मौसम और व्यवस्था तोड़ रही किसानों की कमर, एमएसपी अभी दूर की कौड़ी


— प्रति बीघा उप्तादन 8-9 किंटल।
— मंडी में फिलहाल मिल रहे दाम 1500 से 2000 प्रति क्विंटल।
— एक बीघा में खर्च करीब 14 हज़ार रुपये।


आशीष यादव आशीष यादव
उनकी बात Published On :

धार। बीता साल सभी के लिये लॉक डाउन की भेंट चढ़ गया जिसके बाद इस साल किसान को कुछ अच्छे दिन की उम्मीद थी लेकिन यह भी फिलहाल मुश्किल नज़र आ रहा है। इस बार उत्पादन अच्छा नहीं है। किसान बताते हैं कि इस बार गेंहू व अन्य फसलों का उत्पादन ठीक नहीं हुआ।

किसानों की यह समस्या जलवायु परिवर्तन और न्यूनतम सर्मथन मूल्य जैसे बेहद अहम मुद्दों से जुड़ी है। किसानों के मुताबिक अब एक नई समस्या फसलों के हिसाब से मौसम न मिलने की खड़ी हो रही है।  इससे सभी फसलों में उत्पादन कम ही आ रहा है।

जिलेभर में इस बार गेहूं की पैदावार में किसानों को नुकसान उठाना पड़ा है कम पैदावार के बावजूद किसानों को उचित दाम नहीं मिल रहे हैं। जनवरी के आखिरी दिनों में और फरवरी में मौसम में अनियमितता देखी गई। इससे गेंहू की फसल को नुकसान हुआ है।

हालांकि बेमौसम बारिश से गेहूं की फसल को फायदा तो हुआ लेकिन इससे सर्दी में भी अनियमितता आई और इसके गेहूं के दानों में हल्का कालापन आ गया। इसके चलते गेहूं के उचित दाम नहीं मिल रहे हैं।

प्रतिवर्ष की तुलना में इस वर्ष क्षेत्र में गेहूं का उत्पादन कम रहा है। इस बार सिंचाई की सुविधा होने से गेहूं का रकबा ज्यादा था। फसल की पूरी देखभाल भी की लेकिन फिर भी गेहूं का उत्पादन 8 से 9 किंटल प्रति बीघा आ रहा है।

किसानों को समर्थन मूल्य पर खरीद का इंतजार: किसानों को इस समय नकदी की जरुरत होती है लेकिन समर्थन मूल्य पर गेहूं बेचने पर पैसे बाद में मिलते हैं ऐसे में किसान मंडी में सीधे व्यापारी को गेहूं बेचने के लिये मजबूर हैं।

फिलहाल इसी वजह से किसान मंडियों में अपनी उपज बेच रहे हैं। जहां व्यापारी गेहूं उन्हें 1500 से दो हजार रुपये के बीच तक खरीद रहे हैं। हालांकि दो हजार रुपये का दाम बेहद कम किसानों को मिल रहा है। हालांकि ज्यादातर किसानों को जो दाम मिले हैं उससे केवल उत्पादन की जमीनी लागत ही निकलती है। उन्हें अपनी मेहनत का कोई मोल नहीं मिलता।

गेहूं का समर्थन मूल्य 1975 रुपये प्रति क्विंटल है। किसान बताते हैं कि मंडी में शुरुआत में 2000 रुपये प्रति क्विंटल के दाम से गेहूं की बिके थे। वहीं फरवरी के बाद से सप्ताह में किसान अपनी फसल मंडी में बड़ी मात्रा में लेकर आ रहे हैं इस कारण मंडी में किसानों को दाम कम ही मिल रहे हैं।

एक औसत के हिसाब से प्रति क्विंटल पर किसानों को करीब दो-तीन सौ रुपये तक काम दाम मिल रह हैं। ऐसे में अब किसान सर्मथन मूल्य पर खरीदी का इंतजार कर रहे हैं। यह खरीदी  22 मार्च से शुरु होगी।

किसानों के मुताबिक जब सरकार सर्मथन मूल्य पर खरीदी शुरु करेगी तब तक ज्यादातर किसान पैसे की जरूरत के कारण अपना गेहूं व्यापारियों को सस्ते में बेच चुके होंगे।

जिले भर में इस बार 2.92 लाख हेक्टयर में गेहूं की बुवाई हुई है। कृषि विभाग के अधिकारियों के मुताबिक एक हेक्टयर में करीब 40 क्विंटल गेहूं उत्पादन होता है। इस हिसाब से जिले में इस बार करीब 12 लाख मैट्रिक टन से अधिक गेहूं उत्पादन होने की उम्मीद है।

मंडी में रोजाना करीब 10 हजार बोरी गेहूं की आवक हो रही है। धामनोद के एक किसान बताते हैं कि 22 मार्च से गेहूं खरीदी चालू हो जाएगी तो सोसाइटी के माध्यम से ही गेहूं हम सोसाइटी को देंगे क्योंकि यहां अगर मंडी गेहूं देते हैं तो हमें 200 से 300 का घाटा हो रहा है।

सरकार लगातार वादा कर रही है कि किसानों को उनकी फसल पर न्यूनतम सर्मथन मूल्य मिलेगा लेकिन क्षेत्र के किसान यशवंत तंवर कहते हैं कि सरकार भले ही कुछ भी कहे लेकिन अभी भी किसान को एमएसपी मिलना दूर की कौड़ी है। यशवंत की तरह ही दूसरे किसानों की भी राय है। उन्हें लगता है कि उपज की कीमत का न्यूनतम सर्मथन मूल्य तय तो होता है लेकिन इसे सख्ती से लागू करवाना चाहिये।

धार के किसान बताते हैं कि इससे हमें पहले ही गेहूं उत्पादन कम हुआ है और ऊपर से कम भाव मिलने से हमें नुकसान हो रहा है वहीं सरकार दूसरी ओर एमएसपी की बात करती है लेकिन मंडी में एमएसपी के माध्यम से खरीदी नहीं होती है और फसल सर्मथन मूल्य के नीचे बेचनी होती है।

क्षेत्र के ज्यादातर इलाकों में गेहूं के यही दाम किसानों को मिल रहे हैं। धार के किसान इंदौर जिले में भी गेहूं बेचने जा रहे हैं लेकिन वहां भी स्थिति कोई ख़ास अलग नहीं है। महू की मंडियों मे इसकी तस्दीक होती है।

हालांकि इस दौरान किसानों को इस तथ्य की भी जानाकारी होनी चाहिए कि 2014 में सत्ता संभालने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी ने एफसीआई के पुनर्गठन और कृषि सुधार पर सुझाव देने के लिए हिमाचल प्रदेश के पूर्व सीएम और भाजपा नेता शांता कुमार की अध्यक्षता में समिति का गठन किया था।  इस समिति ने  यह साफ किया था कि देश में एमएसपी का लाभ  केवल 6 प्रश किसानों को ही मिल पाता है।

 

 



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