प्रदेश के लाखों संविदा कर्मचारियों को लेकर सरकार ने नए आदेश जारी किए हैं। ये उसी कड़ी में हो रहा है जिसके तहत चार जुलाई कोे सीएम शिवराज ने इन संविदा कर्मियों को नियमित कर्मचारियों की तरह रखने की बात कही थी। हालांकि सीएम की मौखिक घोषणा और लिखित आदेश में काफी अंतर दिखाई देता है और इससे संविदा कर्मचारी अभी भी बहुत खुश दिखाई नहीं देते।
सीएम शिवराज ने संविदा कर्मियों को नियमित कर्मचारियों की तरह सुविधा देने की घोषणा की थी लेकिन ताजा आदेश में मुख्यमंत्री का यह वादा अधूरा नजर आता है।
– इस संबंध में जो आदेश अब जारी हुए हैं उनके मुताबिक संविदा कर्मचारियों के लिए सालाना अनुबंध की शर्त अभी खत्म नहीं हुई है।
– उन्हें… pic.twitter.com/TYxfTPx4K4— Deshgaon (@DeshgaonNews) July 22, 2023
संविदा कर्मचारियों की सबसे बड़ी परेशानी ये है कि आज भी उनके नाम के आगे संविदाकर्मी ही लिखा जा रहा है यानी एक तरह के अनुबंध पर लिए गए कर्मचारी। ऐसे में उन्हें पक्का करने का वादा अब तक अधूरा है। यही नहीं संविदा कर्मचारियों को नौकरी से निकालने संबंधित अधिकार आज भी अधिकारियों के ने अपने पास रखे हैं। इस खबर के लिए हमने संविदा पर काम कर रहे कई अधिकारियों और कर्मचारियों से बात की। वे आदेशों को लेकर मुख्यमंत्री से नाराज दिखाई दिए लेकिन उन्हें डर भी था कि वे अपनी नाराजगी नहीं जता सकते क्योंकि सरकार की व्यवस्थाएं चलाने वाले शासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने उनकी नौकरी की डोर अब भी एक तरह से अपने ही हाथों में रखी है।
संविदा कर्मचारियों के लिए सीएम शिवराज ने पिछले दिनों जो घोषणा की थी उसे लेकर सामान्य प्रशासन विभाग ने अब आदेश जारी कर दिए हैं। यह आदेश सभी 32 विभागों के लिए हैं जिनमें करीब ढ़ाई लाख से अधिक संविदा कर्मचारी हैं।
नौकरशाहों के हाथ में है डोर.
सीएम शिवराज के सार्वजनिक तौर पर कहे गए शब्दों के अनुसार इन कर्मचारियों पर हमेशा ही अधिकारी की तलवार लटकी रहती थी और नौकरी इसी डर में होती थी। सीएम ने इस प्रथा को खत्म करने का वादा किया था हालांकि ऐसा नहीं हुआ है। इस बार भी यह तलवार संविदा कर्मचारियों के सिर पर बनी हुई है।
बताया जाता है कि सरकार में बैठे सीनियर अधिकारियों ने अपने हाथ में नियंत्रण रखने के लिए ऐसा आदेश निकाला है। इसके बाद कर्मचारियों के वे नेता भी चुप हैं जिन्होंने सीएम शिवराज के कार्यक्रम में उन्हें कर्मचारियों के वोट दिलवाने के लिए जोश में नारेबाज़ी की और खुद को सीएम का करीब दिखाने की कोशिश की।
संविदा कर्मचारी कहते हैं कि आदेश में दिए गए बिन्दु 9.8 के अनुसार उन्हें संविदा नौकरी पर रखने वाले अधिकारी ही उनकी संविदा सेवा का मूल्यांकन करेंगे यानी इस तरह से कर्मचारियों की अनुबंध प्रक्रिया खत्म नहीं हुई है।
इंदौर में कार्यरत स्वास्थ्य विभाग की एक महिला कर्मचारी कहती हैं कि उन्हें उम्मीद थी कि मुख्यमंत्री नियमित कर्मचारियों की तरह उन्हें सीसीएल यानी चाइल्ड केयर लीव देंगे लेकिन ऐसा नहीं किया गया। नियमित कर्मचारी महिलाओं को उनके बच्चों के 18 वर्ष तक के होने पर यह सुविधा मिलती है और इसके तहत वे पूरे सेवा काल दो वर्ष तक की छुट्टी उस अवधि तक ले सकती हैं जब तक उनके बच्चे बालिग नहीं हो जाते।
नियमित नहीं लेकिन बंदिश वही.
संविदा कर्मचारियों को नियमित की तरह पूरी सुविधाएं न दी जा रहीं हों लेकिन उनकी तर्ज पर कटौती जरुर की जा रही है। अब संविदा कर्मचारियों को अर्जित अवकाश केवल 15 ही मिलेंगे पहले के नियमों के मुताबिक उन्हें 20 अर्जित अवकाश लेने की छूट थी।
वेतन वृद्धि भी अलग है.
वहीं सालाना वेतन वृद्धि भी सीपीआई यानी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर की जाएगी जबकि नियमित कर्मचारियों को हर साल तीन प्रतिशत इन्क्रीमेंट मिलता है। वहीं इन संविदा कर्मियों को डीए यानी महंगाई भत्ता भी नहीं दिया जाएगा।
नहीं निभाया अपना वादा.
इन आदेशों से संविदा कर्मचारी अब निराश हैं। उनका कहना है कि मुख्यमंत्री ने अपना वादा नहीं निभाया और न ही अपनी घोषणाओं पर खरे उतरे। दरअसल संविदा कर्मचारियों के साथ शिवराज सरकार का रवैया अब तक बहुत उत्साहजनक नहीं रहा है। साल 2018 में चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री शिवराज को भी संविदा कर्मचारियों के प्रति प्रेम जागा था और उन्होंने संकल्प लिया था कि वे संविदा जैसी अन्याय की व्यवस्था को खत्म कर देंगे। वहीं उनके विभाग ने संविदा कर्मचारियों के लि साल 2018 में भी एक नीति बनाई जिसके तहत उन्हें नियमित कर्मचारियों के मुकाबले 90 प्रतिशत वेतन देना था।
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राज्य शिक्षा केंद्र ने किया अनदेखा.
मुख्यमंत्री की इस पॉलिसी को कुछ ही विभागों ने माना जबकि स्वास्थ्य विभाग और शिक्षा विभाग का राज्य शिक्षा केंद्र इसका लाभ देने में आनाकानी करता रहा। कर्मचारी कई बार मुख्यमंत्री से मिले और उन्हेें अपनी परेशानी बताई लेकिन मुख्यमंत्री ने कहा कि मुख्यमंत्री ने हर बार इसकी जानकारी न होने की बात कही। भोपाल में राज्य शिक्षा केंद्र के एक कर्मचारी कहते हैं कि उन्होंने खुद कर्मचारियों के साथ जाकर मुख्यमंत्री ने 90 प्रतिशत वेतन करने की अपील तीन से चार बार की है लेकिन उन्होंने हर यही कहा कि उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं हैं और वे अधिकारियों से बात करेंगे। ज़ाहिर है इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री की वरिष्ठ विभागीय अधिकारियों से यह बात कभी नहीं हुई।
अधिकारियों को दोष देना ठीक नहीं.
संविदा पर शिक्षा विभाग में इंजीनियर के पद पर नौकरी कर रहे एक अधिकारी कहते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज केवल आश्वासन देते रहे हैं ऐसे में केवल ब्यूरोक्रेसी को ही दोष देना ठीक नहीं है क्योंकि हम अधिकारियों को वोट देकर नहीं चुनते हैं अपने नेताओं को चुनते हैं। ऐसे में अगर सीएम चाहते तो संविदा कर्मचारियों का उनके प्रति यह नाराजगी इस कदर न बढ़ती जैसी बीते कुछ समय से नजर आती रही है।
एक कर्मचारी नेता कहते हैं कि संविदा कर्मचारियों के प्रति मुख्यमंत्री का यह रवैया कोई नई बात नहीं हैं। 90 प्रतिशत वेतन के लिए पांच साल लड़ाई लड़ी है और इसके बाद ही बने दबाव और राजनीतिक माहौल का असर है कि उन्होंने सौ प्रतिशत वेतन देने की मांग मान ली है लेकिन संविदा कल्चर खत्म करने का अपना ही संकल्प वे भूल चुके हैं।