आरोन (गुना)। केंद्र सरकार द्वारा लाए गए विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में व पेट्रोल, डीजल व रसोई गैस के बढ़ते दामों के खिलाफ गुरुवार को गुना जिले के आरोन तहसील में विभिन्न किसान संगठनों ने किसान-नागरिक महापंचायत का आय़ोजन किया।
आरोन तहसली के नारायण कॉलोनी मैदान में ऑल इंडिया किसान-खेत मजदूर संगठन द्वारा आयोजित किसान-नागरिक महापंचायत में आरोन व आसपास के कई गांव से सैकड़ों की संख्या में किसान व आम नागरिक शमिल हुए।
महापंचायत को एआईकेकेएमएस के राष्ट्रीय अध्यक्ष सहित विभिन्न किसान संगठनों के नेताओं ने संबोधित करते हुए उपस्थित किसानों और नागरिकों से आह्वान किया कि दिल्ली की सीमा पर चल रहा किसान आंदोलन देश के किसान और मेहनतकशों के मान-सम्मान और स्वाभिमान बचाने का आंदोलन है।
देश बचाने के इस आंदोलन में हर मेहनतकश की भागीदारी जरूरी है इसलिए इस महापंचायत के बाद आप प्रदेश के कोने-कोने में जाकर किसान आंदोलन को मजबूत करने का अभियान छेड़ें।
महापंचायत में मंच का नाम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नाम पर रखा गया। महापंचायत की शुरुआत में दिल्ली में बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में शहीद हुए किसानों को श्रद्धाजंलि व्यक्त करते हुए ट्रेड युनियन नेता नरेन्द्र भदोरिया ने एक शोक प्रस्ताव रखा। इसके बाद शहीद हुए किसानों को एक मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई।
महापंचायत में विषय प्रवर्तन करते हुए AIKKMS के राज्य सचिव मनीष श्रीवास्तव ने कहा कि
अनुबंध खेती के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। मध्यप्रदेश में विभिन्न जिलों में कंपनियां किसानों से सीधा खरीद का वायदा करके फरार हो चुकी हैं। वहीं प्राइवेट मंडी के तहत किसानों से बड़े पैमाने पर मंडियों के बाहर खरीद करके व्यापारी भाग चुके हैं। ऐसे केस हमारे गुना में भी हुये हैं। किसान आंदोलन को व्यापक जन समर्थन मिल रहा है। समाज का हर तबका छात्र, युवा, महिलाएं, वकील, डॉक्टर सभी इस आंदोलन को समर्थन दे रहे हैं।
AIKS के संयुक्त सचिव बादल सरोज ने कहा कि ये कानून घोर कृषि व कृषक विरोधी होने के साथ-साथ जन विरोधी भी हैं। किसान सिर्फ खेती बचाने की ही नहीं देश बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन में जाति, धर्म की सीमा नहीं है। वे इनसे ऊपर हो चुके हैं। उनकी सिर्फ एक जाति है- किसान।
उन्होने कहा कि जब-जब किसानों ने एकजुट होकर आंदोलन किया है तो जीते हैं। जब ये मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण कानून लेकर आई थी तब भी किसानों ने इसके खिलाफ आंदोलन किया व आंदोलन में जीते। हमें इतिहास से सीख लेकर इन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन को और मजबूत करना होगा।
किसान-नागरिक महापंचायत को संबोधित करते हुए मुलताई के पूर्व विधायक तथा अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की वर्किंग ग्रुप के सदस्य डॉ सुनीलम ने कहा कि ये एक ऐतिहासिक किसान आंदोलन है। जो भी व्यक्ति उत्पादन करता है वही उसकी कीमत का निर्धारण करता है लेकिन किसान अपनी उपज का दाम तय नहीं करता है। किसान लंबे समय से न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की मांग कर रहे हैं लेकिन सरकार एमएसपी की कानूनी गारंटी नही दे रही है। पूरे देश का पेट भरने वाला किसान आत्महत्या करने को मजबूर है। हर साल 12000 किसान आत्महत्या करते हैं।
महापंचायत को संबोधित करते हुए हरियाणा से आये AIKKMS के राष्ट्रीय अध्यक्ष सत्यवान ने कहा कि जब देश महामारी से जूझ रहा था तब सरकार ने आपदा में अवसर तलाशते हुए पूंजीपतियों को कृषि क्षेत्र में निवेश कर मुनाफ़ा कमाने की खुली छूट देने के लिए किसानों व किसान संगठनों से राय-मशविरा किए बिना कृषि व कृषक विरोधी तीन काले कानूनों को लागू किये हैं। व्यापार वाणिज्य सुविधा व संवर्धन कानून के तहत सरकार किसानों के प्रति अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ कर व किसानों को लूटने के लिये पूंजीपतियों को छूट दी है। आवश्यक वस्तु संशोधन कानून से पूंजीपतियों को जमाखोरी को वैध बनाया गया है जिसके परिणामस्वरूप पूंजीपति किसानों से कम दाम में फसल खरीदकर अपने वातानुकूलित गोदामों में आवश्यक वस्तुओं का भंडारण करेंगे व आम जनता को महंगे दामों में विक्रय करेंगे। इसी प्रकार संविदा कृषि से किसान अपने ही खेत में कंपनियो का गुलाम हो जायेगा। वहीं दूसरी ओर सरकार पूंजीपतियों के हित में लगातार पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के दामों मे बेहताशा वृद्धि की गई है। आज मंहगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है।
महापंचायत को राकेश मिश्रा, सुरेन्द्र रघुवंशी, एडवोकेट आराधना भार्गव, रामस्वरुप मंत्री, अभिषेक रघुवंशी, लोकेश शर्मा, मोहन सिंह यादव, गुरविंदर सिंह सहित विभिन्न किसान संगठनों के कई नेताओं ने संबोधित किया। महापंचायत का संचालन प्रदीप आरबी ने किया।