गत वर्ष दिसंबर के महीने में इंदौर, उज्जैन, मंदसौर और अलीराजपुर जिलों में हुई साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं के कारणों की जांच करने के लिए एक नौ सदस्यीय स्वतंत्र तथ्यान्वेषी दल ने इन इलाकों का दौरा किया। हालांकि हिंसा की घटनाएं ज्यादा फैली नहीं लेकिन दल के सदस्यों ने ये महसूस किया कि इन घटनाओं ने हिन्दू-मुस्लिम और हिन्दू-ईसाई संप्रदायों के बीच वैमनस्यता को गाढ़ा किया है। अगर सांप्रदायिक सदभाव का माहौल कायम नहीं होगा तो मध्य प्रदेश में लोगों की जीवन सुरक्षा और विकास व समृद्धि की संभावनाओं पर खतरे के बादल गहराते जाएंगे।
28, 29 और 30 जनवरी 2021 को सभी प्रभावित इलाकों का दौरा करके और अनेक लोगों से बात करके इस स्वतंत्र जांच दल ने ये पाया कि अलग-अलग दिखने वाली इन घटनाओं में कुछ समानताएं भी हैं और इनका स्वरूप एक विशेष प्रकार से एक-दूसरे से मिलता है। चांदना खेड़ी (गौतमपुरा, इंदौर), बेगम बाग (उज्जैन) और डोराना (मंदसौर) में बहुसंख्यक समुदाय की हथियारबंद भीड़ ने जानबूझकर मुस्लिम बाहुल्य इलाकों को चुनकर वहां से रैली-जुलूस निकाले और अपमानजनक नारे आदि लगाए। नतीजे के तौर पर चांदना खेड़ी और बेगम बाग में इस तरह के उकसावे से उत्तेजित कुछ लोगों ने पथराव किया।
हिंदुओं के प्रसिद्ध तीर्थ महाकालेश्वर उज्जैन के नजदीक मौजूद बेगम बाग मुस्लिम बहुल इलाका है और वहां कभी सांप्रदायिक विद्वेष की घटनाएं नहीं हुईं। 25 दिसम्बर 2020 को सौ-डेढ़ सौ मोटरसाइकिलों पर भगवा झंडे लेकर और जय श्रीराम के साथ-साथ मुस्लिमों को उकसाने वाले गंदे नारे लगाते हुए जुलूस निकाला। जब एक बार स्थानीय लोग शांत रहे तो वे दूसरी बार फिर उसी रास्ते पर मोटरसाइकिलों से गुजरे। जब वे तीसरी बार वैसे ही अश्लील नारे लगाते हुए उसी रास्ते से गुजरे तो बेगम बाग के स्थानीय लोगों ने आपत्ति ली। दोनों पक्षों में मारपीट भी हुई और कुछ मुस्लिमों में घरों से जुलूस में शामिल लोगों पर पथराव भी हुआ। अगले दिन पुलिस और प्रशासन के आला अफसरों की मौजूदगी में एक मुस्लिम का घर जेसीबी लगाकर ढहा दिया गया। जबकि प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक उस घर से कोई पथराव भी नहीं हुआ था।
मुस्लिम बहुल गांव चांदना खेड़ी में राम मंदिर निर्माण के लिए लाठियों-झंडों के साथ सैकड़ों मोटरसाइकिल पर हथियारबंद उन्मादी युवाओं ने भगवे झंडे लेकर जुलूस निकाला। मुस्लिमों के प्रति अपमानजनक नारे लगाए। जब बदले में कुछ मुस्लिम घरों के भीतर से उन पर पथराव किया गया तो उन्होंने ईदगाह की दरगाह तोड़ दी, वहां के हरे झंडे निकालकर भगवे झंडे लगाए और 4-5 घंटे में सोशल मीडिया के माध्यम से आसपास के इलाकों से हजारों की भीड़ को इकट्ठा करके हथियारों के साथ गांव के मुस्लिम घरों पर दावा बोला, आगजनी की, गोलियां चलाईं, तलवारों से लोगों को घायल किया, ट्रैक्टर, मोटरसाइकिल, कृषि उपकरणों को तोड़-फोड़ डाला, यहां तक कि मुसलमानों की भैंसों एवं अन्य जानवरों को लोहे की रॉड से घायल किया।
डोराना में पुलिस की मौजूदगी में मस्जिद और कब्रिस्तान के झंडे काट लिए जाने पर और हजारों की भगवा ध्वजधारी भीड़ द्वारा मुस्लिम समुदाय के लोगों के घर तोड़े-फोड़े जाने और सम्पत्ति लूट लेने पर भी मुस्लिम समुदाय के लोगों ने कोई जवाबी कार्यवाही नहीं की। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि दोपहर की नमाज के वख्त पर करीब पांच से सात हजार की भीड़ ने मस्जिद को घेर लिया और जोर-जोर से डीजे पर हनुमान चालीसा का पाठ किया गया। उन्होंने कहा कि चौदह डीजे तो खुद मैंने गिने थे। उसके बाद पुलिस के आला अधिकारियों की मौजूदगी में चुन-चुनकर 50-60 मुस्लिमों के घर तोड़े और लूटे गए। इस घटना के 3-4 दिन पहले से ही सोशल मीडिया पर हिंदुओं से हजारों की तादाद में डोराना चलने का आह्वान किया जा रहा था जिसकी जानकारी स्थानीय मुस्लिमों ने पुलिस को दी थी। पुलिस ने जवाब में मुस्लिमों को ही यह कहा था कि सलामती चाहते हो तो जुलूस के वक़्त गांव छोड़कर चले जाओ। बाद में भी लोगों की एफआईआर दर्ज नहीं की गई।
इन तीनों ही घटनाओं में अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर के लिए चंदा इकट्ठा करने की अपील का बहाना लेकर मुस्लिम बाहुल्य इलाकों से रैलियां निकाली गईं। मुस्लिमों को इस हद तक उकसाया गया कि उनकी ओर से कुछ न कुछ प्रतिक्रिया हो जिसका बहाना लेकर पुलिस और प्रशासन की मदद से मुस्लिमों पर हमला किया जा सके। एक ओर इससे मुस्लिम समाज में दहशत पैदा करने की कोशिश की गई दूसरी ओर मीडिया के माध्यम से मुस्लिमों को ही पत्थरबाज साबित किया गया, उन्हें ही जेलों में ठूंसा गया, उनके ही घर तोड़े गए। पीड़ितों ने यह भी बताया कि ऐसी साम्प्रदायिक घटनाएं चुनाव आने के साथ ज्यादा बढ़ जाती हैं। ज्ञातव्य है कि जल्द ही मध्य प्रदेश में पंचायत और स्थानीय निकायों के चुनाव आने वाले हैं।
जांच दल ने 30 जनवरी 2021 को अलीराजपुर में अनेक ऐसे ईसाई आदिवासियों की तकलीफों को सुना जिन पर धर्मांतरण का झूठा आरोप लगाकर कुछ हिंदुत्ववादी संगठन के लोग उनपर हमला कर रहे हैं और उन्हें अपनी रविवारीय प्रार्थना नहीं करने दे रहे हैं। वहां भी पुलिस की भूमिका हिंदुत्ववादी संगठनों के सामने समर्पण की ही बताई गई। यह भी पाया गया कि आदिवासियों को धर्म की आड़ में एक-दूसरे के खिलाफ लड़ाया जा रहा है।
जांच दल के सदस्यों का यह मानना है कि राज्य सरकार और मुख्यमंत्री, गृहमंत्री एवं अन्य ऐसे जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों के बयान साफ तौर पर अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा करने वाले समूहों को हौसला देते हैं। सरकार के दबाव के कारण ही पुलिस एवं प्रशासनिक व्यवस्था आने संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करने में पूरी तरह नाकाम हो रही है।
सभी मामलों में यह भी देखने में आया कि पुलिस ने हुड़दंगियों पर कोई कार्रवाई नहीं की और पीड़ित लोगों में से अधिकांश की रिपोर्ट भी नहीं लिखी गयी। दल के सदस्यों ने कुछ पुलिस अधिकारियों से भी संपर्क किया और महसूस किया कि राज्य प्रायोजित व संरक्षित इस बहुसंख्यक सांप्रदायिक हिंसा के सामने पुलिस की मशीनरी ने घुटने टेक दिए हैं।
जांच दल सरकार से यह मांग करता है कि अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए चंदा इकट्ठा करने हेतु निकाली जा रही इन हथियारबंद लोगों की रैलियों को बन्द किया जाए और इन घटनाओं में गिरफ्तार किए गए बेगुनाहों को छोड़कर असल दोषियों को गिरफ्तार किया जाए। जिन लोगों के मकानात या दूसरी संपत्तियां तोड़ी या लूटी गई हैं या जो इन घटनाओं में घायल हुए हैं उन्हें उचित मुआवजा दिया जाये तथा इन इलाकों में शांति सौहार्द्र, कानून-व्यवस्था बहाल करने के लिए आपसी मेल-मिलाप के सामूहिक सदभाव के कार्यक्रम किये जाएं।
जांच दल में विभूति नारायण राय (पूर्व डीजीपी उत्तरप्रदेश, दिल्ली), इरफान इंजीनियर (सेंटर फॉर स्टडीज ऑफ सोसाइटी एंड सेकुलरिज्म, मुंबई), चित्तरूपा पालित (नर्मदा बचाओ आंदोलन, खंडवा), राकेश दीक्षित (वरिष्ठ पत्रकार, भोपाल), सारिका श्रीवास्तव (महासचिव, भारतीय महिला फेडरेशन मध्य प्रदेश, इंदौर), शन्नो शगुफ्ता खान (अधिवक्ता, ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क, इंदौर), हरनाम सिंह (वरिष्ठ पत्रकार मंदसौर), निदा कैसर, (शोधार्थी, एसओएएस यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन), विनीत तिवारी (राष्ट्रीय सचिव, प्रगतिशील लेखक संघ, इन्दौर) शामिल थे।