पानी की कमी से जूझ रहा यह गांव देशभर में भेजता है लगभग 400 गाड़ियां भूसा


ललरिया गांव से आज के समय देशभर में अलग-अलग जगहों पर 400 गाड़ियों से भूसे या सूखे चारे की सप्लाई की जाती है। यहां के किसानों ने इस तरह से अपनी रोजी-रोटी के संकट को दूर कर लिया है।


Manish Kumar
उनकी बात Published On :
chara in truck

भोपाल। भोपाल से लगभग 60 किलोमीटर दूर बैरसिया तहसील का नाम इनदिनों काफी सुर्खियों में रहा जब ऐसी खबरें आईं कि यहां के गौशाला में चारे की कमी के कारण कई गौवंशों की असमय मौत हो गई। इसे लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप भी काफी लगाए गए।

वहीं, इसी तहसील का एक गांव ललरिया बीते 50-52 सालों से मध्यप्रदेश व देश के कई राज्यों में चारे की आपूर्ति कर रहा है और इसी के बल पर यह गांव काफी विकसित हो चुका है।

यहां आने के बाद जब इसकी गलियों में घूमने पर यह गांव नहीं लगकर एक छोटा कस्बा जैसा महसूस होता है। इस गांव की समृद्धि का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि यहां लगभग 200 ट्रक-ट्रैक्टर जैसी गाड़ियां हैं।

लगभग 10 हजार की आबादी वाले इस गांव ने खेती-किसानी से थोड़ा सा इतर काम किया और पशुपालन में सबसे ज्यादा आवश्यक पशुओं के चारे को अपना मुख्य व्यवसाय ही बना लिया है।

ललरिया गांव बीती सदी के 70 के दशक से जलवायु परिवर्तन से जूझ रहा है और पानी की कमी ने यहां के किसानों को विकास के रास्ते पर काफी पीछे की तरफ धकेल दिया।

यहां के किसानों के सामने अपनी जमीन बचाने या पेट पालने का संकट खड़ा हुआ तो उन्होंने पशुओं के भोजन में इस्तेमाल होने वाला चारा उगाना शुरू कर दिया और उसके बाद तो इस गांव का लगभग कायाकल्प सा हो गया।

आज के समय में इस गांव में आसपास के तकरीबन 40 से 50 गांवों के किसान अपना भूसा यहां आकर चारा का कारोबार करने वाले किसानों या कारोबारियों को लाकर बेचते हैं, जिससे उन्हें अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है।

ललरिया गांव से आज के समय देशभर में अलग-अलग जगहों पर 400 गाड़ियों से भूसे या सूखे चारे की सप्लाई की जाती है। यहां के किसानों ने इस तरह से अपनी रोजी-रोटी के संकट को दूर कर लिया है।

 

ललरिया गांव के नवनिर्वाचित सरपंच मोहम्मद शाहिद खान बबलू बताते हैं कि

गांव के लोगों को मजबूरी ने सिस्टन बनाने पर मजबूर किया। पहले जहां हर चीज का अभाव नजर आता था, वहीं अब हालात बदल गए हैं। यहां के किसान खेती-किसानी भी करते हैं, मजदूरी भी करते हैं और साथ ही चारे का कारोबार भी। यहां भूसे को गाड़ी में भरने के लिए एक मजदूर को 500 रुपये प्रति गाड़ी दिया जाता है और आमतौर पर एक गाड़ी को भरने में चार-पांच मजदूर लगते हैं। हालांकि, मौसम की अनिश्चितता, पानी की कमी व किसानों द्वारा हार्वेस्टिंग मशीन के इस्तेमाल की वजह से चारे के उत्पादन में लगातार कमी आ रही है। इसके कारण एक ओर जहां भूसे के दाम बढ़ रहे हैं तो पशुओं के चारे में भी कमी आ रही है।

वे आगे कहते हैं कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले दिनों में जिस चारे की वजह से गांव में समृद्धि आई है वो उनके सामने गंभीर संकट भी ला सकती है।

इसके लिए जरूरी है कि सरकार इस पर ध्यान दे और धान व गेहूं की तरह चारे का भी एमएसपी तय कर दे ताकि किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य मिल सके और वे इसके उत्पादन के लिए प्रेरित हों।

इसके साथ ही वे कहते हैं कि सरकार को चारा क्रय-विक्रय के लिए एक सिस्टम बनाना चाहिए जिससे कारोबारियों को सहूलियत हो और उनका कारोबार अच्छी तरह से चल सके।

पूर्व सरपंच जिन्हें गांव के लोग प्यार से कप्तान कहते हैं, ने बताया कि

गांव में सालाना तकरीबन 40 लाख रुपये का भूसे का कारोबार होता है जिससे आसपास के गांवों के किसानों-मजदूरों की रोजी-रोटी चलती है। हालांकि, गांव में और कई तरह की समस्याएं तो बनी हुईं हैं लेकिन उनके निदान के लिए लगातार काम किया जा रहा है।

गांव वाले बताते हैं कि जब पास के ही बैरसिया गांव की गौशाला में चारे की कमी से कई गौवंश ने दम तोड़ दिया था, तब ललरिया गांव के लोगों ने एकसाथ मिलकर आठ क्विंटल चारा वहां के गौशाला को निःशुल्क दिया था।

 

नोटः सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा देशभर के कई पत्रकारों को भोपाल के आसपास के गांवों का दौरा करवाया गया ताकि वे जमीनी सच्चाई को जान सकें।


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