नई दिल्ली। किसान आंदोलन को टीवी और अख़बारों में तरह-तरह से पेश किया जा रहा है। समाचार चैनल किसानों को विपक्ष की राजनीति के द्वारा बरगलाया हुआ बता रहे हैं तो कुछ उन्हें खालिस्तानी आतंकवादी बता रहे हैं लेकिन इस आंदोलन की सच्चाई केवल देश में कृषि सुधार हैं।
देश के कृषि सुधारों के लिए यह ऐतिहासिक समय है जहां दोनों ही ओर खेती के लिए क्रांति की बातें तक हो रहीं हैं। सरकार इसे क्रांतिकारी सुधार बता रही है तो आंदोलनकारी किसान इसे काले कानून कहकर बग़ावत की बात कर रहे हैं।
इस आंदोलन को पंजाब प्रांत के किसानों से हिम्मत मिली है। जिन्होंने इसे शुरु किया और दिल्ली से देश तक पहुंचा दिया। इस आंदोलन ने पंजाब की एक और तस्वीर पेश की है। जिसमें यहां के नौजवानों के इंक़्लाबी तेवर भी नज़र आते हैं तो उनकी सांस्कृितक और लोकतांत्रिक मूल्यों की समझ के साथ शांतिपूर्ण आंदोलन का सलीका भी अब तक दिखाई दिया है।
पंजाब के इन नौजवानों ने इस किसान आंदोलन को एक नया सांस्कृति रंग भी दिया है। जो इन दिनों ख़ूब सराहा जा रहा है। किसान आंदोलन के बहाने देश में अब एक बार फिर इंक्लाबी गीत एक बार फिर गूंजने लगे हैं।
हरियाणा और पंजाब के बहुत से गायकों ने ये गीत रचे हैं इन्हें आवाज़ दी है और अब इन्हें सोशल मीडिया के सहारे लाखों-करोड़ों सुनने वाले भी मिल रहे हैं।
इन गीतों में किसी तरह की फूहड़ता या शोर-शराबा नहीं बल्कि खेती-किसानी और अधिकारों की बातें हैं और वे सवाल हैं जो ये नौजवान गायक सरकार से पूछ रहे हैं, सरकार को बता रहे हैं कि किसान की फसल का फैसला किसान ही करेगा।
पत्रकार राहुल कोटियाल ने अपनी फेसबुक वॉल पर एक और पंजाबी गायिका सिमरन कौर के गाये हुए एक गाना का अंतरा साझा किया है। इसके बोल हैं…
बस चार-पांच घंटे की है बात, ए दिल्ली
तुझे याद करवा देंगे तेरी औक़ात, ए दिल्ली
तेरी छाती पर चढ़कर जब जयकारे लगेंगे,
हमारी हौसला-अफ़ज़ाई आसमान करेगा
इससे पहले पिछले दिनों यहां एक किसान एंथम भी रिलीज़ किया गया। तीस साल के पंजाबी गायक मनकीरत औलख़ के साथ ने दस अन्य गायक इस गाने को गाया है। इसी हफ़्ते मंगलवार को रिलीज़ किए गए इस गाने को अब 5.7 मिलीयन व्यूज़ मिल चुके हैं।
इसके साथ ही इंटरनेट पर किसान बिलों का विरोध करते हुए इस तरह के दर्जनों गाने देखे-सुने जा सकते हैं। वहीं एक और पंजाबी सेलिब्रिटी दिलजीत दोसांझ भी इस आंदोलन को अपना सर्मथन दे चुके हैं।