मंडी समितियों की व्यवस्था से परेशान किसान, मंडियों और व्यापारियों के पास ही बेच रहे अपना गेहूं


नरसिंहपुर जिले में 11 लाख क्विंटल गेहूं खरीदी का है लक्ष्य, किसान रजिस्ट्रेशन करवाकर भी नहीं जा रहे समितियों तक


ब्रजेश शर्मा
उनकी बात Updated On :
प्रतीकात्मक चित्र


नरसिंहपुर। मप्र में किसानों की आमदनी दोगुनी हो चुकी है। ऐसा दावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का है लेकिन यह दावा किसानों की सच्चाई के आगे नहीं ठहरता। सर्मथन मूल्य पर अपना गेहूं बेचने की बजाए किसान उसे मंडियों में बेच रहे हैं जहां उन्हें भले ही कम दाम मिल रहे हैं लेकिन उन्हें समितियों की व्यवस्था से मंडियों की व्यवस्था ज्यादा भा रही है। किसानों के मुताबिक सहकारी समितियों की व्यवस्था उनकी इस बेरुख़ी के लिए जिम्मेदार है। 

नरसिंहपुर जिले में इस बार गेहूं की बंपर आवक है। किसान अब खरीदी कर रही समितियों में अपना अनाज बेचने की बजाय मंडी में ही बेचने में अपना भला समझ रहे हैं।
यहां उन्हें दाम कम जरूर मिल रहे हैं लेकिन मंडियां फिर भी बेहतर नजर आ रहीं हैं। दरअसल किसान समितियों में हो दलाली का आरोप लगा रहे हैं और उनका कहना है कि समितियों में पैसे मिलने में देरी होती है।

जिले में नरसिंहपुर, गाडरवारा, करेली, गोटेगांव, आदि मंडियों में गेहूं की अच्छी आवक हो रही है। इन मंडियों में हर दिन करीब 4-5 हजार क्विंटल गेहूं आ रहा है वहीं सहकारी समितियों के 69 केंद्रों में किसान अपना स्लॉट तो बुक कर रहे हैं लेकिन गेहूं बेचने नहीं जा रहे हैं।

जानकारी के मुताबिक इस बार गेहूं बेचने के लिए पंजीकृत करीब 36 हज़ार से ज्यादा किसानों में से गेहूं बेचने के लिए 29 हज़ार 999 किसानों ने ही समितियों में अपना पंजीयन कराया है। इनमें से 24 अप्रैल तक 13 हजार 208 किसानों ने अपने स्लॉट बुक कराए पर स्थिति यह है कि केवल 6397 किसानों ने ही अपना करीब 49 हजार क्विंटल गेहूं अब तक बेचा है।

इस बार मार्केटिंग सोसायटी जिले में खरीदी एजेंसी हैय़ उसके सामने लगभग 11लाख क्विंटल गेहूं खरीदने का लक्ष्य है लेकिन मौजूदा परिस्थिति में यह लक्ष्य फिलहाल दूर दिखाई दे रहा है। किसानों से बात करने पर पता चलता है कि वे अपना गेहूं समितियों में बेचने की बजाए मंडियों में बेचना पसंद कर रहे हैं। हालांकि जिले में पिछले साल भी यही लक्ष्य रखा गया था लेकिन नतीजा केवल साठ प्रतिशत ही रहा।

मंगलवार को नरसिंहपुर मंडी में करीब 35 – 40 क्विंटल गेहूं बेचने आए किसान लोचन सिंह ने बताया कि गेहूं के दाम उम्मीद और मेहनत से काफी कम मिल रहे हैं। उन्होंने बताया कि साल भर खेती-बाड़ी करके पसीना बहाते हैं और हर एकड़ में 10 से 15 हजार रु खर्च करते हैं लेकिन जब गेहूं बाजार में आजा है तो दाम उन्नीस सौ से दो हजार प्रति क्विंटल से ज्यादा नहीं मिलता लोचन सिंह कहते हैं कि गेहूं के दाम करीब  2500 से 3000 रु प्रति क्विंटल तक होना चाहिए तब ही किसान को कुछ फायदा होगा।

लोचन सिंह आगे कहते हैं कि महंगाई जिस दर से बढ़ी है उस दर से गेहूं में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है और खेती को लाभ का धंधा बनाने वाले नेता सिर्फ बातें कर रहे हैं जबकि अब खेती-बाड़ी घाटे का सौदा है।

ग्राम बरेली के किसान नारायण पटेल का कहना है कि उनका गेहूं 2062 रु क्विंटल में बिका है। जबकि समितियों में 100 रु प्रति कुंटल पैसा मांगा जाता है और पैसे मिलने का समय भी निश्चित नहीं है इसलिए वह खुले बाजार में गेहूं देना पसंद कर रहे हैं।

एक और किसान इमरत कुछ गेहूं और कुछ चना लेकर मंडी पहुंचे और उनका गेहूं 1925 रुपए प्रति कुंटल मंडी में बिका यानी सहकारी समिति से 100 रु प्रति कुंटल कम। फिर भी वह मंडी आने में अपनी भलाई समझते हैं। कहते हैं कि वहां एक तो हर क्विंटल में पैसा मांगा जाता है और फिर अनाज बेचने के बाद पैसा कब मिलेगा यह निश्चित नहीं है जबकि जरूरत पैसे की अभी है।

 


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