कोविड में अनियमित हुआ टीकाकरण! इंदौर में लगातार बढ़े मीज़ल्स के मामले, स्वास्थ्य विभाग ने शुरु किया वैक्सीनेशन


इंदौर में जहां भी मीज़ल्स के मामले मिले हैं वहां टीकाकरण के लिए विशेष शिविर लगाए जा रहे हैं।


आदित्य सिंह
उनकी बात Updated On :

इंदौर। टीकाकरण में आई रुकावट अब घातक होती दिखाई दे रही है। रविवार को इंदौर में मीज़ल्स के नौ नए मामले सामने आए हैं। इसके साथ ही शहर में कुल मामलों की संख्या अब तक 47 हो चुकी है। इसके अलावा दो मामले रुबेला के भी मिले हैं। इस दौरान एक बच्चे की मौत भी हुई है। ऐसे में कहा जा सकता है कि इस बेहद खतरकनाक रोग का दायरा अब बढ़ता जा रहा है। ऐसे में टीकाकरण की प्रक्रिया पर सवाल हैं और समस्या का जवाब भी यही प्रक्रिया है।

कोविड के दौरान टीकाकरण में आई रुकावट विश्वभर में दर्ज की गई है। लॉकडाउन में स्वास्थ्य सुविधाओं की परेशानी भी दर्ज की गईं और इस दौरान टीकाकरण में रुकावट को टालना मुश्किल रहा। इसकी एक बड़ी वजह निचली आय वर्ग वाले नागरिकों का विस्थापन भी रही। हालांकि अब जब स्थितियां सामान्य हो रहीं हैं इस रुकावट के परिणाम भी सामने आ रहे हैं।

इंदौर में मीजल्स के मामले मिलने के बाद स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह से सतर्क हो चुका है इसके लिए अब शहरी इलाके में विशेष तौर पर शिविर लगाए जा रहे हैं। यह शिविर सोमवार से ही शुरु किए गए हैं। हालांकि इंदौर ने पहले लक्ष्य से बेहतर यानी करीब 104 प्रतिशत टीकाकरण करने का दावा दिया था लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स में अब विभागीय अधिकारियों के हवाले से कहा जा रहा है कि कई स्थानों पर टीकाकरण लक्ष्य से कम रहा। इन रिपोर्ट्स के मुताबिक अधिकारियों ने अपने प्रेज़ेंटेशन में टीकाकरण को शतप्रतिशत और यहां तक की ज्यादा भी बताया लेकिन जब मामले सामने आए और वजह जानी गई तो पता चला कि जिन इलाकों में संक्रमण मिल रहा है वहां टीकाकरण कम हुआ है।

मीज़ल्स के जो नए मामले सामने आए हैं उनमें पीड़ित बच्चे 1 से 15-16 साल की उम्र के हैं लेकिन ज्यादा संख्या कम उम्र बच्चों की है। जो कि क्षेत्रों चंपा बाग, बड़वाली चौकी और ग्रीन पार्क में रहने वाले हैं। मीज़ल्स की ट्रैकिंग के हिसाब से यह नए क्षेत्र हैं। इससे पहले चंदन नगर, सांवेर, हातौद में भी यह मामले देखे गए हैं। इसे लेकर स्थानीय स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सैंपल परिक्षण के लिए भेज प्रयोगशाला में भेजे हैं। स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि जिन बच्चों में यह लक्षण पाए गए हैं उनमें किसी का भी टीकाकरण पूरी तरह से नहीं हुआ है। वहीं कुछ बच्चे ऐसे भी मिले हैं जिनकी उम्र दस वर्ष हो चुकी है और उनके मातापिता ने अब तक उन्हें टीके एक भी बार नहीं लगवाए हैं। अब इन मरीज़ों पर ज्यादा नजर रखी जा सकती है। ऐसे में इनके लिए विशेष शिविर शुरु किये गए हैं।

डॉ. तरुण गुप्ता, जिला टीकाकरण अधिकारी, इंदौर

जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ. तरुण गुप्ता बताते हैं कि पिछले साल मीज़ल्स के इक्का-दुक्का मामले आए हैं लेकिन इस बार अब तक 47 मामले आए हैं। यह संख्या ज्यादा है। उन्होंने बताया कि यह ज्यादातर मामले शहरी इलाकों में से आए हैं वहीं कुछेक मामले ग्रामीण इलाकों में से आए हैं।

अचानक क्यों बढ़ रहे हैं मामले

बीते साले में मीज़ल्स के कुछ गिने-चुने ही मामले सामने आए थे लेकिन इस बार इनकी संख्या अप्रत्याशित रुप से बढ़ी हुई है। डॉक्टर के मुताबिक खसरा रोग एक समय विशेष पर बढ़ता है। वे कहते हैं यह कि एक प्रिविलिंग टाइम होता है। इसके अलावा स्वास्थ्य विभाग में हमारा मॉडल ऐसा है कि जब भी किसी बच्चे को बुखार होता है या ऐसे कोई लक्षण होते हैं  तो हम उसका सैंपल जरुर लेते हैं। फिलहाल जो मामले में मिले हैं वे सभी इसी तरह पाए गए हैं। 

मीजल्स के संक्रमण से बचें…

डॉ. गुप्ता कहते हैं कि मीज़ल्स को समझना बेहद जरुरी है। जब बच्चे को इसका संक्रमण होता है तो शरीर पर लाल दाने पड़ते हैं और बुखार आता है। इसे स्थानीय स्तर पर माता निकलना आदि भी कहा जाता है। ऐसे में बच्चों के मां-बाप को चाहिए कि वे बच्चे के बीमार होने पर इस स्थिति पर खास सतर्कता बरतें और क्योंकि यह संक्रामक रोग है तो दूसरे बच्चों के भी संक्रमित बच्चे से दूर रखे।

 

प्रभावित बच्चे के आसपास पांच सौ घरों की चैकिंग…

डॉ. गुप्ता ने बताया कि जहां भी मामले मिल रहे हैं वहां ओआरआई एक्टिविटी शुरु की जा रही है। यह एक टीकाकरण अभियान है जो इंदौर शहरी इलाके के नौ वार्ड में चल रहा है। इसके तहत संक्रमित पाए गए बच्चों के आसपास के इलाके में पांच सौ घरों में जांच की जा रही है। वहां के बच्चों की स्थिति समझी जाती है और यह तय किया जा रहा है कि वे बच्चे मीज़ल्स से प्रभावित हुए बच्चों के संपर्क में आए हैं या नहीं।

मीज़ल्स के मामले सामने आने के बाद इंदौर में बच्चों को टीके लगाए जा रहे हैं

इस अभियान के बारे में बताते हुए डॉ. गुप्ता कहते हैं कि जिन बच्चों में लक्षण मिलते हैं उन पर निगरानी रखी जाती है। वहीं जो बच्चे प्रभावित पाए जा चुके हैं उन पर विशेष निगरानी की जरुरत होती है। वहीं उन बच्चों को भी खोजा जाता है जिनका टीकाकरण नहीं हुआ है। इसके साथ ही इन्हें एक विटामिन ए की दवा पिलाई जाती है। यह उन सभी बच्चों के लिए होती है जिन बच्चों में लक्षण होते हैं और जो इन बच्चों के संपर्क में आए हैं।

टीकाकरण को गंभीरता से लें अभिभावक

इस आउटब्रेक एक्टिविटी में टीकाकरण से छूटे हुए नौ माह से दस साल के बच्चों को खोजा जाता है और उन्हें अतिरिक्त डोज दिया जाता है जैसे कि पोलियो के लिए होता है। डॉ. गुप्ता ने उम्मीद जताई कि इसके अतिरिक्त टीकाकरण के बाद बच्चों को राहत मिलेगी वहीं इस बात से चिंतित भी नजर आए कि मातापिता बच्चों के टीकाकरण को गंभीरता से नहीं ले रहे।

इस समस्या को देख रहे अन्य विशेषज्ञों के मुताबिक यह कहना गलत नहीं होगा कि कोरोना के दौरान टीकाकरण में रुकावट आई है और इसके बाद लोग अपनी जीवनचर्या में उलझ गए और इस तरह वे टीकाकरण करवाना भूल गए। ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक ऐसा होने की संभावना अधिक है हालांकि राहत की बात यह है कि अब तक ऐसे मामले इन इलाकों में बहुत ज्यादा नहीं देखे गए हैं लेकिन फिर भी इनके आने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।

इंदौर जिले के ही एक ग्रामीण क्षेत्र में कुछ अभिभावकों ने गोपनीयता की शर्त पर बताया कि उनके बच्चों को टीकाककरण में कुछ महीने की देरी हुई क्योंकि वे कोरोना के समय की भयंकर स्थितियों को देखकर डर गए थे और अस्पताल जाने में भी घबरा रहे थे। इस दौरान यह अफवाह  भी थी कि किसी भी तरह के इंजेक्शन से बच्चों को खतरा हो सकता है लेकिन ज्यादा बड़ा डर अस्पतालों में कोरोना संक्रमितों के संपर्क में आने का था जिसकी वजह से मां-बाप ने अपने बच्चों को टीका नहीं लगवाया। हालांकि जिन माता-पिता से हमने बात की उन्होंने बाद में अपने बच्चों का टीकाकरण करवा लिया था।

पलायन से भी बढ़ी परेशानी

इंदौर के नजदीकी क्षेत्र पीथमपुर में स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी बताते हैं कि यहां लोगों को ट्रैक करना काफी मुश्किल रहा क्योंकि लॉकडाउन के दौरान बहुत से मजदूर पलायन कर गए और कई तो लौटकर ही नहीं आए। वहीं जो आए उन्हें आज भी खोजकर उनके बच्चों के लिए टीकाकरण के लिए कहा जा रहा है। पीथमपुर धार जिले में आता है कि जो एक आदिवासी बहुल इलाके के रुप में जाना जाता है। इस जिले में मीज़ल्स के पांच से कम मामले आए थे जिन्हें गंभीर स्थिति के रुप में दर्ज नहीं दिया गया है। यहां के टीकाकरण अधिकारी डॉ. सुधीर मोदी बताते हैं कि उनके जिलों में टीकाकरण के लक्ष्यों को पूरी तरह हासिल किया गया। ऐसे में वहां चिंता की कोई बात नहीं है। े

कोविड काल में भी अस्पतालों में जारी रहा टीकाकरण 

वहीं इंदौर जिले में ही आने वाले नजदीकी शहर महू और यहां के ग्रामीण इलाकों की जानकारी लेने पर पता चला कि अब तक यहां ऐसे कोई मामले सामने नहीं आए हैं। यहां के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल के प्रभारी डॉ. हंसराज वर्मा कहते हैं कि कोरोना के समय पूरा स्वास्थ्य अमला जीवन रक्षक कार्य में जुटा था ऐसे टीकाकरण थोड़ा अनियमित जरुर हुआ लेकिन इसमें कभी कोई रुकावट नहीं आई। डॉ. वर्मा के मुताबिक अस्पतालों में समय-समय पर टीकाकरण के कैंप लगाए गए हैं और बच्चों के रिकार्ड के आधार पर फॉलोअप भी हुआ है। हालांकि वे यह भी कहते हैं कि कोरोना के दौरान ग्रामीण और शहरी इलाकों में अगर परिवारों ने अपनी स्थिति बदली हो तो संभव है कि उन बच्चों को पूरी खुराक न मिल सकी हो ऐसे में विभाग के घर घर जाकर की जाने वाली जांच में यह सामने आ जाएगा लेकिन अब तक इसे लेकर भी कोई चिंताजनक जानकारी नहीं मिली है।

अंतर्राष्ट्रीय चिंता

टीकाकरण पर नजर रखना स्वास्थ्य सेवाओं का एक सबसे जरुरी काम है और कोविड काल में इस काम में रुकावट न सही लेकिन अनियमितता जरुर दर्ज की गई। ऐसे में कहा जा सकता है कि महामारी से बचते हुए हम दूसरी महामारी के खतरे को बढ़ा रहे थे।

अनुराधा गुप्ता

सेबिन वैक्सीन इंस्टीट्यूट में ग्लोबल इम्यूनाइजेशन विभाग की प्रेसिडेंट अनुराधा गुप्ता के मुताबिक, “भारत में हर साल करीब ढाई करोड़ बच्चे जन्म लेते हैं। इनमें से 30 लाख बच्चे वैक्सीन की एक भी खुराक नहीं ले पाते हैं यानी वे “जीरो-डोज़” बच्चे होते हैं। वैक्सीन का प्रसार बहुत अच्छा होने के बावजूद भारत में जीरो-डोज़ बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है।”

अनुराधा आगे गुप्ता बताती हैं, “वैक्सीनेशन को लेकर पूरी दुनिया के लिए निर्धारित एक ही किस्म के तौर-तरीके अपनाने का दौर अब नहीं रहा। अगर हम समाज के लिए टीकों की परिवर्तनकारी शक्ति प्रदान करना चाहते हैं तो संस्थानों को स्थानीय आवाजों को सुनना चाहिए, उनकी विशेषज्ञता और ज्ञान का सम्मान करना चाहिए और साथ मिल कर समाधान खोजने चाहिए।“

डॉ. अनंत भान

इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ बायोएथिक्स के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनंत भान के मुताबिक, “बच्चों के नियमित टीकाकरण में बड़ी संख्या में हुई कमी की भरपाई करने के लिए व्यवस्था संबंधी उन मामलों पर काम जरूरी है जो कमजोर तबके के भरोसे की कमी को दूर करते हैं।“

 


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