नर्मदा नदी पर चुटका परमाणु संयंत्र: सवालों की गूंज और विरोध की आवाज


चुटका परमाणु संयंत्र के निर्माण पर नर्मदा नदी के किनारे विरोध बढ़ता जा रहा है। क्षेत्रीय संगठनों ने परियोजना के संभावित पर्यावरणीय प्रभाव और भूकंपीय गतिविधियों को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। क्या इस परियोजना की सुरक्षा और स्थानीय समुदायों की चिंताओं को नजरअंदाज किया जा रहा है?


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उनकी बात Published On :

चुटका परमाणु संयंत्र के निर्माण में तेजी लाने की खबर से क्षेत्र में हलचल बढ़ गई है। चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति के दादु लाल कुङापे और मीरा बाई मरावी, तथा बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के राज कुमार सिन्हा ने संयुक्त बयान जारी किया है।

बयान में कहा गया है कि परियोजना को लेकर उठाए गए सवालों के जवाब अब तक नहीं मिले हैं। नर्मदा घाटी में पिछले तीन वर्षों में 37 बार भूकंप आ चुका है। चुटका परियोजना में भी विस्फोटक गतिविधियों के कारण भूगर्भीय हलचल की संभावना है। आपदा प्रबंधन संस्थान, भोपाल की रिपोर्ट के अनुसार, मंडला जिले की टिकरिया (नारायणगंज) भूकंप संवेदी क्षेत्रों में शामिल है। वर्ष 1997 में इस क्षेत्र में 6.4 रेक्टर स्केल का भूकंप आ चुका है।

संगठन ने पूछा है कि यदि किसी दुर्घटना की स्थिति उत्पन्न होती है, तो आसपास के आदिवासी गांवों को तत्काल खाली कराने की क्या योजना है। साथ ही, नर्मदा नदी की जैव विविधता और पानी की गुणवत्ता पर पड़ने वाले असर को कैसे संतुलित किया जाएगा, यह भी स्पष्ट नहीं है।

संघ ने यह भी चिंता जताई है कि परमाणु परियोजना के सुरक्षा दायरे में रहते हुए बेरोजगारी और प्रभावित परिवारों की आजीविका के लिए क्या योजना बनाई जाएगी। वर्तमान में, चुटका परियोजना की लागत 21 हजार करोड़ रुपये है, और परियोजना की डिकमिशनिंग (बंद करना) पर समान खर्च होने की संभावना है। 1 मेगावाट बिजली उत्पादन की लागत 20 करोड़ रुपये आती है, जो अन्य स्रोतों की तुलना में महंगी है।

संघ ने मांग की है कि चुटका संयंत्र से उत्पादित बिजली की दर सार्वजनिक की जाए, स्थानीय आदिवासी समुदायों की चिंताओं को प्राथमिकता दी जाए, और इस परियोजना के खतरों पर व्यापक विमर्श हो।



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