कंपनियों को जंगलों में प्रवेश देने से भयभीत वन निवासी


मध्यप्रदेश सरकार द्वारा ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम के तहत जंगलों को निजी कंपनियों को सौंपने की योजना ने वनवासियों की चिंता बढ़ा दी है। क्या इस योजना से पर्यावरण को सच में लाभ होगा, या यह कार्बन व्यापार के नाम पर मुनाफा कमाने की रणनीति मात्र है?


राजकुमार सिन्हा
उनकी बात Published On :

आधुनिक व्यापार – व्यवसाय ने अब तेजी से प्राकृतिक संसाधनों को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया है। जंगल, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई परिभाषा के मुताबिक केवल रिकॉर्ड में दर्ज होना ही काफी है, निजी कंपनियों को दिए जा रहे हैं। वन बहुल मध्यप्रदेश की सरकार धीरे-धीरे जंगलों को निजी हाथों में सौंपने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। वर्तमान में फिर से मध्यप्रदेश सरकार ने वनीकरण के लिए बिगङे वन भूमि को ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम के अन्तर्गत वृक्षारोपण के लिए निजी निवेशकों को सोंपने का योजना बनाई है, जिसमें निवेशकों को 50 प्रतिशत लघु वनोपज बेचने का अधिकार भी शामिल होगा।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार,सत्रह राज्यों ने अबतक ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम के अन्तर्गत वृक्षारोपण के लिए 57,700 हेक्टेयर से अधिक बंजर भूमि को अलग रखा है।

मध्यप्रदेश जो देश में सबसे अधिक वन क्षेत्र वाला राज्य है। उसने 2 फरवरी तक इस कार्यक्रम के लिए 15,200 हेक्टेयर से अधिक बंजर भूमि की पहचान और उसका पंजीकरण किया है जो सभी राज्यों से अधिक है, ऐसा सरकार ने वर्तमान संसद सत्र में बताया है।

करोना काल में मध्यप्रदेश सरकार के ‘प्रधान मुख्य वन संरक्षक’ कार्यालय ने 20 अक्तूबर 2020 को 37 लाख हेक्टेयर बिगङे-वनों को ‘पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप’ (पीपीपी) मोड पर निजी कम्पनियों को देने का आदेश जारी किया था, परन्तु विरोध के बाद इसे रोका गया।

प्रकृति को सुधारने के नाम पर मुनाफा कमाते हुए पूंजी बढाने की तरकीब है – ‘कार्बन व्यापार’ या ‘कार्बन ट्रेडिंग।’ वर्ष 2021 में ‘वैश्विक कार्बन क्रेडिट बाजार’ में 164 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और वर्ष 2030 तक इसके 100 बिलियन अमेरिकी डालर पार करने की उम्मीद है।

‘कार्बन व्यापार’ के जरिए (वनीकरण करके) अन्तराष्ट्रीय बाजार से करोङों रुपए कमाना प्राथमिकता में है। भारत सरकार ने 2008 से 12 के बीच बिगङे-वन, गांव का चारागाह एवं पड़त-जमीन पर वनीकरण कर ‘कार्बन क्रेडिट’ के जरिए 1250 लाख डॉलर कमाने की योजना बनाई थी। विश्वबैंक के आंकलन के अनुसार लकङी, बांस एवं अकाष्ठीय वनोत्पाद का मूल्य 20,000 लाख डॉलर है। ‘संयुक्त वन प्रबंधन’ इलाके के पारिस्थितिकीय एवं पर्यावरणीय टूरिज्म का मूल्य 17,000 लाख डॉलर आंका जा रहा है।

‘ग्रीन इंडिया मिशन’ और ‘रिडयूसिंग एमिशन फ्रॉम डिफारेस्ट्रेशन एण्ड डिग्रेडेशन’ (आरईडीडी), जिसे संक्षिप्त में ‘रेड’ कहा जाता है, के अन्तर्गत भारत सरकार द्वारा अन्तराष्ट्रीय पूंजी लाने की योजना है।

पर्यावरण बचाने के नाम पर विश्व बाजार तैयार करना भी अन्तरराष्ट्रीय पूंजी का हिस्सा हो गया है। अब तो ‘एनजीओ’ भी आदिवासियों को उनके कब्जे की भूमि से बेदखल कर वृक्षारोपण करने का कार्यक्रम चला रहे हैं। ऐसा ही एक मामला मध्यप्रदेश के उमरिया जिले के मानपुर और ताला विकास खंड में आया है, जहां एक संस्था द्वारा आदिवासियों को उनकी ‘वनाधिकार कानून’ के दावे वाली वनभूमि से हटाकर वृक्षारोपण करने की शिकायत मिली है।

पर्यावरण बचाने के नाम पर धन भी बहुत है, लेकिन पूंजीवादी सोच के कारण सब कुछ व्यापारिक दृष्टिकोण से किया जा रहा है। इससे न तो जंगल और न ही पर्यावरण बच पा रहा है।

मध्यप्रदेश में कुल 52,739 गांवों में से 22,600 गांव या तो जंगल में बसे हैं या फिर जंगलों की सीमाओं से सटे हुए हैं। प्रदेश का बङा हिस्सा “आरक्षित वन” है और दूसरा बड़ा हिस्सा राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य आदि के रूप में जाना जाता है।

बाकी बचते हैं वे वन जिन्हें “बिगड़े वन” या संरक्षित वन कहा जाता है।इन संरक्षित वन में पहले स्थानीय लोगों के अधिकारों का दस्तावेजीकरण किया जाना है इसलिए उनका अधिग्रहण नहीं किया जाना है। ये संरक्षित जंगल उन स्थानीय समुदाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण आर्थिक संसाधन हैं जो जंगलों में बसे हैं और जिसका इस्तेमाल वे निस्तार जरुरतों के लिए करते हैं। प्रदेश के विभिन्न जिलों में 6520 वनखंडों में प्रस्तावित 30,06,624 हेक्टेयर भूमि के संबंध में वन व्यवस्थापन की कार्यवाही 1988 से लंबित है।

भारतीय वन अधिनियम 1927 के प्रावधानों के तहत वन व्यवस्थापन अधिकारियों को धारा- 5 से 19 तक कार्यवाही कर धारा-20 में आरक्षित वन बनाने की प्रारुप अधिसूचना मय प्रतिवेदन प्रस्तुत करनी थी, जो अबतक लंबित है। प्रश्न उठता है कि वन अधिकार कानून 2006 की धारा 3(1)(झ) द्वारा ग्राम सभा को जंगल के संरक्षण, प्रबंधन और उपयोग के लिए जो सामुदायिक अधिकार दिया गया है या दिया जाने वाला है,उसका क्या होगा?


Related





Exit mobile version