मध्य प्रदेश में सोयाबीन के दाम को लेकर किसानों का आक्रोश: “अबकी बार 6000 पार”


मध्य प्रदेश में सोयाबीन किसानों ने एमएसपी 6000 रुपये प्रति क्विंटल किए जाने की मांग को लेकर आंदोलन छेड़ दिया है। सरकार ने 4892 रुपये प्रति क्विंटल की एमएसपी तय की है, जिसे किसान अस्वीकार्य मान रहे हैं। भारतीय किसान संघ (बीकेएस) ने भी इस मांग का समर्थन करते हुए 16 सितंबर को प्रदेशभर में प्रदर्शन करने की घोषणा की है।


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उनकी बात Published On :

मध्य प्रदेश में सोयाबीन की खेती करने वाले किसान इन दिनों अपनी फसल के उचित दामों के लिए आंदोलित हैं। उनकी प्रमुख मांग है कि सोयाबीन की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को बढ़ाकर 6000 रुपये प्रति क्विंटल किया जाए। हालांकि, राज्य सरकार ने अभी भी 4892 रुपये प्रति क्विंटल की ही एमएसपी तय की हुई है, जिससे किसानों में भारी नाराजगी है। किसान संगठनों और आरएसएस के आनुषंगिक संगठन भारतीय किसान संघ (बीकेएस) ने सरकार की इस नीति के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और “अबकी बार 6000 पार” का नारा दिया है।

 

सोयाबीन की खेती और मौजूदा स्थिति

सोयाबीन मध्य प्रदेश का प्रमुख नकदी फसल है। राज्य देश में सोयाबीन उत्पादन का सबसे बड़ा केंद्र है, जिसे ‘सोया स्टेट’ भी कहा जाता है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से उत्पादन लागत बढ़ने और बाजार में कीमतों में गिरावट के कारण किसान लगातार घाटे में चल रहे हैं। उर्वरक, बीज, कीटनाशकों की कीमतें लगातार बढ़ी हैं, लेकिन एमएसपी में पर्याप्त वृद्धि नहीं की गई है। इसके कारण किसानों को बाजार मूल्य और सरकारी खरीद के बीच भारी अंतर का सामना करना पड़ता है।

एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण केंद्र सरकार द्वारा किसानों के उत्पादन लागत को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि किसान अपनी फसल को एक न्यूनतम लाभ के साथ बेच सकें। परंतु, किसान संगठनों का कहना है कि 4892 रुपये की एमएसपी से उनकी लागत भी पूरी नहीं हो रही है।

 

किसानों की बढ़ती मुश्किलें

भारतीय किसान संघ (बीकेएस) के राष्ट्रीय प्रचार प्रमुख राघवेंद्र सिंह का कहना है कि मौजूदा एमएसपी किसानों के हित में नहीं है। उनका कहना है कि इससे किसानों की उत्पादन लागत भी पूरी नहीं होती, और वे लगातार आर्थिक तंगी में घिरते जा रहे हैं।

 

सोयाबीन किसानों का यह भी कहना है कि कृषि की लागत में पिछले कुछ वर्षों में भारी इजाफा हुआ है। उर्वरक, बीज, मजदूरी, और कीटनाशकों की कीमतें बढ़ गई हैं, लेकिन फसल का मूल्य उस हिसाब से नहीं बढ़ा है। बीकेएस का तर्क है कि 6000 रुपये प्रति क्विंटल की मांग उनके अस्तित्व की लड़ाई है। अगर इस मांग को अनसुना किया गया, तो किसानों को और बड़े संकट का सामना करना पड़ सकता है।

 

सरकार की प्रतिक्रिया और एमएसपी की पृष्ठभूमि

केंद्र सरकार ने साल 2023 के लिए सोयाबीन की एमएसपी 4892 रुपये प्रति क्विंटल तय की है, जो पिछले वर्ष से थोड़ी अधिक है। परंतु, किसान संगठन इस एमएसपी को अपर्याप्त मानते हैं। उनका कहना है कि सोयाबीन की खेती के लिए पानी, खाद, कीटनाशक, और अन्य आवश्यक संसाधनों की लागत में भारी वृद्धि हुई है, जबकि एमएसपी में वृद्धि बहुत ही मामूली रही है।

 

मध्य प्रदेश सरकार अब तक अपनी तय की गई एमएसपी पर अड़ी हुई है और किसानों की मांगों पर गंभीरता से विचार करती नहीं दिख रही है। सरकार ने अब तक 4892 रुपये की दर से ही फसल खरीदी का निर्णय लिया है, जिससे किसानों की निराशा और नाराजगी बढ़ती जा रही है।

 

भारतीय किसान संघ (बीकेएस) की भूमिका और आंदोलन की रणनीति

आरएसएस से जुड़े भारतीय किसान संघ (बीकेएस) ने इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया है। बीकेएस पहले भी किसानों के हितों को लेकर आंदोलनों में शामिल रहा है और इस बार उसने सोयाबीन किसानों की आवाज को बुलंद किया है। बीकेएस का कहना है कि सरकार को 6000 रुपये प्रति क्विंटल की मांग को तुरंत मानना चाहिए, ताकि किसान अपनी उपज से लाभ कमा सकें और उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो सके।

 

किसान संघ ने 16 सितंबर को प्रदेशभर के सभी जिला मुख्यालयों पर धरना-प्रदर्शन की योजना बनाई है। संघ का आह्वान है कि इस आंदोलन में ज्यादा से ज्यादा किसान शामिल हों और अपनी मांगों को लेकर एकजुट हों। बीकेएस के नेताओं ने गांव-गांव जाकर किसानों को इस आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया है।

 

एमएसपी की गणना और किसानों की लागत

एमएसपी की गणना सरकार द्वारा कई कारकों के आधार पर की जाती है, जिसमें किसानों की उत्पादन लागत, श्रम, और अन्य आवश्यक लागतें शामिल होती हैं। परंतु, किसान संघ का कहना है कि सरकार द्वारा तय की गई एमएसपी वास्तविक लागत से मेल नहीं खाती। किसानों को मिलने वाली कीमतों और उनकी लागत के बीच एक बड़ा अंतर है, जिससे वे अपनी फसल बेचने के बाद भी घाटे में रहते हैं।

 

एमएसपी में सरकार का एक उद्देश्य यह भी होता है कि बाजार में फसलों की कीमतें किसानों के पक्ष में स्थिर बनी रहें, लेकिन कई बार यह समर्थन मूल्य भी किसान की जरूरतें पूरी नहीं कर पाता है।

 

आंदोलन का भविष्य और संभावित परिणाम

16 सितंबर को होने वाले बड़े प्रदर्शन के बाद, यह देखना होगा कि सरकार इस पर क्या प्रतिक्रिया देती है। यदि सरकार किसानों की मांगों को अनसुना करती है, तो यह आंदोलन और भी बड़ा रूप ले सकता है। किसान संघ ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर उनकी मांगों पर विचार नहीं किया गया, तो आंदोलन को और तीव्र किया जाएगा।

 


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