परमाणु ऊर्जा नहीं, हमें सुरक्षित भविष्य चाहिए!


हैदराबाद में जन आंदोलनों का राष्ट्रीय अधिवेशन (NAPM) संपन्न हुआ, जिसमें परमाणु ऊर्जा नीति के विरोध में प्रस्ताव पारित किया गया। जानें क्यों पर्यावरणविद और स्थानीय समुदाय इसका विरोध कर रहे हैं।


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हैदराबाद में 1 से 4 मार्च तक आयोजित जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM) के राष्ट्रीय अधिवेशन में परमाणु ऊर्जा के विस्तार के विरोध में एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किया गया। इस प्रस्ताव को नेशनल अलायंस फॉर क्लाइमेट एंड इकोलॉजिकल जस्टिस, नेशनल अलायंस ऑफ एंटी-न्यूक्लियर मूवमेंट्स और चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति के अध्यक्ष दादु लाल कुङापे एवं बरगी बांध विस्थापित मत्स्य संघ के अध्यक्ष मुन्ना बर्मन ने संयुक्त रूप से प्रस्तुत किया।

 

परमाणु ऊर्जा: जनविरोधी और खतरनाक नीति

प्रस्ताव में कहा गया कि भारत सरकार द्वारा परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देने की नीति न केवल असुरक्षित और अलाभकारी है, बल्कि यह पर्यावरण और स्थानीय समुदायों के लिए घातक सिद्ध हो रही है। एनटीपीसी और एनपीसीआईएल के बीच हुए ₹80,000 करोड़ के समझौते का भी कड़ा विरोध किया गया, जिसमें मध्य प्रदेश सहित देश के कई राज्यों में नए परमाणु संयंत्रों की स्थापना की योजना बनाई गई है।

विशेष रूप से मध्य प्रदेश के चुटका, नीमच, देवास, सिवनी और शिवपुरी जिलों में प्रस्तावित परमाणु संयंत्रों को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की गई। इन परियोजनाओं से हजारों आदिवासी, किसान और मछुआरे विस्थापित होंगे और विकिरण से स्वास्थ्य व पर्यावरण को अपूरणीय क्षति पहुंचेगी।

 

चुटका परमाणु परियोजना का सतत विरोध

चुटका क्षेत्र में 2009 से ही आदिवासी समुदाय इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं। आरोप है कि सरकार ने जबरन भूमि अधिग्रहण किया और प्रभावित लोगों को उचित मुआवजा भी नहीं दिया गया। यह परियोजना मछुआरों, किसानों और स्थानीय आदिवासी समुदायों की आजीविका को नष्ट कर देगी। इसके बावजूद सरकार जनभावनाओं की अनदेखी कर रही है।

विदेशी कंपनियों की निर्भरता पर सवाल

एनएपीएम ने सरकार की फ्रांस की ईडीएफ, रूस की रोसटॉम और अमेरिका की वैस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक कॉर्पोरेशन जैसी विदेशी कंपनियों पर निर्भरता को भी राष्ट्रहित के विरुद्ध बताया। इससे न केवल भारत की संप्रभुता पर खतरा पैदा होता है, बल्कि सार्वजनिक जवाबदेही भी संकट में पड़ जाती है।

 

परमाणु ऊर्जा बनाम नवीकरणीय ऊर्जा

परमाणु ऊर्जा को स्वच्छ ऊर्जा के रूप में प्रचारित किया जाता है, लेकिन विकिरणीय कचरे, उच्च लागत और परमाणु दुर्घटनाओं के खतरे को देखते हुए यह टिकाऊ समाधान नहीं है। वैश्विक अनुभव यह दर्शाता है कि सौर, पवन और छोटे विकेन्द्रीकृत जलविद्युत परियोजनाएं अधिक सुरक्षित, सस्ती और पर्यावरण हितैषी हैं।

एनएपीएम की प्रमुख मांगें

इस सम्मेलन में निम्नलिखित 10 मांगों को सर्वसम्मति से पारित किया गया:

1. परमाणु विखंडन तकनीक को पूरी तरह से त्यागा जाए।

2. परमाणु ऊर्जा के भारी बजट को विकेन्द्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा विकास की ओर मोड़ा जाए।

3. स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर परियोजना को बंद किया जाए।

4. सभी यूरेनियम खदानों को बंद करने की समयबद्ध योजना बनाई जाए।

5. छोड़ी गई यूरेनियम खदानों की पारिस्थितिकी बहाली के लिए व्यापक योजना लागू की जाए।

6. सभी प्रभावित समुदायों का अध्ययन कर, उचित पुनर्वास और निःशुल्क चिकित्सा सहायता प्रदान की जाए।

7. सभी परमाणु रिएक्टरों के लिए एक समयबद्ध निष्कासन योजना लागू की जाए।

8. रेडियोधर्मी कचरे के स्थायी और सुरक्षित भंडारण की गारंटी दी जाए।

9. न्यूक्लियर डैमेज सिविल लायबिलिटी एक्ट को और मजबूत किया जाए।

10. भारत को वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण योजनाओं को गंभीरता से आगे बढ़ाना चाहिए।

 

 

 


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