नर्मदा घाटी में जलस्तर बढ़ा: हजारों घर डूब की चपेट में, पुनर्वास की मांग तेज


सरदार सरोवर का जलस्तर 136 मीटर से ऊपर पहुंच गया है, जिससे नर्मदा घाटी के सैकड़ों गांवों के हजारों मकान और खेत डूबने के कगार पर हैं। पुनर्वास की मांग को लेकर कसरावद गांव में जल सत्याग्रह शुरू हो गया है, जहां प्रभावित परिवार अपने अधिकारों और आजीविका की सुरक्षा की गुहार लगा रहे हैं।


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उनकी बात Updated On :

नर्मदा बचाओ आंदोलन के बैनर तले आज कसरावद गांव में जल सत्याग्रह शुरू हुआ, क्योंकि सरदार सरोवर बांध का जलस्तर 136 मीटर से ऊपर पहुंच गया है। इस जलस्तर वृद्धि के कारण नर्मदा घाटी के सैकड़ों गांवों में हजारों परिवारों के मकान और खेत डूबने के कगार पर हैं। यह स्थिति तब आई है जब पुनर्वास की प्रक्रिया अब भी अधूरी है और कई परिवारों का जीवन और भविष्य असुरक्षित है।

2023 के मानसून में भी जलस्तर बढ़ने से 170 से अधिक गांवों के मकान और हजारों एकड़ कृषि भूमि जलमग्न हो गई थी। इस साल भी किसानों, मजदूरों, मछुआरों और अन्य समुदायों के हजारों परिवारों के मकानों पर वही संकट मंडरा रहा है। सरदार सरोवर का जलस्तर 136 मीटर के पार पहुंच चुका है, और ऊपरी बांधों के जलाशय भी पूरी तरह से भरे हुए हैं।

प्रभावित क्षेत्रों के लोगों का कहना है कि शासन द्वारा जलाशयों और बांधों के सही समय पर नियमन न किए जाने से यह संकट बार-बार उत्पन्न हो रहा है। केंद्रीय जल आयोग (CWC) के दिशा-निर्देशों के अनुसार, जलाशयों को वर्षाकाल में एक निश्चित स्तर तक खाली रखना चाहिए ताकि आने वाली बारिश के पानी को समायोजित किया जा सके। परंतु नर्मदा घाटी के बड़े बांधों से जलनियमन सही तरीके से नहीं हो रहा है, जिससे हजारों मकान और कृषि भूमि डूबने के कगार पर हैं।

13 सितंबर की रात को ओंकारेश्वर बांध के आठ गेट खोल दिए गए, जिससे पानी का बहाव इंदिरा सागर होते हुए सरदार सरोवर क्षेत्र में पहुंचा है। इसका परिणाम यह हुआ है कि बड़वानी, धार, खरगोन और अलीराजपुर जिलों के गांवों में डूब का खतरा बढ़ गया है। इन क्षेत्रों में न केवल मकान जलमग्न होने की स्थिति में हैं, बल्कि पुनर्वास प्रक्रिया भी अधूरी है। पिछले साल कई परिवारों को शासकीय भवनों या किराये के मकानों में शरण लेनी पड़ी थी, जबकि कुछ अब भी टीनशेड में रहने को मजबूर हैं।

2019 से पुनर्वास के इंतजार में बैठे परिवारों में से 15946 परिवारों को अवैध रूप से डूब क्षेत्र से बाहर घोषित कर दिया गया था। लेकिन अब वे परिवार फिर से जलस्तर बढ़ने के कारण डूब का सामना कर रहे हैं। यह स्पष्ट रूप से उनके मौलिक अधिकारों का हनन है, क्योंकि बिना पुनर्वास के उन्हें डूब के लिए मजबूर किया जा रहा है।

कसरावद में बाबा आमटे के आंदोलन की ऐतिहासिक भूमि पर शुरू हुए इस जल सत्याग्रह के माध्यम से नर्मदा घाटी के लोग सरकार से न्यायपूर्ण पुनर्वास और जलस्तर के सही नियमन की मांग कर रहे हैं। आंदोलन का नेतृत्व कर रहीं मेधा पाटकर ने सरकार से तुरंत सरदार सरोवर के गेट खोलने की अपील की है ताकि जलस्तर नियंत्रित हो और प्रभावित परिवारों के मकान और खेत डूब से बचाए जा सकें। इसके साथ ही, लंबे समय से लंबित पुनर्वास प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा करने की भी मांग की गई है।

संविधान के मूल्यों और अधिकारों का सम्मान करते हुए यह सत्याग्रह सरकार को याद दिलाता है कि प्रभावित लोगों के जीवन और आजीविका की सुरक्षा उसकी प्राथमिक जिम्मेदारी है।

 



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