अधिकारी और माननीय कभी समय रहते अमानक खाद और बीज की बिक्री पर लगाम लगाने की कोई कवायद नहीं करते जिसका असर किसानों की पैदावार पर है। अब जब खेतों में मक्के की कटाई, गहाई हो रही है तो खाद के दाने जस के तस पड़े रहने से किसान हैरत में है कि जुलाई में बोवनी के बाद खेत में डाली गई खाद के दाने बीसों बार झमाझम बारिश के बावजूद घुले नहीं और जैसे के तैसे पड़ें हैं। मिट्टी को उर्वरक मिला ही नहीं अन्यथा उनकी पैदावार कुछ और बढ़ जाती।
समनापुर के किसान रोशन पटेल और उनके भतीजे अंकित पटेल ने जुलाई में करीब 30 – 35 एकड़ में मक्के की फसल लगाई। इसके लिए वह बाजार से करीब साढे 500 रु प्रति बैग की दर पर करीब 15 बोरी फास्फेट लेकर आए। यूरिया के साथ खाद खेत में डाले करीब 4 महीने गुजर गए लेकिन दाने अब भी जस के तस पड़े हैं। जुलाई माह के अंतिम सप्ताह में बोआई के बाद बीसो बार झमाझम बारिश हो गई, लेकिन 23 अक्टूबर तक उनके खेत में पड़े खाद की दाने नहीं घुल पाए। दोनों किसानों को मलाल है कि काश यह खाद काम कर जाती तो उनके खेत में मक्के की पैदावार और अच्छी हो सकती थी।
दूसरा उदाहरण ग्राम झामर के किसान बलवंत पटेल ने करीब 8 एकड़ में मक्का लगाया उन्होंने भी जब पौधे आ गए तो उसकी बढ़त के लिए खेत में फॉस्फेट जिससे लोकल बोली में राखड कहा जाता है, खेत में डाला, अब 4 महीने गुजर जाने के बाद भी उनके खेत में खाद के दाने वैसे ही दिखाई पड़ रहे हैं।
उन्हें भी शिकायत है कि इस बार खाद अच्छी नहीं आई जबकि मनमाने रेट पर उन्होंने खाद खरीदी थी।
ग्राम समनापुर के किसान हों या झामर के या फिर नरसिंहपुर जिले के लगभग कई गांव के किसानों की यही शिकायत है कि खरीफ सीजन में जिले में अमानक खाद बीज का परिणाम यह रहा कि उनकी पैदावार प्रभावित हुई।
जिले में खरीफ सीजन का रकबा करीब 1 लाख़ 80 हज़ार हेक्टेयर में रहा। जिसमें करीब 48000 हेक्टर में मक्का बोया गया था। धान 68 से 72000 हेक्टेयर में, सोयाबीन करीब 30000 हेक्टेयर रकबे में रही।
पूरे मध्य प्रदेश की बात करें तो खरीफ फसल का रकबा 145 लाख 71 हजार हैक्टेयर में था जिसमें 90 फ़ीसदी रकबे में धान और सोयाबीन की फसल थी जबकि 15.3 लाख हेक्टर में मक्के की फसल लगाई गई थी।
ग्राम बरेली की किसान नारायण पटेल ,शारदा पटेल बलराम यादव ,मुंशीलाल एवम ग्राम डांगीडाना के गोविंद मेहरा की शिकायत है कि हर साल जब किसान खाद और बीज खरीद लेता है। बोवनी बखरनी हो जाती है और इसके बाद कृषि विभाग जागता है और औपचारिकता के लिए 8-10 जगह से सैंपल लेकर अपनी कागजी कार्यवाही करता है।
आमतौर पर चालू वर्ष में उर्वरक की 60 – 65 नमूने कृषि विभाग ने लिये हैं, इनमें से बीज के लगभग 80- 85 नमूने लिये गए। हालांकि इनमें से कितने जांच में पास हुए और कितने फेल यह बताने को अधिकारी तैयार नहीं हैं। उनसे कई बार लिए गए नमूनों की संख्या पूछने की कोशिश की गई, उनसे बात करने की कोशिश की गई कि अमानक खाद बीज पर अब तक क्या कार्रवाई हुई है तो यह सामान्य सी जानकारी देने में भी उन्हें कहीं आचार संहिता नजर आती है तो कहीं दूसरी कामों में व्यस्तता का बहाना।
लोकसेवकों की जवाबदेही पूरी तरह नदारद है। अब किसान फिर रबी सीजन में खेत खलिहान में तैयारी के लिए जुट गया है। खाद बीज पानी की फिर व्यवस्था करने की चिंता है। ऐसे मौके पर बाजार में फिर खुलकर अमानक खाद और बीज की भरमार रहेगी पर अधिकारियों और मैदानी अमला चुनावी व्यस्तता का राग अलापते हुए मुनाफाखोरों के लिए रास्ता खोल रहा है।