RTI एक्ट में संशोधन के खिलाफ उठी आवाज, सिविल सोसाइटी ने की वापसी की मांग


RTI अधिनियम में संशोधन के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ताओं का विरोध। प्रशांत भूषण, अरुणा रॉय और अंजलि भारद्वाज सहित कई संगठनों ने सरकार से संशोधन वापस लेने की मांग की। जानें पूरा मामला।


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उनकी बात Updated On :

सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम में हाल ही में किए गए संशोधनों को लेकर देशभर की सिविल सोसाइटी और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कड़ा विरोध जताया है। सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण, RTI कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज, अरुणा रॉय, एम.एम. अंसारी और कई अन्य संगठनों ने 21 मार्च 2025 को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सरकार से इन संशोधनों को वापस लेने की मांग की।

 

क्या है RTI एक्ट में नया बदलाव?

डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) एक्ट की धारा 44(3) के तहत किए गए संशोधनों ने RTI अधिनियम को कमजोर कर दिया है। सामाजिक संगठनों का कहना है कि इन बदलावों के कारण सरकारी संस्थानों और अधिकारियों से जवाबदेही मांगना कठिन हो गया है।

संशोधन के तहत RTI एक्ट की धारा 8(1)(j) में बदलाव किया गया है, जिससे अब व्यक्तिगत सूचना के खुलासे पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है। इससे पहले, जब कोई सूचना सार्वजनिक हित से जुड़ी होती थी, तो उसे साझा किया जा सकता था। लेकिन अब बिना शर्त किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत जानकारी को छिपाने की छूट दे दी गई है।

 

सामाजिक कार्यकर्ताओं की आपत्ति

RTI कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने कहा कि नया संशोधन सूचना के अधिकार अधिनियम की मूल भावना के खिलाफ है। पहले यह प्रावधान था कि “जो जानकारी संसद या राज्य विधानसभा से नहीं छिपाई जा सकती, उसे आम नागरिकों से भी नहीं छिपाया जाएगा।” लेकिन अब यह नियम हटा दिया गया है।

निकिल डे (NCPRI, MKSS) ने कहा कि सरकार गोपनीयता की आड़ में RTI एक्ट की शक्ति को खत्म करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा, “इस संशोधन का असली उद्देश्य जनता की पहुंच से सरकारी जानकारी को दूर रखना है।”

 

RTI अधिनियम पर बढ़ता खतरा

पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त एम.एम. अंसारी ने कहा कि RTI अधिनियम को पहले भी कई बार कमजोर किया गया है।

2019 के संशोधनों में सूचना आयोगों की स्वतंत्रता को कम किया गया था। अब नए संशोधनों से सरकारी गोपनीयता को और बढ़ाया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि यह संशोधन नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार अपने फैसलों में सूचना के अधिकार को एक मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया है।

 

क्या होगा असर?

सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इन संशोधनों से जनता की सरकारी डेटा तक पहुंच मुश्किल हो जाएगी। इसका असर इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर पड़ेगा:

✔ जन वितरण प्रणाली (PDS) से जुड़ी जानकारी छिपाई जा सकती है।

✔ मतदाता सूची (Electoral Rolls) में पारदर्शिता घटेगी।

✔ सरकारी फंड और योजनाओं में हो रहे भ्रष्टाचार को उजागर करना मुश्किल होगा।

 

सरकार से संशोधन वापस लेने की मांग

RTI कार्यकर्ताओं और 30 से अधिक संगठनों ने सरकार से मांग की है कि:

1. RTI अधिनियम के मूल प्रावधान बहाल किए जाएं।

2. सूचना का अधिकार अधिनियम को कमजोर करने वाले सभी संशोधन तुरंत वापस लिए जाएं।

3. पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए RTI अधिनियम को और मजबूत किया जाए।

 

अरुणा रॉय ने कहा, “RTI एक्ट को कमजोर करना लोकतंत्र पर सीधा हमला है। यह अधिनियम करोड़ों लोगों को सरकारी सूचनाओं तक पहुंचने और अपने अधिकारों की रक्षा करने का साधन देता है।”

RTI कार्यकर्ताओं का मानना है कि अगर सरकार ने इस संशोधन को वापस नहीं लिया, तो यह सूचना के अधिकार के लिए एक बड़ा झटका होगा। आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर कानूनी और राजनीतिक लड़ाई तेज हो सकती है। अब देखना होगा कि सरकार इस विरोध पर क्या रुख अपनाती है।