बेरोजगारी और पलायन के मुद्दे पर भोपाल में न्याय और शान्ति पदयात्रा

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उनकी बात Published On :

भोपाल। एकता परिषद और सर्वोदय समाज द्वारा 12 दिवसीय पदयात्रा “न्याय और शान्ति पदयात्रा – 2021”, 21 सितम्बर, अन्तराष्ट्रीय शान्ति दिवस के मौके पर शुरू की गई है। यह पदयात्रा देश के 105 जिलों के साथ-साथ विश्व के 25 देशों में आयोजित की जा रही है।

वहीं मध्यप्रदेश में यह  पदयात्रा 27 जिलों में चल रही है। यात्रा के दौरान लगभग पांच हजार पदयात्री पैदल चल रहे हैं और लगभग दस हजार किलोमीटर की दूरी तय की जाएगी। इस अनूठी पदयात्रा का समापन 2 अक्तूबर, अन्तराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के मौके पर की जाएगी।

इस सिलसिले में आज भोपाल में एकता परिषद, दतिया जिले के जिला समन्वयक प्रदीप श्रीवास्तव ने कहा कि वर्तमान समय में बेरोजगारी का मुद्दा बेहद गंभीर है, जब स्थानीय स्तर पर लोगों को रोजगार नहीं मिल पता है तभी वह पलायन करने को मजबूर होते हैं।

हम अपने साथियों के साथ-साथ यात्रा के दौरान जहां से भी गुजर रहे हैं, हमारे समक्ष बेरोजगारी और पलायन का मुद्दा गंभीरता से सामने आ रहा है। लोगों को उनके कौशल के अनुसार रोजगार नहीं मिल पा रहा है। गावं और छोटे कस्बों में यदि रोजगार मिल भी रहा है तो उचित मेहनताना नहीं मिल रहा है।

प्रदीप ने आगे कहा कि इस पदयात्रा के दौरान हम लोगों को रोजगार मिलने में आ रही परेशानी को जानने और पलायन करने के कारण को समझने की कोशिश कर रहे हैं। इसके साथ ही बेरोजगारी और पलायन जैसी समस्याओं का हल किस प्रकार से निकाला जाए इसकी भी बातचीत करने की कोशिश कर रहे हैं।

एकता परिषद के प्रदेश संयोजक डोंगर भाई ने इस 12 दिवसीय चल रही पदयात्रा “न्याय और शान्ति पदयात्रा -2021” के लिए बेरोजगारी और पलायन के मुद्दे को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि पिछले दो साल से कोविड और उसके बाद अतिवर्षा के कारण बाढ़ आने से लोगों का काफी नुकसान हुआ है, खास कर युवा पीढ़ी को यह नुकसान ज्यादा झेलना पड़ रहा है। जो युवा बाहर मजदूरी करने के लिए जाते थे उन्होंने कोविड के दौरान घर वापस आने के लिए पैदल यात्रा की और इस दरम्यान जो परेशानी उन्होंने झेला उस कारण अब यह लोग वापस बाहर मजदूरी करने के लिए नहीं जाना चाहते हैं।

उन्होंने आगे कहा कि आज के युवा के साथ-साथ स्थानीय कामगार अपने गाँव में ही छोटा-मोटा काम कर के अपना जीवन यापन करना चाहते हैं। बेरोजगारी और पलायन आज हमारे सामने सबसे बड़ा मुद्दा है, जब तक लोगों को स्थानीय रोगजार नहीं मिलेगा तब तक महात्मा गांधी का स्वरोजगार का सपना पूरा नहीं होगा।

एकता परिषद के राष्ट्रीय महासचिव अनीष कुमार ने कहा कि महात्मा गांधी का सपना स्वरोजगार का था। वर्तमान समय ने हमें यह एहसास करा दिया है कि हमें स्वरोजगार पर ध्यान देने की आवश्यकता है। पदयात्रा के दौरान यह बातचीत करने की कोशिश की जा रही है कि कैसे हम स्वरोजगार को बढ़ावा दे सकते हैं। कुटीर उद्योग, लघु उद्योग आदि जैसे स्थानीय रोजगार उत्पन्न करने वाले उद्योग की तरफ लौटें और लोग रोजगार की तलाश में पलायन ना करें।


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