नरसिंहपुर। खेती को लाभ का व्यवसाय बनाए जाने की बात तो लगातार हो रही है लेकिन किसानों के लिए फिलहाल यह दूर की कोड़ी नज़र आती है। किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती मौसम की होती है और इसके साथ कृषि पदार्थों की गुणवत्ता महत्वपूर्ण है। किसानों को खेती से लाभ हो न हो लेकिन खाद-बीज बनाने वाली कंपनियां इस पर जमकर मुनाफ़ा कमाती हैं।
नरसिंहपुर के किसान सुशान्त पुरोहित, समनापुर के किसान बाबूलाल पटेल, चरगवां के राकेश पटेल, पुनीत पाठक सहित कई किसानों ने चने की बुआई के लिए नामचीन कंपनी से चने का प्रमाणित बीज खरीदे थे। बुआई के समय इन किसानों को उस बीज में प्रतिबंधित तेवड़ा खेसारी के बीज भी मिले। अगर किसान बुआई करते हैं तो जब चने की फसल के साथ तेवड़ा भी आएगा तब फिर किसानों को फिर मुश्किलें झेलनी होंगी, क्योंकि कुछ दानों के कारण पूरा चना भी अमान्य हो सकता है। ऐसा बीते साल भी हुआ था जब चना उपार्जन में तेवड़ा युक्त चना नहीं खरीदा गया था।
ये किसान सवाल उठा रहे हैं कि राज्य और राष्ट्रीय स्तर की बीज प्रदाता कंपनियां भी किसानों के साथ धोखा क्यों कर रहीं हैं। किसान बाबूलाल पटेल के मुताबिक तेवड़ा दाल जब प्रतिबंधित है तो उसे बीजों में मिलाने के क्या मायने हैं। तेवड़ा दाल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है और यह तंत्रिका तंत्र को सुन्न कर देती है।
किसानों ने बताया कि उन्होंने कंपनी के प्रमाणित बीज खरीदे थे लेकिन जब कल्चर से पहले बीज हथेली पर देखे तो उसमें तेवड़ा के बीज भी नजर आ रहे थे। हालांकि इनकी मात्रा काफी कम करीब एक प्रतिशत थी लेकिन इनका होना ही गलत है।
किसान के मुताबिक इस समस्या पर उन्होंने अधिकारियों से बातचीत की तो उन्होंने फिलहाल बुआई करने और बाद में पौधे आने पर उन्हें उखड़वाने को कहा। अधिकारी के जबाब सुनकर किसान भी परेशान हैं। उनके मुताबिक एक तो प्रमाणित बीज पर भी विश्वास नहीं बचा है और बाद में मजदूरों से पौधों तेवड़े की पहचान करवाकर उन्हें उखड़वाना भी होगा। इस दौरान चने की फसल भी खराब होगी।
किसानों ने बताया कि कहने को एक पैकेट में केवल एक प्रतिशत ही प्रतिबंधित बीज मिल रहे हैं लेकिन यह समस्या केवल एक-दो किसानों की नहीं है बल्कि क्षेत्र के सैकड़ों या कहें कि हज़ारों किसानों की हो सकती है। सुशांत पुरोहित, बाबूलाल पटेल, पुनीत पाठक और राकेश पटेल ने बताया कि बड़ी कंपनियों के बीज भी महंगे आते हैं और अब इनका भी भरोसा नहीं है। राज्य और केंद्र सरकारें किसानों को तेवड़ा रहित चना की फसल की खेती को प्रोत्साहित कर रही है लेकिन किसानों को पैकेट बंद बैग में तेवड़ा मिश्रित बीज दे रही हैं।
रबी फसल के लिए किसान लगातार खेतों मे व्यस्त हैं। खाद-बीज की व्यवस्था कर रहा है। कृषि प्रधान नरसिंहपुर जिले में रबी का रकबा 2 लाख 10 हजार हेक्टेयर है। गेंहू और चना यहां की प्रमुख फसलें हैं। इस बार चने की कई प्रजातियों जीजे-12, जीजे-63, आरबीजी-202, आरबीजे-203 आदि के प्रमाणित बीज कई कंपनियां और निगम उपलब्ध करा रहे हैं। इनमें कुछ किस्म राष्ट्रीय बीज निगम तो कुछ मप्र राज्य बीज एवं फार्म विकास निगम की तरफ दिए जा रहे हैं।
किसान बताते हैं कि बीज देने वाली कंपनियां सरकार के दिशा -निर्देशों को भी दरकिनार कर रही हैं। राज्य व केंद्र सरकार लगातार किसानों से यह अपेक्षा कर रही है कि वह तेवड़ा रहित चने की फसल लें लेकिन ऐसी स्थिति में यह संभव नहीं है। जिले के किसान चने का बीज अपने क्षॆत्र के क्षेत्रीय ग्रामीण विस्तार अधिकारी, वरिष्ठ विकास अधिकारी के कार्यालय सहित सभी सेवा सहकारी समितियों, कृषि विज्ञान केंद्र, शासकीय कृषि प्रक्षेत्र बोहानी एवं कार्योलय परियोजना संचालक, एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी (ATMA) से ले रहे हैं।
इस बारे में नरसिंहपुर जिले के उपसंचालक कृषि आरआर त्रिपाठी ने कहा कि
कुछ शिकायतें आई हैं पर हमें व्यावहारिक पक्ष यह भी देखना होता है कि कंपनियां और निगम बड़े पैमाने पर बीज उपलब्ध कराते हैं। नरसिंहपुर में ही अभी लगभग 10 हजार किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान पर बीज उपलब्ध कराया गया है। लगभग ढाई करोड़ रुपये का बीज उपलब्ध कराने की योजना है। यह कई बार हो जाता है कि प्रमाणित बीज में थोड़े बहुत आवांछित बीज भी निकल आते हैं। हालांकि इसे हम देख रहे हैं और संबंधितों से इस पर बात भी करेंगे।
कैसे बने खेती लाभ का व्यवसाय…
चने के वुबाई के लिए राष्ट्रीय स्तर की एजेंसी से प्रमाणित बीज खरीदा पर जब उसका उपचार किया जाने लगा तो पाया कि बीज में तो तेवड़ा भी है। ऐसी स्थिति में कैसे खेती लाभ का व्यवसाय बनेगी।
– सुशांत पुरोहित, किसान
बीज की क्या गारंटी…
किसान प्रमाणित बीज के लिए भटक रहा है। चने का बीज उपलब्ध ही नहीं है। प्रमाणित बीज की भी गांरटी नहीं है। – बाबूलाल पटेल, किसान, समनापुर