भोपाल। दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन को मध्यप्रदेश की मंडी समितियों के कर्मचारियों का भी साथ मिल सकता है। ऐसा उस सूरत में होगा जब केंद्र सरकार और आंदोलनरत किसान संगठनों के बीच आठ जनवरी को होने वाली बात नहीं बनेगी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह उनकी मांगें नहीं मानेंगे।
ऐसा होने पर मध्यप्रदेश की मंडियों से मौजूदा और पूर्व कर्मचारियों का एक-एक वाहन किसान आंदोलन के सहयोग में दिल्ली के सिंधू बॉर्डर पर आंदोलन स्थल तक जाएगा और उनके साथ बैठेगा। उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में मंडी कर्मचारियों के संयुक्त मोर्चे ने ही अक्टूबर में एपीएमसी एक्ट का सबसे पहले विरोध किया था और बाद में कई दिनों तक मंडी बंद रखीं थीं।
मध्यप्रदेश में मंडी बोर्ड के संयुक्त संघर्ष मोर्चा ने अपनी नाराजगी के बारे में मध्यप्रदेश सरकार को बता दिया है। ये संगठन मंडी समितियों के कर्मचारियों को मंडी बोर्ड में शामिल करने के लिए सरकार से अपील कर रहा है और इसके लिए मोर्चे के पदाधिकारी पिछले कई दिनों से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलने का समय मांग रहे हैं हालांकि अब तक उन्हें समय नहीं दिया गया है।
मोर्चे के एक पदाधिकारी ने बताया कि मंडी समिति के कर्मचारियों के संविलियन की बात कही जा रही है लेकिन सरकार ने इसके लिए कोई औपचारिक शुरुआत अब तक नहीं की है और न ही अधिसूचना ही जारी की है।
ऐसे में मंडी कर्मचारी दुविधा में हैं अगर सरकार जल्द ही अधिसूचना जारी कर देती है तो संभव है कि मंडी कर्मचारी इस विरोध में शामिल न हों। पदाधिकारियों के मुताबिक अगर सरकार ऐसा नहीं करती तो उन्हें खुलकर सामने आना होगा।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के अलावा संयुक्त संघर्ष मोर्चा को एक उम्मीद दिल्ली में होने वाली किसान संगठनों और केंद्र सरकार की बैठक से भी उम्मीद है। जहां अगर सरकार कानून वापस लेने पर राज़ी होती है तो पूरा मामला ही ख़त्म हो जाएगा। हालांकि इसकी उम्मीद काफ़ी कम है।
उल्लेखनीय है कि इस समय मध्यप्रदेश में मंडी समितियों की हालत काफी खराब है। इन मंडी समितियों में आय लगातार कम होती जा रही है और कुछ मंडियां तो बंद होने की कगार पर हैं।
देशगांव ने पिछले दिनों ही इस बारे में ख़बर प्रकाशित की थी कि प्रदेश की करबी चालीस से अधिक मंडियों में वेतन नहीं मिल पा रहा है और कुछ मंडियों में तो महीनों से वेतन नहीं मिला है। इनमें अनूपपुर और झाबुआ जिले की मंडियां शामिल हैं।
मंडी बोर्ड और मंडी समितियां अलग-अलग इकाई हैं। मंडी बोर्ड के कर्मचारी जहां सरकार से वेतन पाते हैं तो वहीं मंडी समितियों का खर्चा वे खुद चलाती हैं। उनकी आय मंडी परिसर में होने वाले टैक्स से होती है।
एपीएमसी एक्ट लागू होने के बाद मध्यप्रदेश में मंडियों की हालत खराब है क्योंकि एक्ट के मुताबिक व्यापारी मंडी परिसर के बाहर भी किसानों से माल खरीद सकते हैं और उन्हें इसके लिए कोई टैक्स भी नहीं होगा। ऐसे में अब व्यापारी मंडी में कम ही व्यापार कर रहे हैं और मंडी समितियों की आय कम होती जा रही है।
ये भी पड़े मंडी कर्मचारी खोज रहे नई नौकरियां, वेतन के भी लाले पड़े