले आयोजन किए जाते हैं।

 

उद्योगपतियों की चिंता

कुछ उद्योगपतियों का मानना है कि SOPA के प्रमुख खिलाड़ी फिर से एक पारंपरिक, अत्यधिक खर्चीला आयोजन कर रहे हैं, जिसे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का नाम देकर विशिष्ट दिखाने की कोशिश की जा रही है। SOPA ने इस आयोजन को सोयाबीन व्यवसाय से जुड़े अंतरराष्ट्रीय मुद्दों से संबंधित बताया है। सूत्रों के अनुसार, इस कार्यक्रम में मंत्री भी शामिल होंगे, लेकिन यह आयोजन किस उद्देश्य से हो रहा है, यह SOPA के बड़े खिलाड़ी और मंत्री ही बता सकते हैं।

 

विशेषज्ञों का कहना है कि SOPA अपने हित साधने में माहिर है और सत्ता को प्रभावित करने के लिए सोया लॉबी, शुगर और कॉटन लॉबी जैसी अन्य लाबियों की तरह काम करती है। संगठन आयात-निर्यात नीति, सोयाबीन के भाव, सोया ऑइल और डीओसी से जुड़े नियमों को प्रभावित करने के लिए सत्ता के साथ समझौते करता है। कई बार सरकारी फरमाइश पर भी SOPA को इस तरह के खर्चीले आयोजन करने पड़ते हैं। कुछ उद्योगपति मानते हैं कि इन आयोजनों का उपयोग चुनावी फंडिंग के लिए भी किया जाता है, जिससे मध्यम और छोटे सोया उद्योगों की आर्थिक मुश्किलें बढ़ती हैं।

 

संगठन में घटती गतिविधि

SOPA की घटती गतिविधि, पारदर्शिता की कमी और पुरानी डिजिटल उपस्थिति के कारण, संगठन अपने सदस्यों और उद्योग की सेवा करने में पिछड़ता जा रहा है। SOPA की वेबसाइट (www.sopa.org) को 2020 से अपडेट नहीं किया गया है, जो संगठन की लापरवाही का एक प्रमुख उदाहरण है। डिजिटल युग में, SOPA की वेबसाइट सुस्त, खराब तरीके से संचालित और सदस्यों की जरूरतों से कटी हुई प्रतीत होती है।

 

उपयोगिता पर सवाल

SOPA के प्रमुख उद्योग चर्चाओं और सरकारी पहलों में प्रतिनिधित्व की कमी के कारण सदस्य अब संगठन के साथ अपने जुड़ाव की उपयोगिता पर सवाल उठा रहे हैं। वार्षिक सदस्यता शुल्क और अन्य योगदानों के बावजूद, सदस्यों को कोई ठोस परिणाम देखने को नहीं मिल रहा है। SOPA की निष्क्रियता और पारदर्शिता की कमी ने इसके हितधारकों के बीच निराशा बढ़ा दी है।

 

सुधार की ज़रूरत 

भारत में सोयाबीन उद्योग एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है, और SOPA को अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए सुधार करने की आवश्यकता है। संगठन की डिजिटल उपस्थिति को अपडेट करना, संचार में सुधार करना और सदस्यों की चिंताओं के प्रति अधिक उत्तरदायी होना विश्वास बहाली के लिए आवश्यक कदम हैं। अगर SOPA इन सुधारों को नहीं अपनाता, तो संगठन अप्रासंगिक हो सकता है।



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