मध्य प्रदेश में लचर शिक्षा व्यवस्था: 1275 स्कूलों में शिक्षक नहीं तो 22 हजार एक ही शिक्षक के भरोसे


मध्य प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में भारी असंतुलन देखने को मिल रहा है। 1275 स्कूल बिना शिक्षकों के हैं, जबकि 22 हजार स्कूल केवल एक-एक शिक्षक के सहारे चल रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों की भारी कमी और बुनियादी सुविधाओं का अभाव छात्रों के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।


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उनकी बात Updated On :

मध्य प्रदेश सरकार सीएम राईज स्कूलों जैसे तमाम कदमों से शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के बड़े-बड़े दावे कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत इन दावों से कोसों दूर है। राज्य में स्कूलों की हालत इस कदर खराब है कि 1275 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं है, और 22 हजार स्कूलों में सिर्फ एक-एक शिक्षक के भरोसे पढ़ाई हो रही है। यह स्थिति न केवल प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था की कमजोर नींव को उजागर करती है, बल्कि उन बच्चों के भविष्य पर भी सवाल खड़े करती है, जिनके पास गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का कोई आधार नहीं है।

सरकार के इन दावों और वादों की चकाचौंध के पीछे की हकीकत ये है कि प्रदेश के 46 जिलों के 1275 स्कूल बिना शिक्षकों के चल रहे हैं। वहीं, करीब 22 हजार स्कूलों में केवल एक शिक्षक से पूरी व्यवस्था संभाली जा रही है, जिससे स्पष्ट होता है कि शिक्षा सुधारों के ये प्रयास अधूरे हैं।

 

79 हजार शिक्षकों की कमी: कैसे संभलेगी शिक्षा?

प्रदेश में शिक्षकों की भारी कमी ने शिक्षा व्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर रखा है। 79 हजार शिक्षकों के पद खाली हैं, जिनमें से इस साल केवल 9 हजार पदों पर भर्ती होने की योजना है, लेकिन इसके बावजूद 70 हजार से अधिक पद खाली रह जाएंगे। इसका सीधा असर ग्रामीण क्षेत्रों की शिक्षा पर पड़ रहा है, जहां शिक्षक ना होने की वजह से बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह से प्रभावित हो रही है। दूसरी ओर, शहरी इलाकों में जरूरत से अधिक शिक्षक नियुक्त हैं, जिससे यह असंतुलन और अधिक गहरा हो गया है।

शहरों में शिक्षकों की भरमार, कस्बों और गांवों में टोटा

शहरों में अधिकतर शिक्षक अपनी नियुक्ति करवाने की कोशिश में लगे रहते हैं, जिससे शहरी स्कूलों में शिक्षक अधिक हो जाते हैं। इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, और जबलपुर जैसे शहरों में शिक्षकों की संख्या काफी अधिक है, जबकि सतना, बालाघाट, रीवा, और राजगढ़ जैसे जिलों में शिक्षकों की भारी कमी है। इस असमानता का सीधा असर ग्रामीण शिक्षा पर पड़ रहा है, जहां बच्चों को सही शिक्षा से वंचित रहना पड़ता है।

बुनियादी सुविधाओं की कमी

सिर्फ शिक्षकों की कमी ही नहीं, राज्य के स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है। 20 प्रतिशत स्कूलों में शौचालय की सुविधा नहीं है, और जहां शौचालय हैं, वहां पानी की कमी के कारण उनका इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। 28.4 प्रतिशत स्कूलों में छात्राओं के लिए अलग से शौचालय नहीं है, जो बालिका शिक्षा को प्रभावित कर सकता है। इसके अलावा, 5176 स्कूलों में पीने के पानी की सुविधा भी नहीं है, जबकि 44 हजार 754 स्कूलों में खेल मैदान की भी कमी है, जिससे छात्रों का समग्र विकास बाधित हो रहा है।

 

शिक्षकों का कहना…

शासकीय शिक्षक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष उपेंद्र कौशल का कहना है कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है। सरकारी शिक्षक लगातार प्रशासनिक कामों में उलझे रहते हैं, जिससे बच्चों की पढ़ाई पर सीधा असर पड़ता है। कई स्कूलों में शिक्षकों की संख्या कम होने के बावजूद उन्हें अतिशेष घोषित कर दिया जाता है, जिससे शिक्षा व्यवस्था और अधिक अव्यवस्थित हो जाती है।

 

मध्य प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था आज बड़े संकट से गुजर रही है। एक तरफ सरकार सीएम राईज जैसे नए स्कूल खोल रही है, तो दूसरी तरफ पुराने स्कूलों की दुर्दशा पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। शिक्षकों की भारी कमी और बुनियादी सुविधाओं की अनुपलब्धता ने बच्चों के भविष्य को अधर में डाल दिया है। ऐसे में सरकार को सिर्फ दावों से नहीं, बल्कि ठोस कदम उठाकर शिक्षा सुधार की दिशा में काम करना होगा।


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