नर्मदा घाटी में भूमि अधिग्रहण पर मेधा पाटकर का विरोध, कलेक्टरों से संवैधानिक प्रक्रिया अपनाने की मांग

मेधा पाटकर ने नर्मदा घाटी में भूमि अधिग्रहण का विरोध करते हुए डिंडोरी और मंडला कलेक्टरों से संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करने की मांग की है। उनका कहना है कि ग्राम सभाओं की सहमति के बिना भूमि अर्जन असंवैधानिक है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता, मेधा पाटकर ने डिंडोरी और मंडला जिलों के कलेक्टरों को ईमेल के माध्यम से पत्र भेजा है। इस पत्र में उन्होंने राघवपुर और बसनिया बहुद्देशीय परियोजना के तहत प्रभावित कृषकों की भूमि अर्जन प्रक्रिया पर आपत्ति जताई है। पाटकर का कहना है कि प्रभावित क्षेत्रों की ग्राम सभाओं ने भूमि अधिग्रहण के लिए अपनी सहमति नहीं दी है।

 

उन्होंने अपने पत्र में मध्यप्रदेश सरकार के भू-अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता के अधिकार नियम 2015 की धारा-16 का हवाला दिया है। इसमें यह प्रावधान है कि अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण के सभी मामलों में संबंधित ग्राम सभाओं की पूर्व सहमति आवश्यक है। यह प्रावधान मध्यप्रदेश पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) नियम 2022 (पेसा) की धारा-18(1) के अंतर्गत भी आता है।

 

केंद्रीय भू-अर्जन कानून 2013 की धारा 38 और 41 के अनुसार भी दलित और आदिवासियों की भूमि किसी परियोजना के लिए अधिग्रहित करने से पहले कई शर्तें पूरी की जानी चाहिए। पत्र में यह भी कहा गया है कि इन दोनों परियोजनाओं के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) और सामाजिक समाधात का मूल्यांकन ग्राम सभाओं की सहभागिता और सुनवाई के साथ पूर्ण होना चाहिए।

 

मेधा पाटकर ने अपने पत्र में स्पष्ट किया है कि प्रभावित आदिवासी क्षेत्रों में उपरोक्त कानूनी प्रक्रियाओं को अपनाए बिना ही परियोजना का कार्य आगे बढ़ाया जा रहा है, जो कि असंवैधानिक है। इससे प्रभावित आदिवासी परिवारों का जल, जंगल और जमीन छीनकर उन्हें अन्याय और अत्याचार का सामना करना पड़ रहा है।

 

उन्होंने कलेक्टरों से अनुरोध किया है कि वे अपने संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन निष्पक्ष तरीके से करें और नर्मदा घाटी में पीढ़ियों से बसे हुए आदिवासी निवासियों के साथ अन्याय नहीं होने दें।

First Published on: September 28, 2024 9:59 AM