सरकार ने करनाल लघु सचिवालय का घेराव करके बैठे किसानों की मांगें मानने से इनकार कर दिया है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं और करनाल प्रशासन के बीच करीबन तीन घंटे चली बातचीत विफल रही। करनाल प्रशासन ने किसानों की तीनों मांगें मानने से इनकार कर दिया।
28 अगस्त को बसताड़ा टोल टैक्स पर किसानों पर हुए लाठीचार्ज के अगले दिन सुशील काजल नाम के किसान की मौत हो गई थी। किसान नेताओं और मृतक किसान के परिवार ने पुलिस लाठीचार्ज को सुशील की मौत का जिम्मेदार ठहराया है। पुलिस लाठीचार्ज और किसान की मौत के विरोध में किसानों ने 30 अगस्त को घरौंडा अनाज मंडी में किसान पंचायत बुलाई थी।
घरौंडा की किसान पंचायत में ही किसानों ने सरकार और करनाल प्रशासन के सामने तीन मांग रखी थी और साथ ही मांग नहीं माने जाने पर 7 सितंबर को लघु सचिवालय का घेराव करने की चेतावनी दी थी। किसान नेताओं ने किसानों पर लाठी चार्ज का आदेश देने वाले आईएएस अधिकारी आयुष सिन्हा समेत लाठीचार्ज में शामिल पुलिस महकमे के अन्य लोगों पर भी केस दर्ज करने की मांग की है।
इसके साथ ही मृतक किसान के परिवार में से एक सदस्य को नौकरी और 25 लाख का मुआवजा और लाठीचार्ज में गंभीर रूप से घायल किसानों को 2-2 लाख का मुआवजा देने का मांग की थी.
मंगलवार को करनाल लघु सचिवालय का घेराव करने के लिए हजारों की संख्या में किसान करनाल अनाज मंडी में इकट्ठा हुए। किसानों को अनाज मंडी में आने से रोकने के लिए पुलिस ने शहर के चारों ओर से नाकेबंदी की थी लेकिन पुलिस के अंदाजे से ज्यादा किसान करनाल पहुंच गए।
जिसके बाद पुलिस को बैरिकेडिंग हटानी पड़ी. मंगलवार शाम करीबन 7 बजे किसानों ने करनाल लघु सचिवालय का घेराव कर लिया। सभी बड़े किसान नेता रात को करनाल सचिवालय के बाहर की डेरा डालकर सोए।
आज किसानों के करनाल मोर्चे का दूसरा दिन था. दिनभर बातचीत का दौर जारी रहा लेकिन अंत में सरकार ने किसानों की मांग मामने से इनकार कर दिया।
भिवानी जिले के धनाणा गांव से करनाल मोर्चे में शामिल होने आए किसान ने कहा, “गांव में फोन करके बता दिया है कि आज बात नहीं बनी है कल और ज्यादा संख्या में लोग आएंगे. जब तक एसडीएम को बर्खास्त नहीं किया जाता, मारे गए किसान के परिवार को 25 लाख का मुआवजा और एक नौकरी नहीं दी जाती तब तक हम अपना धरना जारी रखेंगे।
प्रशासन से बातचीत के बाद किसानों के बीच आए किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा, ” तीन घंटे तक चली बातचीत में हमारी वहीं तीन मांगें रही। बात वहीं की वहीं है, बातचीत एक कदम भी आगे बात नहीं बढ़ी है।
सरकार और प्रशासन दोनों अपने अधिकारी का बचाव कर रहे हैं। अधिकारी के खिलाफ न पर्चा दर्ज करने के लिये सहमत हुए न सस्पेंड करने के लिए तैयार हुए। इसके बाद हमने फैसला लिया है कि जैसा हमारा घेराव चल रहा है यह ऐसे ही चलता रहेगा। इसके साथ ही हम सरकार को चेताकर आए हैं कि अगर आपका मन हो जाए, सरकार आपको अधिकारी के खिलाफ पर्चा दर्ज करने के लिए कह दें तो बातचीत के लिए बुला लेना अगर न मानें तो फिर बातचीत के लिए बुलाने की जरूरत नहीं है।”
बता दें कि इससे पहले हिसार, रोहतक, सिरसा, टोहाना में भी किसान पक्के मोर्चे लगा चुके हैं। अब तक सभी मोर्चों पर किसानों ने सरकार और प्रशासन को झुकाकर अपनी मांगें मनवाई हैं।
साभारः यह ख़बर गांव सबेरा वेबसाइट से ली गई है। ख़बर गौरव कुमार ने लिखी है।