यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाने की योजना पर चिंतित लोग, किसान बोले ज़मीन और हवा में ज़हर समाएगा इससे अच्छा इच्छा मृत्यु दे दें…


किसानों ने कहा कि फसलें जहरीली होंगी, अगली पीढ़ी बर्बाद होगी इससे बेहतर है मर जाना, दोनों दलों के नेताओं ने कहा हम करेंगे पुरजोर विरोध


आशीष यादव
उनकी बात Published On :
पीथमपुर में रामकी का प्लांट


भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल बाद फिर से पीथमपुर को कचरा जलाने के लिए चुना गया है। सरकार ने 337 मीट्रिक टन कचरे को नष्ट करने के लिए 126 करोड़ की मंजूरी देकर पैसा ट्रांसफर भी कर दिया है। अब कचरा लाने की तारीख और समय तय किया जाना बाकी है। कचरा लाने की खबर के बाद कई संगठनों और जनप्रतिनिधियों का सोशल मीडिया पर गुस्सा फूटा है। युवाओं ने विधायक और सांसद पर जमकर भड़ास निकाली है। इस कचरे का निपटान पीथमपुर के ट्रीटमेंट स्टोरेज डिस्पोजल फैसिलिटी में किया जाएगा।

इस सेंटर पर पहले भी कई परीक्षण किए जा चुके हैं, जो कि असफल रहे हैं, और इसके परिणामस्वरूप अत्यधिक जहरीले रसायनों का उत्सर्जन हुआ है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, इन रसायनों के कारण कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। इस कचरे को नष्ट करने का जर्मनी, गुजरात, और आंध्रप्रदेश में विरोध हो चुका है। इसके बावजूद भी सरकार ने कचरे को नष्ट करने के लिए पीथमपुर को चुना है।

रामकी कंपनी में वर्तमान में नष्ट हो रहे कचरे से ही आसपास के दर्जनों गांव के भूजल स्रोतों पर गहरा प्रभाव पड़ा है। कुओं से लेकर हैंडपंप में जहरीला पानी सप्लाई हो रहा है। इसका सबसे ज्यादा नुकसान किसानों को हो रहा है। रामकी कंपनी से सटे गांव चीराखान में भाजपा के सरपंच हैं, लेकिन सरकार के इस फैसले के वे भी खिलाफ हैं। उन्होंने कहा कि भोपाल गैस त्रासदी का कचरा पीथमपुर आया तो हम पुरजोर विरोध करेंगे। वहीं अन्य किसानों ने कहा कि सरकार हमें इच्छामृत्यु दे ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां कमजोर पैदा ना हों। टीम गुरुवार को चीराखान पहुंची, जहां उन्होंने गांव के किसानों से चर्चा की।

रामकी में भोपाल गैस त्रासदी का कचरा जलाए जाने के निर्णय पर पीथमपुर क्षेत्र के किसान हैं परेशान

किसान शेखर लाल पटेल, बाबूलाल पटेल, मोहन पटेल, और रामचंद्र पटेल ने कहा कि रामकी कंपनी के जहरीले कचरे नष्ट करने की प्रक्रिया पर संदेह है। इसके जहरीले प्रदूषण से पानी गंदा आ रहा है, हर दो महीने में वाटर फिल्टर खराब हो रहे हैं। बच्चों को श्वसन, मानसिक, और त्वचा से संबंधित गंभीर बीमारियां हो रही हैं। हमें मजबूरी में गंदे पानी से खेती करनी पड़ रही है। किसानों का कहना है कि अच्छी बुवाई होने के बाद भी गंदे पानी से फसल अच्छी पैदावार नहीं हो रही है।

देश-विदेश में हुआ है विरोध
बारह वर्ष पहले जर्मनी में इस जहरीले कचरे को नष्ट करने के लिए 22 करोड़ का खर्च बताया गया था, लेकिन विरोध के बाद जर्मनी की कंपनी ने भी इस कचरे को नष्ट करने से मना कर दिया था। 2012 में भाजपा के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, मंत्री बाबूलाल गौर, और जयंत मलैया ने इस कचरे को जलाने का विरोध किया था। इसके अलावा गुजरात और आंध्रप्रदेश भी इस कचरे को नष्ट करने से मना कर चुके हैं।

निपटान का परीक्षण रहा विफल
कचरे का निपटान टीएसडीएफ के इंसिनरेटर पर किए गए परीक्षणों में से छह असफल रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप जहरीले रसायनों का उत्सर्जन हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी माना है कि इस रसायन से कैंसर, प्रजनन और विकास संबंधी समस्याएं और प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान हो सकता है। इससे पर्यावरण के साथ आबोहवा पर भी विपरीत असर पड़ेगा।

लोक मैत्री संस्थान के संयोजक गौतम कोठार ने कहा कि यूनियन कार्बाइड का 346 टन कचरा जलाया जाना था। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने 10 टन कचरा पहले साउथ की किसी बंद कंपनी से लाकर जलाने का आदेश दिया था। यह कचरा यूनियन कार्बाइड के कचरे से मेल खाने के कारण सफलतापूर्वक जलाया गया था। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, जो 10 टन कचरा जलाया गया वह 90 किलो प्रति घंटे की मात्रा में था, जबकि इसकी क्षमता ढाई हजार टन है। कम मात्रा में जलाने के कारण जो मॉनिटरिंग हुई वह पॉजिटिव आई और किसी भी प्रकार का हेल्थ-हजार्ड नहीं दिखा।

पूर्व में जब यह कचरा जलाने की बात उठी, तब हमारे द्वारा कई बार आंदोलन किए गए, जिससे प्रभावित होकर तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और तत्कालीन आवास व पर्यावरण मंत्री जयंत मलैया ने इसे यहाँ न जलाने की बात कही। हमारा विरोध विशेष रूप से मल्टी इफेक्टिव ऑपरेटर न होने के कारण था। कचरा जलने के बाद निकले हुए अवशिष्ट को डिस्पोज करने के लिए इस ऑपरेटर की मदद ली जाती है। यहां विरोध होने के बाद कचरे को जलाने जर्मनी भेजने की बात उठी, वहां भी इसका विरोध हुआ और इसे नहीं भेजा जा सका। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार इस कचरे को जलाकर खत्म किया जाना है।

विशेषज्ञ भी चिंतित
सरकार के इस फैसले के बाद विशेषज्ञ भी चिंतित हैं। पर्यावरण के जानकार बताते हैं कि कचरे को निपटाने के लिए भारी-भरकम रकम मिलने के बावजूद, यह 350 एमटी कचरा फैक्ट्री के आसपास और इसके भीतर दफन किए गए कुल जहरीले कचरे का 5 प्रतिशत से भी कम है। जहरीले कचरे की जलन से बड़ी मात्रा में ऑर्गेनोक्लोरीन निकल सकते हैं और डाइऑक्सिन और फ्यूरान जैसे कार्सिनोजेनिक रसायन उत्पन्न हो सकते हैं, जो स्थानीय निवासियों और पर्यावरण के लिए बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकते हैं। पिछले साल की विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, डाइऑक्सिन अत्यधिक विषैले होते हैं और प्रजनन और विकास संबंधी समस्याएं पैदा कर सकते हैं। ये प्रभावित लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान पहुंचा सकते हैं, हार्मोन में हस्तक्षेप कर सकते हैं और कैंसर भी पैदा कर सकते हैं। इसी कारण से महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों ने पहले इस कचरे को जलाने से इनकार कर दिया है।

विधायक नीना वर्मा का बयान:
“मैंने हमेशा से ही यूनियन कार्बाइड के कचरे का विरोध किया है। मुझे भी मीडिया से जानकारी मिली है कि भोपाल गैस त्रासदी का कचरा पीथमपुर लाने की तैयारी चल रही है, जो कि गलत है। मैंने विधानसभा में इस मुद्दे को उठाकर इसका विरोध किया था। पहले भी आज भी विरोध में हूँ। यह तो नहीं होना चाहिए। आसपास के शहरों को भी नुकसान होगा। मैं इसका विरोध करूंगी और मामले को लेकर मुख्यमंत्री से चर्चा कर कचरे को पीथमपुर में नष्ट नहीं होने देंगे।”

नपा अध्यक्ष सेवंती सुरेश पटेल का बयान:
“सरकार के इस फैसले का विरोध करते हैं। नगर पालिका परिषद की बैठक में इस इमरजेंसी प्रस्ताव को लेकर सख्त निर्णय लिए जाएंगे। आम जन मानस की जान से खिलवाड़ नहीं होने देंगे। किसी भी परिस्थिति में एक भी जहरीले कचरे की गाड़ी पीथमपुर नहीं आने देंगे।”

 कांग्रेस नेता संदीप रघुवंशी का बयान:
“सरकार का यह फैसला आम जनमानस के साथ खिलवाड़ है, इससे पर्यावरण के साथ आम लोगों के स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। भोपाल गैस त्रासदी से हजारों लोगों की जान गई थी, अब उस कचरे को पीथमपुर में जलाने की योजना को सफल नहीं होने देंगे। हम सड़क पर उतरकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे।”

पूर्व नपा अध्यक्ष देवेंद्र पटेल का बयान: “हम पीथमपुर की जनता के साथ हैं। सरकार के इस फैसले में अगर कोई कमी है, तो उसका हम विरोध करेंगे। साथ ही मांग करेंगे कि सरकार अपने निर्णय को वापस लेकर दूसरी योजना तैयार करे।”

प्रदूषण विभाग अधिकारी अजय मिश्रा का बयान: “भोपाल गैस कचरे को नष्ट करने को लेकर हमारे पास कोई आदेश नहीं आया है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि अगर सरकार जलाने के लिए मंजूरी देती है, तो इससे पीथमपुर को कोई नुकसान नहीं होगा।”


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