लाखों बच्चों की थाली पर संकट, स्वसहायता समूहों को महीनों से भुगतान नहीं, मुंह छिपा कर करनी पड़ती है शिकायत


कई मांगों के साथ यह समूह 21 फरवरी को आंदोलन करने जा रहे हैं।


ब्रजेश शर्मा
उनकी बात Updated On :

नरसिंहपुर। जिले के हजारों बच्चों की सरकारी थाली पर आफ़त आ चुकी है। इसकी वजह है इन बच्चों को खाना देने वाले स्वसहायता समूह, जिनका भुगतान अफसरों ने रोक दिया है। इन समूहों को पिछले चार महीने से पैसे नहीं मिले हैं। इसका असर यह हुआ है कि समूहों पर बाजार का उधार बढ़ गया है और अब वे बंद होने की कगार पर आ गए हैं।

अगर ऐसा होता है तो जिले के करीब दो हजार आंगनवाड़ी और तीन हजार स्कूलों में लाखों बच्चों को खाना मिलना मुश्किल हो जाता है। इन बच्चों को एक समय का नाश्ता और एक समय का भोजन दिया जाता है। समूहों को राशि क्यों नहीं मिली इसका कोई जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है लेकिन जो खबरें सामने आ रहीं हैं उनके मुताबिक मामला कमीशन से जुड़ा हुआ है।

स्व सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं से जब इस बारे में बात करने की कोशिश की तो उन्होंने अपना मुंह छिपा लिया। महिलाएं कहती हैं कि अगर सरकारी अधिकारी पहचान गए तो जीना मुश्किल कर देंगे और बड़ी बात नहीं कि उन्हें बेईमान साबित कर पुलिस केस भी करवा दें और समूह बंद करा दें। एक अन्य महिला ने बताया कि उन्हें खाद्यान्न विभाग से मिलता है और उसका पैसा हर बार नियमानुसार काटा जाता है। इसके अलावा खाने में प्रयोग होनेवाली दूसरी वस्तुएं जैसे मसाले और सब्जी आदि उन्हें खुद खरीदनी पड़ती है। ऐसे में उन्हें खाना बनाने के लिए केवल अनाज ही मिला है और दूसरी सामग्री के लिए पैसा नहीं मिला।

महिलाएं बताती हैं कि काफी मांग करने के बाद बीते साल दिसंबर में एक महीने का भुगतान हुआ लेकिन वह पैसा भी अक्टूबर का बकाया था। इस तरह उधारी अब तक कुल चार महीने की हो गई है। इससे स्थिति बिगड़ रही है। कई केंद्रों और स्कूलों में तो यह व्यवस्था बंद होने की कगार पर है।

भोजन देने की व्यवस्था लगभग 55 सौ से ज्यादा स्व सहायता समूह संभालते हैं। खाना बनाने वाली महिलाओं के यह समूह वित्तीय रूप से कोई बहुत सक्षम नहीं होता है।  जिन्हें आहार के लिए 7.80 रुपये प्रति छात्र की दर पर राशि उपलब्ध कराई जाती है। इस राशि से एक नाश्ता और एक समय का भोजन उपलब्ध कराया जाता है। इन समूहों को पिछले 4 महीने से यह राशि नहीं मिली है। ऐसे में अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं कि किस तरह ये समूह अपना खर्च चला पा रहे हैं। महिलाएं कहती हैं कि जब इस भोजन के लिए राशि ही समय पर नहीं मिलेगी तो व्यवस्था ठीक तरह से नहीं चल सकती और भोजन की गुणवत्ता पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ता है।

समूह की महिलाएं बताती हैं कि उनके इलाकों से विकास यात्रा निकल रही है। लोगों ने नेताओं से भी इसकी शिकायत की लेकिन नेताओं ने ध्यान नहीं दिया। अधिकारियों को सब पता है लेकिन वे इस पर बात करना नहीं चाहते हैं। एक समूह की महिलाएं बताती हैं 4-4 महीने से उधार राशन ले रहे हैं। ऐसे में कई समूह वित्तीय रूप से परेशान हैं और पिछड़े इलाकों के स्कूलों व आंगनवाड़ी केंद्रों कई समहूों ने भोजन देना बंद कर दिया है या फिर बंद कगार पर पहुंच गए हैं।

स्वसहायता समूहों की यह परेशानी नई नहीं है। एक बार यह मामला विधानसभा में भी गूंज चुका है। जब कहा गया था कि अफसर स्वसहायता समूह से 20% कमीशन मांगते हैं लेकिन इसके बाद भी कोई खास असर नहीं हुआ।

प्रभारी अधिकारी राधेश्याम वर्मा से जब इस बारे में पूछा गया कि उनका जवाब था बताइए “कहां नहीं मिल रहा है खाद्यान्न”।  जब उनसे मानदेय के बारे में पूछा गया तो कहा गया कि दिसंबर का मानदेय अभी दिया जा रहा है और जनवरी का शेष है। यानी अधिकारी के मुताबिक जिले में सबकुछ ठीक है। लेकिन उनके यह जवाब जिले में मची उथल-पुथल से मेल नहीं खाते।

इस मामल में जिला पंचायत सीईओ डॉ. सौरभ सोनवड़े का कहते हैं कि जी हां स्वसहायता समूह की इस परेशानी का पता चला है उन्होंने ज्ञापन भी दिया है। हमने इसके हल के लिए शासन स्तर पर लिखा है।

इसके अलावा भी स्वसहायता समूह परेशान हैं। इन समूहों का कहना है कि उन्हें बेहद कम मानदेय दिया जाता है और बच्चों के राशन के लिए मिलने वाली राशि भी बहुत कम है। अपनी मांगों को लेकर ये स्वसहायता समूह आंदोलन करने जा रहे हैं। यह आंदोलन 21 फरवरी से शुरु हो रहा है। इसे चूल्हा बंद आंदोलन का नाम दिया गया है।

समूहों ने मांग की है कि उनके रसोईयों की मानदेय राशि पांच हजार रुपये की जानी चाहिए जो कि अभी दो हजार रुपये है। भोजन के लिए प्रति बच्चे के हिसाब से खर्च 10 और पंद्रह रुपये किया जाए। सांझा चूल्हा के तहत खाद्यान्न राशि बेहद कम दी जाती है इसे बढ़ाया जाए और इस काम में ठेकेदारी की प्रथा खत्म की जाए।


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