इंदौर। प्रदेश के विधानसभा चुनावों के शतरंज बिसात बिछ चुकी है। मप्र के मालवा निमाड़ के साथ देशभर में आदिवासियो के राजनीतिक तेवर देखकर भाजपा घबराई हुई है।
राष्ट्रपति पद पर वनवासी समुदाय की महिला द्रोपती मुर्मू को सौंपने के बाद भी भाजपा और संघ परिवार वनवासियों के वोट पाने के प्रति आश्वस्त नहीं हैं। संघ बीते कई दशकों से मैदानी से लेकर अति दुर्गम वनवासी इलाकों में सेवा, त्याग और बलिदान के साथ काम कर रहा है।
आदिवासी समुदाय हिंदू हैं या नहीं यह बहस दशकों या कहें एक सदी से ज्यादा पुरानी हो चुकी है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ इस बहस के दूसरे सिरे पर खड़ा है जो कहता है आदिवासियों को पूरी तरह हिंदू बताता है। ऐसे में हिंदू समाज की मुख्य धारा में वनवासियों को लाने के लिए अब संघ ने खुला नारा दे दिया हैं आमू आखा हिंदू छे, यानी हम (वनवासी) पूरी तरह से हिंदू हैं।
जंगल के इस समाज ने हर तरह के भयावह रूप से गरीबी , उपेक्षा ,शोषण, आदि से जूझते हुए हर समय सरकारों के अत्याचारों को झेला है। वनवासियों को अपने साथ जोड़ने के लिए हर तरह की सरकारों और हर तरह की धर्मी / अधर्मी विचारधारा की खूनी लड़ाई लड़ने वाले राजनैतिक दलों , नक्सल बाद और धर्मांतरण से जुड़े धर्म संप्रदाय की साजिशो की बड़ी कीमत वनवासियों ने चुकाई है।
इस समय देशभर में वनवासियों के वोट बैंक को हासिल करने की राजनीतिक कोशिश हो रही है। संघ और भाजपा इसके लिए बड़ी ताकत झोंक रही हैं। वनवासियों में अभी तक कांग्रेस और वामपंथ की राजनीति धर्मांतरण की घिनौनी साजिशो के साथ हावी थी।
एक वर्ग गांधी विचारधारा के साथ वनवासियों के अधिकारों और जंगल के साथ इनके समृद्ध व आत्मनिर्भर जीवन को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है। ज़ाहिर है कि संघ परिवार की राह में ये सभी बाधक हैं क्योंकि आदिवासियों के हिंदू पद्धति से जीवन जीने के कम ही सुबूत हैं।
संघ अपने तय हिंदू राष्ट्र के विचार और भाजपा के लिए राजनितिक सत्ता हासिल करने की लड़ाई लड़ रहा है। संघ केंद्र में और भाजपा शासित सभी राज्यों में हर कीमत पर आगामी चुनावों में सत्ता हासिल करने के लिए आक्रामक संघर्ष कर रहा है।
यह राजनेतिक संघर्ष 2024 में फिर मोदी सरकार की कायमी को लेकर ज्यादा है। देश की कुल 80 लोकसभा सीट आदिवासियो के लिए आरक्षित है।
राज्यो में भी चुनावी समीकरण में वनवासी निर्णायक हे। क्षेत्रों के अनुसार संघ वनवासी नायकों को सामने ला रहा हैं। बिरसा मुंडा को ईश्वर रूप माना गया है।
वनवासियों को उनके हिंदू होने के वनशानुगत इतिहास से परिचित करवाया जा रहा हैं। चुनावी राज्यो में फील वक्त अपरोक्ष राजनीतिक वनवासी जागरण चल रहा है ।इस लक्ष्य में वनवासी समाज के प्रबुद्ध , ऊर्जावान और विषय विशेषज्ञ लोगो को संघ प्रचारकों के साथ तैनात किया है।
उदाहरण के तौर पर मप्र में बीजेपी सरकार और उसके छोटे से लेकर बड़े नेता व शासन तंत्र के किए फिर सत्ता पाना फिलहाल टेड़ी खीर है। ”
सत्ता हर कीमत पर “के हुकुम से बंधी भाजपा और इसकी सरकार की राह में वनवासी वोट चुनौती बन गए है इसलिए जनजातीय दिवस, बिरसा मुंडा जयंती , टांटया मामा की प्रतिमा लगाना आदि आदि जैसे उपक्रम सजाए जा रहे हैं क्योंकि मप्र में कुल जमा 230 विधानसभा सीटों में सबसे ज्यादा महत्व की सीट जनजाति इलाकों की है। इन्हीं आदिवासी बहुल इलाकों की 47 जनजातीय सीट इस सियासी बिसात पर मोहरे की तरह इस्तेमाल हो रही हैं।
सियासी दलों द्वारा इन विधानसभा क्षेत्रों में तरह-तरह के ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक – राजनीतिक इंजीनियरिंग की जा रही है।
इन 47 सीट के अलावा करीब 35 ऐसी सीटें भी हैं जहां वनवासी निर्णायक होते हैं। इस तरह कुल 230 में से जनजातीय वर्ग की 47 आरक्षित और अन्य करीब 33 सीट का खेल सियासी दल खेल रहे हैं। इनमें मालवा निमाड़ का वनवासी इलाका आदिवासी वोट बैंक अहम है।
विधानसभा चुनाव में किसी भी कीमत पर फिर सत्ता पाने की भाजपा आलाकमान की एक ही शर्त की खातिर प्रदेश भाजपा और सरकार पर नकेल कसते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने वनवासियों को उनके गौरवशाली अतीत की परंपराओं , धर्म ,संस्कृति से अवगत कराने के लिए सघन संपर्क अभियान छेड़ा है। संघ के लिए सबसे जरूरी काम जयस से वनवासी युवाओं को दूर करना हे।इस काम में संघ ने ताकत लगा दी है।
वनवासियों के बीच संघ एकसाथ कई मोर्चों पर लम्बे समय से काम कर रहा हैं। संघ से जुड़े पदाधिकारी कहते है कि आदिवासी समुदाय में बीजेपी के बिगाड़े को ठीक करना , कांग्रेस और ईसाई मिशनरी की जड़े कमजोर करना और जयस का ईलाज करना संघ के लिए बड़ी चुनौती है। इनके प्रभाव से युवाओं को मुक्त करना जरूरी है। इसके लिए वनवासी विद्यार्थी वर्ग से संपर्क किया जा रहा है।
योजनानुसार वनवासी युवाओं को टारगेट कर संवाद शुरु किया है। इसके लिए बड़ी बड़ी इवेंट नुमा राजनीतिक झाड़ फूंक अभियान चल रहे है। इस में जनजातीय समाज के युवा लक्ष्मण मरकाम को विशेष दायित्व दिए गए है। संघ की टोली से वे सरकार में विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी (ओएसडी) हैं।
नेवी (जल सेना ) से मप्र सरकार में सीधे ओएसडी के पद पर संघ द्वारा बैठाए गए मरकाम जनजातीय विषयों के विभिन्न ऐतिहासिक ,धार्मिक , सांस्कृतिक आदि पहलुओं को खंगालने का काम करते हैं।
पिछले कुछ समय से वे लगातार इंदौर और आसपास प्रवास कर रहे है। उन्हें वनवासी विद्यार्थियों के बीच जाकर बौद्धिक देने और संघ के सोशल मीडिया से कनेक्ट करने का काम भी दिया गया है। इसे मरकाम पेशेवर तरीके से कर रहे हैं।
बताया जा रहा है कि वे लगातार सरकार के आदिम जाति विभाग के शेक्षणिक संस्थानों का भ्रमण कर रहे हैं। इंदौर में उन्होंने ऐसे संस्थानों के युवा छात्र छात्राओं के बीच पहुंचकर उनसे जीवंत संवाद किया है।
वनवासी विद्यार्थियों के शासकीय कोचिंग केंद्र के साथ होस्टल आदि में भी संपर्क किया जा रहा है। युवाओं से मुखातिब होने के साथ संबंधित अधिकारियों के साथ भी मीटिंग करते हैं। इसके अलावा शिक्षा महकमे के नीतिगत मामलों में भी दखल रखते हैं।
मरकाम का उद्देश्य युवाओं से संवाद करना है।इसके साथ , स्वयं (मरकाम) के फेसबुक / सोशल मीडिया नेटवर्क से आदिवासी युवाओं को जोड़ना है।
इस तरह आदिवासी तरुणाई से वे सीधे जुड़ कर उनकी गतिविधियों से अवगत हो सकेंगे। संघ के नेताओ का मानना है कि इस माध्यम से वनवासियों को उनके ऐतिहासिक , धार्मिक ,सांस्कृतिक ,पौराणिक , धर्म परिवर्तन , मुस्लिम कट्टरपंथ,आतंकवाद , राष्ट्रवाद स्वतंत्रता संग्राम के नायक रहे वनवासी बंधुओं का बलिदान आदि महत्व के गंभीर विषयों की जानकारियां दी जा रहीं हैं। संघ की कोशिश है कि इस तरह वे आदिवासियों को हिन्दुत्व की विचारधारा से जोड़ सकेंगे।
हालांकि चुनाव के करीब साल भर पहले हो रही इस संघ की इस राजनीतिक, सांस्कृतिक कसरत से वनवासी युवा, जयस और कांग्रेस के प्रभाव से किस सीमा तक मुक्त हो रहे हैं यह तो साल भर बाद ही पता चलेगा
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