धार। खेतों में मेहनत कर लगाए फसलों के दाम नहीं मिलने से किसानों को जबरदस्त घाटा हो रहा है। अब वह लहुसन-प्याज़ की खेती से तौबा करने की बात करने लगे हैं।
लगातार कोरोना काल के बाद से ही किसानों को अपनी उपज का सही दाम नहीं मिल पा रहा है। खेतों में मेहनत व उपज के लिए लगाया गया पैसा भी नहीं निकाल पा रहे हैं जिसके बाद वे उन्होंने इन फसलों से मुंह मोड़ने का मन बना लिया है।
किसान हित की बात करने वाली सरकार हर एक सभा में हर एक कार्यक्रम में किसानों की आमदनी बढ़ाने की बात करती है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि आए दिन किसान अपनी उपज का सही दाम ना मिलने का कारण फसलों को कौड़ियों के मोल बेचते हैं या फिर उसे फेंक देते हैं।
लहसुन उपजाने वाले किसान अब बोलने लगे हैं कि मोदी जी आपने कहा था कि किसानों की आमदनी दोगुनी कर देंगे, हमारी फसलें कौड़ियों के भाव जा रहीं हैं। किसान का लहसुन 1 रुपये से 3 रुपये किलो बिका रहा है।
लहसुन की बंपर उत्पादन होने के बाद भी किसान परेशान हैं क्योंकि किसानों को मंडियों में लहसुन के उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं। व्यापारी 100 से लेकर 400 रूपये प्रति क्विंटल के हिसाब से किसानों से लहसुन खरीद रहे हैं।
अच्छी क्वालिटी की लहसुन 1000 क्विंटल तक जा रही है। अपनी उपज के उचित दाम नहीं मिलने से हताश होकर किसान नदियों में और सड़कों पर लहसुन फेंक रहे हैं।
किसान आए दिन विरोध-प्रदर्शन कर सरकार से अपनी उपज का सही दाम दिलाने की मांग कर रहे हैं तो कुछ किसान लहसुन से भरी दर्जनों बोरियां नदी में फेंक कर अपना विरोध जता रहे हैं।
बता दें कि जिले में लहसुन और प्याज का अच्छा उत्पादन होता है। बीते कुछ सालों में जिले में लहसुन और प्याज का रकबा बढ़ा है। इस वर्ष लहसुन की बंपर उत्पादन हुई है लेकिन मंडियों में व्यापारी लहसुन कौड़ियों के दाम खरीद रहे हैं।
एक क्विंटल फसल की लागत करीब 3 से 4 हजार रूपये के बीच किसान को आती है। डीजल के दाम भी अधिक हैं। ऐसे में किसान को मंडी आने में काफी नुकसान है। लहसुन के उचित दाम नहीं मिलने से नाराज किसान आए दिन विरोध जता रहे हैं।
जिले के किसान कहते हैं कि
किसान अपनी फसल के उचित मूल्य प्राप्त करने के लिए तरस रहा है। किसान अपना पेट नहीं भरता किसान तो पूरे प्रदेश और देश की जनता का पेट भरता है, लेकिन किसान आज पूरी तरह बर्बाद हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मांग है कि कृषि उपज लहसुन एवं प्याज का निर्यात तुरंत प्रभाव से लागू करवाए या भावांतर योजना या राजस्थान की तर्ज पर बाजार हस्तक्षेप योजना को लागू करवाया जाए जिससे किसान अपनी उपज बेच सके।
पारंपरिक खेती छोड़ नवाचार की देते हैं सीख –
एक तरफ सरकार किसानों को परंपरागत खेती से हटकर आधुनिक खेती अपनाने के लिए प्रेरित कर रही है। दूसरी तरफ किसानों को उनकी फसल का उचित दाम दिलाने में नाकाम नजर आ रही है। सरकार ने किसानों को लहुसन की खेती करने के लिए काफी प्रचार-प्रसार किया।
जब किसान परंपरागत खेती छोड़ लहसुन की खेती करने लगा, तो उसे उसकी फसल की आधी लागत भी हासिल नहीं हो रही है। परेशान किसान अब लहसुन की खेती करने से तौबा कर रहा है।
दूसरी ओर सरकार किसानों को खेती से लाभ का धंधा बनाने की बात करती है जबकि जमीनी स्तर पर किसान अपना खून पसीना बहाकर उत्पादन करता है। खेत से घर व घर से मंडी में जाते-जाते उसकी उपज का भाव पानी के दाम बिकता है जिससे किसान को उसकी लागत भी अपने हाथ में नहीं आती है।
इस बार अधिकांश किसान इस फसल से तौबा कर करने की बोल रहे हैं। किसानों के लिए इस बार लहसुन की खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है। लहसुन की पैदावार आते ही दाम औंधे मुंह गिर गए हैं। इससे किसान खासे परेशान हैं।
लहसुन के मौजूदा भाव में लागत भी निकलना मुश्किल हो गई है। लहसुन को किसान ज्यादा समय तक स्टॉक भी नहीं कर सकते हैं। भीषण गर्मी में खराब होने लग जाता है। उधर मुंबई मंडी में एक किसान का बढ़िया गुणवत्ता का लहसुन 2.50 रुपये प्रति किलो बिका।
मंडियों में 1 रुपये से 10 रुपये किलो भाव –
किसान जिस तरह लहसुन-प्याज की खेती करता है समझो अपने बच्चों का पालन पोषण करता है। बुवाई के समय लहसुन के दाम 8 से 10 हज़ार रुपये किलो चल रहे थे, इस कारण किसानों ने अच्छी बुवाई की थी, लेकिन अब दाम काफी गिर गए हैं।
मंडियों में 1 रुपये से 10 रुपये किलो बिक रहा है और औसत कीमत 3 रुपये प्रति किलो रह गया है। किसानों ने बताया कि जब बुवाई की उस वक्त लहसुन में जोरदार तेजी थी। अब जब फसल घर में लाए तो लहसुन में मेहनत भी नहीं निकल पाने से किसान परेशान हो रहे।
किसानों के कर्ज के बोझ की वजह किसानों को लहसुन-प्याज़ की फसल में आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। इस बार लहसुन की फसल में बीमारियों का प्रकोप भी अधिक रहा व उत्पादन भी कम हुआ। मंडियों में फसलों का दाम भी नहीं मिला जिससे किसान आज ठगा सा महसूस कर रहा है।
सताने लगा डर, कहीं खराब ना हो जाए लहुसन –
लहसुन उत्पादक किसान अजीत पटेल ने बताया कि उन्होंने लहसुन को रोक रखा है। इस वक्त मंडियों में भाव नहीं मिलने की वजह से घरों गोदामों में लहसुन को रख रखा है। जब अच्छा भाव आएगा तब लहसुन को बेचेंगे।
अब बारिश के चलते खराब होने का डर भी सता रहा है। सरकार द्वारा निर्यात पर रोक लगाई गई है जिसके कारण लहुसन व अन्य फसलों का दाम नहीं मिल रहा है जिसके कारण किसान काफी नाखुश हैं।
सरकार अगर निर्यात खोलती है तो लहसुन की फसलों के भाव भी चमकेंगे व किसानों को फायदा होगा। इस साल लहसुन की खेती करने वाले किसानों को काफी नुकसान हो रहा है जिसकी वजह से क्षेत्र के किसान बेहद परेशान हैं।
इतनी होती है लहसुन की खेती में लागत –
- अगर किसान लहसुन की फसल लगाता है तो उसे बच्चों की तरह संभालना होता है। सबसे पहले किसान लहुसन को धूप लगाकर फोड़ते हैं। एक बीघा में दो से तीन क्विंटल चौपाई लगती है। इसको किसान से खरीदी 8 से 10 हजार रुपये का बीज लगाया जाता है।
- उसको 300 रुपये रोज की मजदूरी में चौपाई की किसान शुरुआत से लेकर उसे दवाई से निकालने तक कुल खर्च 35 से 40 हजार रुपये के बीच का होता है जो कि एक बीघा में लगता है।
- एक बीघा में किसान 15 से 16 क्विंटल तक उत्पादन करते हैं मगर आज के मंडी भाव 1 रुपये से 1500 सौ रुपये क्विंटल तक ही किसान अपनी लहसुन बेच पा रहे हैं।
- आज किसान अपनी उपज बेच रहे हैं तो उसे उसे हजारों रुपये का घाटा हो रहा है। साथ ही उसे मंडी ले जाने व खेतों से लाने का किराया अलग है जिसकी वजह से किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।
- किसानों को समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर इसकी लागत कैसे निकलेगी। अभी स्थिति देखते हुए आज मजदूरों की मजदूरी भी नहीं निकाल पा रहे हैं।
ऐसे बिगड़ा किसानों का गणित –
- किसानों ने पिछले साल की तुलना में इस साल लहुसन की खेती का रकबा बढ़ाते हुए ज्यादा बड़े रकबे में लहसुन बो दिया जिससे बाजार में माल बढ़ गया।
- मौसम के कारण इस बार फसलों में रोग से गुणवत्ता खराब हुई और दाम गिरे। कई जगह लहसुन में फफूंद लग गई जो खेतों में ही खराब हो गई।
- कई किसानों के पास भंडारण व्यवस्था न होने से उनकी उपज खराब हो गई इसलिए कम दाम में बिक रहे। इस समस्या पर सरकारों ने ध्यान नहीं दिया ओर मंडियों में अच्छी लहुसन का दाम भी किसानों को सही से नहीं मिल पा रहा है।
- लहुसन निकलते ही किसानों ने लहसुन बेचना शुरू किया, जिससे कीमत लगातार घटती चली गई। व्यापारियों ने भी औने-पौने दामों पर ले लिया। इसी वजह से लागत तो दूर किसानों की मजदूरी भी नहीं निकल पा रही।
- लहसुन उत्पादकों की इस समस्या की ओर केंद्र और राज्य सरकार ने समय रहते कोई ध्यान नहीं दिया। बाजार में किसानों को प्याज व लहुसन का सही दाम नहीं मिला।
- केंद्र सरकार से उम्मीद थी कि लहसुन को निर्यात करेंगे, लेकिन पहल नहीं की। इसी तरह से राज्य सरकार ने भी ध्यान नहीं दिया। भाव नहीं मिला, नदी में फेंकना शुरू कर दिया।
लहुसन का रकबा सरकारी आंकड़ों में –
लहसुन उत्पादन में प्रदेश देश में नंबर एक पर है। इसकी खेती ज्यादा मालवा-महाकौशल क्षेत्र में होती व कई जगह निमाड़ में भी होने लगी है। उद्यानिकी विभाग के आंकड़े बताते हैं, अभी सूबे में लहसुन का रकबा वर्ष 2021-20 के मुताबिक 15 हजार 603 हेक्टेयर में थी वही इसका उत्पादन 1 लाख 61 हजार 701 मीट्रिक टन उत्पादन हुआ है।
वर्ष 2021-22 में देखा जाए तो 16 हजार 382 हेक्टेयर में लहसुन लगाई गई है व 1 लाख 69 हजार 786 मीट्रिक टन उत्पादन हुआ है। इस बार रकबे के साथ उत्पादन भी बढ़ा है।
आपको बता दें कि जो अच्छे मूल्य मिलने से कुछ सालों में लगातार इसका रकबा बढ़ा। विशेषज्ञों का कहना है, अच्छे दाम मिलने से किसानों ने एक साल में रकबा दोगुना तक बढ़ाया, लेकिन किसान केंद्र व राज्य सरकारों ने इसके लिए कारगर रणनीति नहीं बनाई इसलिए ऐसे हालत पैदा हुए।
एक दशक पहले भी ऐसी स्थिति में किसानों ने लहसुन जलाया व फेंका था। आज भी बाजार में फसल लाने का किराया तक नहीं निकल पा रहा है तो मजबूरी में नदी या कहीं अन्य जगह फेंककर जा रहे हैं।
3 से 4 हजार रुपये प्रति क्विंटल की लागत –
लहसुन की खेती करने पर करीब तीन हजार रुपये प्रति क्विंटल की लागत आती है। प्याज की हालत भी खराब है। इसकी लागत करीब दो हजार रुपये प्रति क्विंटल आती है, लेकिन इस समय भाव 500 से 800 रुपये प्रति क्विंटल ही है। किसानों की मांग है कि लहसुन, प्याज का निर्यात होना चाहिए। सरकार भावांतर योजना का लाभ किसानों को दे। – नारायण डोडिया, किसान
लागत तो दूर मेहनत का पैसा नहीं निकल रहा –
कैसे खेती को लाभ का धंधा बनाएं। पहले तो लागत निकल जाती थी मगर आज तो मजदूरी निकालना भी कठिन साबित हो रहा है। हमने उपज तो लगा दी मगर आज उसका मंडी में भाव नहीं मिल रहा है जिससे हमें आने ले जाने का भाड़ा तक नहीं निकल रहा है। कैसे खेती को लाभ का धंधा बनाएंगे जब किसानों के घर में फसल पककर आती है और जब बाजारों में सरकार बाहर से माल बुलवा लेती है या निर्यात पर रोक लगा देते हैं और किसानों का फसल गोदामों में रखी रह जाती है। महीनों तक भाव बढ़ने का इंतजार कर रहे हैं। इस बार भी लहसुन का भाव नहीं आया। – परसराम पटेल, किसान, अनारद
फेंकने को मजबूर, भाव ही नहीं हैं क्या करें –
किसान की उपज बेचने का समय आता है जब बाजारों से भाव गायब हो जाता है। जब किसान के पास उपज नहीं रहती है तो बाजार में भाव दोगुना हो जाता है। किसान को अब खेती करना ही दुश्वार हो गया है। अब किसानों के पास खून के आंसू रोने के अलावा कुछ नहीं है। लहसुन की उपज खेतों में लगाई मगर मजदूरी भी निकालना आज दुभर है। नेता जी अपने भाषणों में बोलते हैं, अधिकारियों को निर्देशित करते हैं लेकिन सिर्फ कागजों तक सीमित रह जाती है। लगातार दो सालों से हमें लहसुन की फसल में घाटा ही उठाना पड़ रहा है। – राजेश लववंशी, किसान, सकतली