मध्य प्रदेश में 6592 वनरक्षकों से 162 करोड़ रुपये की वसूली के आदेश के बाद गुस्से की लहर दौड़ गई है। अधिकारियों ने वसूली की राशि का निर्धारण करते हुए हर महीने वेतन से कटौती के निर्देश जारी किए हैं। इससे वनरक्षकों में आक्रोश है। वसूली के इस फैसले के विरोध में कई वनरक्षकों ने खून से पत्र लिखकर मुख्यमंत्री मोहन यादव से न्याय की मांग की है।
वनरक्षकों का कहना है कि इस गलती के लिए उन्हें क्यों दंडित किया जा रहा है, जबकि वेतन बैंड का निर्धारण वन और वित्त विभाग ने किया था। उनके मुताबिक अब उन्हें 12 प्रतिशत ब्याज के साथ राशि लौटाने को मजबूर किया जा रहा है, जो अन्यायपूर्ण है।
वसूली का कारण और वनरक्षकों का विरोध
इन वनरक्षकों को वर्ष 2006 से 2014 के बीच 5680 रुपये के वेतन बैंड के अनुसार अतिरिक्त भुगतान किया गया था। अब वित्त विभाग ने इसे गलत ठहराते हुए 1.50 लाख से 5 लाख रुपये तक की वसूली का आदेश दिया है, जिसमें 12 प्रतिशत का ब्याज भी शामिल है। वनरक्षक पूछ रहे हैं कि अगर यह गलती वित्त विभाग की थी, तो इसका खामियाजा उन्हें क्यों भुगतना पड़े?
खून से पत्र लिखने वाले वनरक्षक
इस फैसले का विरोध सतना और रीवा जिलों के वनरक्षकों ने किया है। इनमें मध्य प्रदेश कर्मचारी मंच, जिला सतना के विभागीय समिति अध्यक्ष नरेंद्र पयासी, अरविंद सिंह, मुकेश पांडे, बृजलाल वर्मा, संजय प्रजापति, रमायण यादवेन्द्र और ब्रजेश मिश्रा सहित कई अन्य वनरक्षक शामिल हैं। उन्होंने खून से पत्र लिखकर वसूली रोकने की मांग की है।
वेतन निर्धारण का विवाद
साल 2006 से 2014 के बीच वनरक्षकों को 480 रुपये प्रतिमाह की अतिरिक्त राशि का भुगतान किया गया। अब वित्त विभाग का कहना है कि यह अतिरिक्त राशि गलत थी और इसे लौटाना होगा। इसी आधार पर राज्य शिक्षा केंद्र ने वसूली के निर्देश दिए हैं, जो कि वनरक्षकों के प्रति अन्यायपूर्ण माना जा रहा है।
वनरक्षकों की नाराजगी
वनरक्षकों का कहना है कि सरकार की नीतिगत गलतियों की सजा वेतनभोगियों को क्यों दी जा रही है। यह सवाल पूरे राज्य में चर्चा का विषय बन गया है। वनरक्षकों ने मांग की है कि सरकार इस वसूली को रोकते हुए न्याय करे।
इस मुद्दे पर कई वनरक्षक संघों ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है और इसे कर्मचारियों के अधिकारों का उल्लंघन बताया है। इस संबंध में कई अखबारों और न्यूज़ वेबसाइट्स पर खबरें प्रकाशित की गई हैं, जिसमें वसूली के इस फैसले की आलोचना की जा रही है।
मांग और सवाल:
अब सवाल यह उठता है कि अगर यह गलती वित्त विभाग की थी, तो उसे सुधारने की जिम्मेदारी भी उसी की है। वनरक्षकों से वसूली करने की बजाय, क्या सरकार को विभागीय अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करनी चाहिए?