नर्मदा की लहरों पर मछुआरों की उम्मीदें: अधिकारों की मांग में एकजुट हुआ समुदाय


मध्य प्रदेश के बड़वानी में, सरदार सरोवर बांध से प्रभावित मछुआरों ने नर्मदा घाटी के जलाशयों पर पूर्ण अधिकारों की मांग की। 9 नवंबर को अर्जुन कारज भवन में आयोजित सम्मेलन में मछुआरों ने कानूनी पुनर्वास और महाराष्ट्र की तरह पूर्ण मत्स्य पालन अधिकारों की मांग की। मेधा पाटकर ने मछुआरों को संगठित करने और गैर संवैधानिक प्रक्रियाओं के खिलाफ लड़ने की जरूरत पर जोर दिया, ताकि वे जलाशय प्रबंधन और विकास में अपनी भूमिका निभा सकें।


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नर्मदा के मछुआरे मांग रहे हैं अपने हक

‘जहां जमीन डूबी हमारी, पानी मछली कैसे तुम्हारी?’ इस प्रखर नारे के साथ, बड़वानी के अर्जुन कारज भवन में आयोजित नर्मदा घाटी के मछुआरों के सम्मेलन ने एक नई दिशा तय की। यह सम्मेलन 9 नवम्बर, शनिवार को हुए इस कार्यक्रम में जहाँ सरदार सरोवर बांध से प्रभावित मछुआरों ने भाग लिया।

सम्मेलन में बड़वानी, धार, और अलीराजपुर जिलों के मछुआरे शामिल हुए। इन मछुआरों की मुख्य मांग थी कि नर्मदा घाटी के जलाशयों पर उन्हें पूर्ण अधिकार दिया जाए, जिससे वे अपने परंपरागत पेशे को बिना किसी रोक-टोक के जारी रख सकें। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि उन्हें अभी तक कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त पुनर्वास की सुविधाएँ प्राप्त नहीं हुई हैं।

 

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नर्मदा के मछुआरे मांग रहे हैं अपने हक

नर्मदा घाटी के मछुआरों की व्यथा

सम्मेलन में उपस्थित महाराष्ट्र के प्रतिनिधियों ने बताया कि महाराष्ट्र में मछुआरों को जलाशयों पर मत्स्य पालन के लिए पूर्ण अधिकार प्रदान किए गए हैं। मध्य प्रदेश के मछुआरे भी समान अधिकारों की मांग कर रहे हैं, जिसमें उन्हें नाव, जाल और पिकअप गाड़ियों के लिए सहायता मिल सके। सियाराम पाडवी ने मछुआरों को महाराष्ट्र सरकार द्वारा दी गई सुविधाओं के बारे में बताया, जिसमें मछुआरों को जलाशयों पर पूर्ण अधिकार दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में मछुआरा समुदायों को नाव, जाल और मछली परिवहन के लिए पिकअप गाड़ियों जैसी सुविधाएं मिली हैं, और उन्हें उम्मीद है कि मध्य प्रदेश में भी समान अधिकार और सुविधाएँ मिल सकें।

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नर्मदा के मछुआरे मांग रहे हैं अपने हक २२

मेधा पाटकर उठाई मांग

मेधा पाटकर ने बताया कि मध्य प्रदेश मत्स्य महासंघ ने बड़े और मध्यम आकार के कुल 26 जलाशयों का नियंत्रण किया है, जिसमें 7 बड़े और 19 मझौले जलाशय शामिल हैं। इन जलाशयों का सम्मिलित क्षेत्रफल 2.29 लाख हेक्टेयर है। इस परिवर्तन का मूल उद्देश्य था कि स्थानीय मछुआरे जलाशय और मछली पालन के विकास में अपनी भूमिका निभा सकें और इस क्षेत्र की समग्र गतिविधियों में उनकी आवाज को महत्व दिया जा सके। हालांकि, मत्स्य महासंघ में पिछले दो दशकों से चुनाव न होने की वजह से प्रशासनिक कार्यों को केवल प्रशासकों के द्वारा संचालित किया जा रहा है, जो कि संविधान के अनुरूप नहीं है। इस गैर संवैधानिक प्रक्रिया को समाप्त करने के लिए मछुआरों को संगठित करने की आवश्यकता है ताकि वे अपने अधिकारों के लिए प्रभावी ढंग से लड़ सकें।

 

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पाटकर ने कहा मछुआरों के अधिकारों और उनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए व्यापक संघर्ष की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि मछुआरों को उनके जीवनयापन के लिए जरूरी संसाधनों और अधिकारों का उचित प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए उन्हें एक संगठित और समर्थित मंच प्रदान किया जाना चाहिए। उन्होंने मछुआरों की एकता और संघर्ष की आवश्यकता पर बल दिया और सरकार से मछुआरों की मांगों के प्रति संवेदनशील होने का आह्वान किया।

 



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