व्यवस्थाओं का संक्रमण कालः संतरे के खेत में पेड़ के नीचे लिटाकर, स्लाईन चढ़ाकर इलाज कर रहे झोलाछाप डॉक्टर


संतरे की फसल के लिए मशहूर इन इलाकों में झोलाछाप डॉक्टर मरीज़ों को संतरे के बागीचों में ही भर्ती कर रह हैं। मरीज़ पेड़ों की छांव में लेटे हैं और पेड़ की डालियों से लटकाकर उन्हें सलाईन लगाई जा रही है।


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उनकी बात Published On :

इंदौर। कोरोना काल के दौरान प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के बारे में आ रही खबरों के बाद बहुत से लोगों का इन पर से विश्वास कम भी हुआ है। इंदौर और आसपास के गांवों में भी देखा जा रहा है कि बहुत से लोग अस्पताल जाने में घबरा रहे हैं।

इसके अलावा क्षेत्र के सुसनेर, आगर मालवा में भी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं से डर का माहौल बना हुआ है। यहां लोग सरकारी अस्पताल  जाने की बजाए झोला छाप डॉक्टरों पर भरोसा कर रहे हैं। इन डॉक्टरों ने भी मरीज़ों को क्वारंटीन कर भर्ती करने का एक अलग तरीका बना लिया है।

संतरे की फसल के लिए मशहूर इन इलाकों में झोलाछाप डॉक्टर मरीज़ों को संतरे के बागीचों में ही भर्ती कर रह हैं। मरीज़ पेड़ों की छांव में लेटे हैं और पेड़ की डालियों से लटकाकर उन्हें सलाईन लगाई जा रही है।

दैनिक भास्कर अख़बार ने पांच मई के इंदौर संस्करण में इस खबर को प्रकाशित किया है। जहां सुसनेर से पिड़ावा जाने वाली सड़क में धनियाखेड़ी गांव के करीब एक संतरे के बागीचे में ऐसा इलाज चल रहा है।

यह सरकारी स्वास्थ्य तंत्र और व्यवस्थाओं के प्रति लोगों का अविश्वास ही है कि यहां दवा करवाने के लिए आसपास के दस गांव गांवों के डॉक्टर आ रहे हैं।

हालांकि यह तरीका पूरी तरह गलत है क्योंकि यहां इलाज करने वाले झोलाछाप डॉक्टर न तो यहां आपस में दूरी रखने के नियम का पालन कर रहे हैं और न ही यहां भर्ती मरीज़ मास्क ही लगाए हुए हैं।

इस बारे में स्थानीय बीएमओ डॉ. मनीष कुरील ने अख़बार से हुई बातचीत में जवाब दिया कि वे कई बार झोलाछाप डॉक्टरों को चेता चुके हैं लेकिन वे बाज़ नहीं आ रहे हैं अब वे उन पर कार्रवाई करेंगे।

झोलाछाप डॉक्टरों के क्लिनिक भी लगातार खुले हुए हैं और वे लोगों का इलाज भी कर रहे हैं। बहुत से ग्रामीणों के मुताबिक इसकी वजह सरकारी और निजी अस्पतालों से आ रही खबरें हैं जिनसे वे डरे हुए हैं। दूसरी एक वजह निजी अस्पतालों में होने वाला बड़ा खर्च है जिससे वे बचना चाहते हैं।


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