दोगुनी आमदनी! बैंगन, मिर्च टमाटर के दाम नहीं मिले तो मंडी न ले जाकर उखाड़ फेंक रहे किसान


एक और दो रुपये तक मिल रहे थे बैंगन के दाम, बाजार में नहीं मिल रहे थे दाम तो उखाड़ना ही था विकल्प


ब्रजेश शर्मा
उनकी बात Updated On :

नरसिंहपुर। दो गुनी आमदनी के दावों के बीच किसानों की खराब हो रही आर्थिक हालत की खबरें रोजाना आ रहीं हैं। नर्मदा किनारे के उपजाऊ मैदानों में भी किसान परेशान हैं। उनकी परेशानी इतनी है कि वे अपनी फसलों को बाजार तक में नहीं ले जा पा रहे हैं क्योंकि इसके लिए भी जो पैसा लगना है वह फसल बेचकर भी नहीं वसूल हो पाएगा। ऐसे में ये किसान अपनी फसल अपने हाथों से खत्म कर रहे हैं।

अपनी जमीन के एक हिस्से पर ड्रिप   सिस्टम से एक किसान ने बैंगन, मिर्च और टमाटर की फसल लगाई थी। उसे उम्मीद थी कि उसे अच्छा दाम मिलेगा लेकिन बाजार की हालत को देखकर यह मुश्किल नजर आ रहा था। हालत ये थी फसल को तोड़कर बाजार तक लेकर जाने में और भी ज्यादा खर्च होना था लिहाज़ा उन्होंने तय किया कि अब फसल को खेतों में ही खत्म किया जाए। भारी मन से अपनी फसल को खेतों में सुखाया गया और फिर अब उसे बाहर फेंका जा रहा है।

जिले के समनापुर गांव के गजराज सिंह ने अपने 18 एकड़ के रकबे में से तीन एकड़ में बैंगन, टमाटर और मिर्च आदि सब्जियों के पौधे लगाए थे। फसल में अच्छी ग्रोथ हो रही थी और उन्हें मुनाफे की उम्मीद भी दिख रही थी लेकिन बाजार ऐसा नहीं था। वे बताते हैं कि फसल बड़ी हो रही थी और वे मंडियों की ओर देख रहे थे।

 

इस दौरान बाजार में भाव नहीं थे। गजराज सिंह कहते हैं कि उन्हें दो रुपए किलोग्राम के दाम मिल रहे थे इसके बाद उन्होंने सही दाम का इंतज़ार किया लेकिन इसके बाद उनकी उम्मीद खत्म हो गई और ऐसे में फसल खत्म करने का फैसला करना पड़ा।

बैंगन के पौधे

वे बताते हैं कि फसल बेचना नुकसान देह था क्योंकि फसल को तुड़वाने की मजदूरी और मंडी तक ले जाने का खर्च भी काफी लग रहा था। इस तरह उन्हें प्रतिकिलोग्राम कम से कम 8-10 रुपये तक का नुकसान हो रहा था। ऐसे में उन्होंने फसल को लगा रहने दिया और फिर उसमें पानी देना बंद कर दिया। अब फसल सूख चुकी है और वे इसे निकाल कर फेंकर रहे हैं।

वे कहते हैं कि उन्होंने फसल तुड़वाने के लिए भी तीन सौ रुपये दिन के हिसाब से चार मजदूर लगाए हैं ताकि दो दिन में ही सब कुछ उखाड़कर फेंका जा सके। वे बताते हैं कि वे इसे देखकर बेहद दुखी हैं वहीं इलाके के दूसरे किसान भी इस तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं। ये किसान बताते हैं कि खेती में हो रहे नुकसान से वे परेशान हो चुके हैं और व्यवस्थाओं के आगे हताशा बढ़ रही है।

आंधी में आम भी टूट गए

गजराज सिंह बताते हैं कि सरकार ने सब्जबाग जरूर दिखाया कि खेतीबाड़ी से आय दुगनी होगी पर किसानों के लिए यह सब्जबाग पिछले कई वर्षों से घाटे का सौदा रहा है और कई बार तो लागत ही नहीं निकल रही है। एक अन्य खेत में पौधे उखाड़ कर फेंक रहे मजदूर किसान मुन्ना झारिया और महिला मजदूर राधाबाई कहती हैं कि जब बाजार में दाम ही नहीं मिलेंगे तो फसल तोड़ना महंगा है इसलिए पूरी फसल खेत में ही सुखा दी गई है।

समनापुर गांव के ही एक अन्य किसान दौलत सिंह पटेल  बताते हैं कि इन्होंने 20-22 एकड़ खेती में से लगभग ढाई एकड़ रकबे में आम की फसल लगाई अन्तरवर्ती फसल के रूप में टमाटर वह टमाटर लगवा देते हैं परंतु पिछले 4 साल बहुत बुरे गुजरे हैं। वे फसल के अपने हिसाब का लेखा जोखा बताते हुए कहते हैं कि इससे बहुत अधिक नुकसान हो रहा है। आम और टमाटर की फसल साल भर में 50 हज़ार भी नहीं दे पाती है।

कहते हैं कि वर्ष 2017 में जब मुख्यमंत्री ने नमामि देवी नर्मदा यात्रा निकाली थी और 2 जुलाई 2017 को वृहद स्तर पर पौधरोपण करा कर गिनीज बुक में नाम दर्ज कराने का अभियान चलाया था तब उनके खेत में अधिकारियों ने आकर पौधरोपण किया था लेकिन इन 5 सालों में उन्हें ढाई 3 एकड़ रकबे में से लागत भी नही मिल पाती है।

वह बताते हैं कि उद्यानिकी विभाग के जरिए उन्हें फलोद्यान योजना के तहत 40 – 40 हज़ार प्रति साल मिलना थी लेकिन वह अनुदान एक साल ही मिल सका और यह कहकर बंद कर दिया गया कि शासन ने फंड देना बंद कर दिया है।

फल उद्यान

किसान कहते हैं कि उनकी ढाई 3 एकड़ जमीन जबरदस्ती में इस पौधरोपण में फंस गई है। अब रोज बारिश और आंधी से उम्दा किस्म के आम टूट कर गिर रहे हैं जो कौड़ी के भाव बिकते हैं।  गजराज सिंह या दौलत सिंह पटेल उन्नतशील और बड़े काश्तकार हैं परंतु जिन किसानों के पास अगर एक दो एकड़ जमीन है उन्हें खेती के सहारे घर गृहस्थी चलाना मुश्किल साबित हो रहा है। वे कहते हैं कि सरकारी योजनाएं किसानों को ध्यान में रखकर वैज्ञानिक ढग से बनाई जातीं तो शायद राहत रहती लेकिन ऐसा नहीं है और अब तो मौसम और बाजार भी परेशान कर रहा है ऐसे में खेती कहां से मुनाफ़े का काम रह गई है।


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