गन्ने को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में शामिल करना चाहते हैं किसान, हर साल हो रहे नुकसान से राहत नहीं


नरसिंहपुर प्रदेश का सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक जिला है लेकिन यहां के किसान फसलों पर जंगली सूअर, आवारा जानवरों और मौसमी नुकसान से हैं परेशान


ब्रजेश शर्मा
उनकी बात Updated On :

खेती किसानी आसान नहीं है। साल भर बरसात, ठंड और गर्मी में खेत – खलिहान में काम करना किसान के अलावा किसी दूसरे के लिए बूते के बाहर है फिर भी उन्हें अफसोस रहता है कि साल भर खेती करने के बाद भी उनके हाथ में ज्यादा कुछ नहीं आता। फसल आने पर अनाज के सही दाम भी नहीं मिलते, अपने अनाज के दाम किसान नहीं बल्कि दूसरे तय करते हैं।

दाम और सुविधाओं को लेकर किसान हमेशा सरकार से उम्मीद लगाए रखता है परंतु निराशा और सरकार के कोरे वादे ही उसके हक में हैं, यही कुछ गन्ना उत्पादक किसानों के साथ है, खेती बाड़ी में हर साल बढ़ रही लागत और प्राकृतिक आपदाओं से तंग गन्ना किसान अरसे से सरकार से यह मांग कर रहे हैं कि गन्ने की फसल को भी प्रधानमंत्री बीमा योजना में शामिल किया जाए पर सरकार इस तरफ अनदेखा कर रही है।

समूचे मध्य प्रदेश में नरसिंहपुर जिला सबसे उम्दा खेती-बाड़ी वाला जिला है। जहां मध्य प्रदेश के कुल गन्ना उत्पादन का 60% से अधिक हिस्सा नरसिंहपुर से है, यहां करीब 65000 हेक्टेयर से अधिक में गन्ने का उत्पादन होता है पर हर साल कई हजार हेक्टर की फसल जंगली सुअर, आवारा मवेशी और विभिन्न तरह की प्राकृतिक आपदाओं की भेंट चढ़ जाती है। किसान को इसकी क्षतिपूर्ति नहीं मिल पाती, किसान पिछले कई सालों से यह मांग कर रहे हैं कि गन्ने की फसल को भी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में लागू किया जाए।

जिले में गन्ने का उत्पादन पिछले तीन दशक में सबसे ज्यादा बढ़ा है, पहले मध्य प्रदेश का प्रमुख सोयाबीन उत्पादक जिला यह था लेकिन जैसे-जैसे यहां नगदी फसल के रूप में कुछ किसानों ने गन्ना लगाना शुरू किया और एक दो शुगर मिल शुरू हुईं तो किसान प्रोत्साहित हुए और उन्होंने गन्ना लगाने में ही अपना भला समझा परंतु अब उनके लिए धीरे-धीरे यह समस्या भी बनता जा रहा है।

किसानों की इस समस्या को उन्हीं के शब्दों से समझा जा सकता है। ग्राम बीतली के गन्ना उत्पादक किसान राम शंकर कौरव, पिछले साल उनकी गन्ने की फसल अप्रैल के महीने में खेत से निकले बिजली के झूलते तारों में हुए शॉर्ट सर्किट के कारण जल कर खाक हो गई पर अफसोस है कि उन्हें क्षतिपूर्ति का एक पैसा नहीं मिला। कहते हैं कि  साल भर उन्होंने गन्ने की फसल को बड़ी उम्मीदों से सहेजा था लेकिन किसी आपदा की स्थिति में उनकी सहायता का कोई इंतज़ाम नहीं है।

हर साल फरवरी, मार्च से जून तक आगजनी की पचासों घटनाएं शार्ट सर्किट की वजह से होती है जिससे कई किसानों के गन्ने के खेत जल जाते हैं। किसान मुआवजे के रूप में एक पैसा भी नहीं पाते हैं। वजह है कि गर्मी के वक्त गन्ने के उपरी हिस्से के पत्ते सूख जाते हैं और शार्ट सर्किट से थोड़ी सी भी चिंगारी पूरे खेत के लिए काल बन जाती है। सरकार के नियम कायदों में शार्ट सर्किट की वजह से आगजनी की घटना से क्षतिपूर्ति के कोई प्रावधान नहीं है।

जंगली सूअर, आवारा मवेशीः-  जंगली सुअरों और बेसहारा मवेशियों के लिए गन्ने और उसके पत्ते रोचक भोजन होते हैं । हर साल बड़ी तादाद में बड़े रकबे में जंगली सूअर, जंगली जानवर और बेसहारा मवेशी भोजन के लिए रात के वक्त गन्ने की फसल तबाह कर जाते हैं। जिले की भौगोलिक स्थिति कुछ इस तरह की है कि अधिकांश बड़ा क्षेत्र पहाड़ी इलाकों से घिरा है, जहां बड़ी संख्या में जंगली सूअर, जंगली जानवर शाम ढलने से सुबह तक खेत खलिहानों को निशाना बनाते हैं। शिकायत के बावजूद वन विभाग का अमला इस समस्या से किसानों को राहत दिलाने में लाचार रहता है।

ग्राम दिलहेरी के किसान लखन पाली, मुकेश पटेल, गोविंद मेहरा राकेश ठाकुर बीरन ठाकुर कहते हैं कि बसाहट से लगे पहाड़ी क्षेत्र से बड़ी संख्या में जंगली सुअरों की फौज आती है और खेतों को निशाना बनाकर हर फसल चौपट करती है पर प्रशासन इस समस्या से कुछ निजात नहीं दिलाता। ग्राम समनापुर के कई किसान अंकित पटेल, रोशन लाल बाबूलाल दौलत सिंह भी यही समस्या बताते हैं।

गन्ने का कोई मुआवजा नहीं मिलता…

जितेंद्र सिंह सांकल गांव के निवासी हैं, वह अपने साढ़े आठ एकड़ खेत में गन्ना लगाते हैं। उनका पड़ोसी खेत वाला किसान खरीफ और रबी की फसल में मक्का, सोयाबीन , उड़द, गेहूं, चना की फसल लेता है। कभी आपदा आती है तो पटवारी मक्का, गेहूं , चना आदि का सर्वेक्षण करता है। फसल की क्षति का आकलन कर सर्वे रिपोर्ट भेज देता है जिसके आधार पर मुआवजा मिल जाता है लेकिन गन्ने की फसल बर्बाद भी बर्बाद होने पर वह सर्वे में नहीं आती। हर साल प्राकृतिक आपदाओं विशेष तौर पर अतिवृष्टि, ओलावृष्टि, तुषार, पाला से गन्ने को नुकसान पहुंचता है लेकिन इस प्राकृतिक आपदा की क्षतिपूर्ति किसानों को नहीं मिल पाती। गर्मी के वक्त भी बिजली की आपूर्ति ठीक ढंग से नहीं रहती। वोल्टेज का उतार चढ़ाव रहता है जिससे कई ट्रांसफार्मर ठप हो जाते हैं। गर्मी के वक्त गन्ने को पानी नहीं मिल पाता। सिंचाई के अभाव में फसल सूख जाती है लेकिन इसकी क्षतिपूर्ति के कोई प्रावधान नहीं है।

कटाई का प्रयोग नहीं इसलिए गन्ने की फसल बीमा योजना में शामिल नहींः गन्ने की फसल को प्रधानमंत्री बीमा योजना में सिर्फ इसलिए शामिल नहीं किया गया कि यह कटाई यथार्थ हार्वेस्टिंग के प्रयोग के नियम में नहीं आती। साल भर 10 से 12 महीने में पककर तैयार होने वाली यह नगदी फसल के रूप में है इसलिए इसे बीमा योजना में शामिल नहीं किया गया है। जबकि किसान गन्ना बोने के बाद साल भर तीन सीजन की कोई फसल नहीं ले पाता। इस सिलसिले में उपसंचालक कृषि उमेश कुमार कटहरे कहते हैं कि यह नगदी फसल है। इसमें हार्वेस्टिंग का प्रयोग नहीं है। इस वजह से इसे बीमा योजना में शामिल नहीं किया गया है।

सहायक मिट्टी परीक्षण अधिकारी डॉ. आरएन पटेल भी यही कहते हैं कि इसमें हार्वेस्टिंग का प्रयोग नहीं है इसलिए इसे शासन ने शामिल नहीं किया है। हरियाणा या देश के किसी राज्य में जरूर गन्ने की फसल बीमा योजना में शामिल है लेकिन अफसोस है कि सबसे ज्यादा खेती बाड़ी वाले सूबे मध्य प्रदेश में यह बीमा योजना के लिए अधिसूचित नहीं है।

किसान एडवोकेट नीलांबर पटेल, सुलभ जैन कहते हैं कि मध्य प्रदेश सरकार को चाहिए कि गन्ने की फसल को बीमा योजना में शामिल करे। जब सरकार के अधिकांश मंत्री कहते हैं कि वह किसान हैं, किसान के बेटे हैं तो क्या सरकार किसानों का दर्द नहीं समझती। सरकार को हर हाल में गन्ने की फसल को भी बीमा योजना में शामिल करना चाहिए।


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