सीसीआई की बेरुख़ी के चलते कपास किसानों को नहीं मिल पाता समर्थन मूल्य!


सीसीआई काफी देर में खरीदी शुरु करता है। ऐसे में किसानों को मजबूर होकर अपना कपास निजी कंपनियों और व्यापारियों को बेचना पड़ता है। इसके बाद जब सरकारी खरीदी शुरु होती है तो किसानों को उनकी फसल का पूरा दाम नहीं मिल पाता है। किसान बताते हैं कि सीसीआई कई नियमों के तहत उन्हें परेशान करता है। इन सभी खूबियों वाले कपास को ही सरकारी समर्थन मूल्य के करीब दाम मिलेगा।  


डॉ. संतोष पाटीदार
उनकी बात Updated On :

इंदौर। मध्यप्रदेश के निमाड़ – मालवा में खेत खलिहान से लेकर मंडी बाजार तक में दीपावली सूनी ही बीत गई। इसकी वजह रही पहले कोरोना और फिर बारिश से प्रभावित हुई कपास व सोयाबीन की उपज । बावजूद इसके किसानों ने मेहनत की और पैदावार में बहुत ज्यादा गिरावट नहीं आई। महामारी व मौसम की मार से जूझते किसानों को केन्द्र सरकार की सालाना घोषणा से  पूरा समर्थन मूल्य मिलने की उम्मीद थी  लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

सबसे ज्यादा  नुकसान कपास के भाव से हो रहा है। सरकारी खरीदी में ही समर्थन मूल्य नहीं मिलने से किसानों में नाराज़गी है। सोयाबीन की फसल तो बुरी तरह बर्बाद हुई है। इसके बाद सरकार की दोहरी नीतियों ने तकलीफ़ और बढ़ा दी है।

केंद्र सरकार की एजेंसी भारतीय कपास निगम  (सीसीआई ,कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया) द्वारा कपास का सरकारी भाव यानि न्यूनतम समर्थन मूल्य 5800 रुपए प्रति क्विंटल नहीं दिया जा रहा है जबकि देशभर में यह एकमात्र  एजेंसी है जो कपास की सरकारी खरीदी के लिए अधिकृत है। किसान कहते हैं कि समर्थन मूल्य तो दूर की बात है, सीसीआई वाजिब दाम देने को भी राजी नहीं है। इस स्थिति से निजी कम्पनियां, कुछ व्यापारी और बिचौलिये फायदा उठा रहे हैं।

सरकारी खरीद की मनमानी से त्रस्त किसानों ने औने-पौने दाम पर कपास व्यापारियों व जिंनिंग फैक्ट्रियों को बेच दिया। छोटे किसानों को तो बारिश से प्रभावित शुरुआती कपास दो हजार रु प्रति क्विंटल में बेच देना पड़ा क्योंकि उन्हें अपने  कर्जे चुकाने और खर्चे चलाने के लिए  तत्काल पैसे चाहिए थे।

सीसीआई काफी देर में खरीदी शुरु करता है। ऐसे में किसानों को मजबूर होकर अपना कपास निजी कंपनियों और व्यापारियों को बेचना पड़ता है। इसके बाद जब सरकारी खरीदी शुरु होती है तो किसानों को उनकी फसल का पूरा दाम नहीं मिल पाता है। किसान बताते हैं कि सीसीआई कई नियमों के तहत उन्हें परेशान करता है। इन सभी खूबियों वाले कपास को ही सरकारी समर्थन मूल्य के करीब दाम मिलेगा।

सीसीआई के हैं ये नियम…

  • सीसीआई के नियम हैं कि  कपास में 12 प्रतिशत से थोड़ी भी अधिक नमी नहीं होनी चाहिए।
  • रेशे की निर्धारित लम्बाई उच्च मानक अनुसार होनी चाहिए।
  • कपास थोड़ा भी पीले रंग या मौसम से प्रभावित नहीं होना चाहिये।

इसके उलट एफसीआई (भारतीय खाद्य निगम ) हर गुणवत्ता का गेहूं पूर्ण समर्थन मूल्य पर ख़रीदता है। गन्ने का सरकारी भाव भी निजी शक्कर कारखाने देने को बाध्य है लेकिन सीसीआई का खेल किसानों के हित में कभी नहीं रहा है। किसानों का आरोप है कि सीसीआई में होने वाला भ्रष्टाचार इसका कारण है।

 

पिछले दिनों सीसीआई द्वारा खरीदी शुरू करते ही धार जिला की मुख्य कपास मंडी धामनोद में कपास बेचने आए किसानों ने भाव नहीं मिलने पर हंगामा कर दिया। इन किसानों ने मंडी गेट पर सीसीआई का विरोध करते ताले जड़ दिए। यहां किसानों की अगुआई कर रहे सुन्दरेल गांव  के युवा किसान राजेंद्र पाटीदार बताते हैं कि

सीसीआई 5800 रु प्रति क्विंटल की जगह 4000 रु से कम में  कपास खरीदी करना चाहती है जो लागत से भी कम है।

राजेंद्र के मुताबिक इसके पीछे कपास  में अधिक नमी व  गुणवत्ता कमजोर होने का हवाला दिया जा रहा है। सीसीआई के नुमाइंदे कपास की नमी किस तरह, कैसे व किस यन्त्र से  नापते हैं ,वह यन्त्र नमी का कितना सही आंकलन करता है ,  उसके बारे में भी मंडी का अमला व  किसान कुछ नहीं जानते क्योंकि क्रॉस चैकिंग का कोई साधन ही नहीं है।

किसान बताते हैं कि अक्सर बेहतर कपास का  भी  क़्वालिटी के नाम पर बहुत कम मूल्य बताया जाता है या सरकारी खरीद नहीं कर कपास रिजेक्ट कर दिया जाता है। वहीं मौके पर मौजूद कुछ व्यापारी सस्ते में वह कपास खरीद लेते हैं।

महेश्वर के समीप करौंदिया के किसान व भाजपा नेता किशोर पाटीदार कहते है

सीसीआई जानबूझकर व्यापारी वर्ग को मनमाने दाम पर किसानों से कपास खरीदने की पूरी छूट देता है क्योंकि जब अधिकतर किसान कपास बेच चुके होते हैं तब सीसीआई किसानों के लिए कठोर नियमों की लक्ष्मण रेखा खींचते हुए मंडियों में आता है। यहां वह अपने साथ निजी कंपनियों एवं व्यापारियों को भी साथ लेकर बोली लगाता है जो सरासर नियम विरुद्ध है।

सीसीआई के इंदौर क्षेत्र में महाप्रबंधक मनोज बजाज ने एक समाचार वेबसाईट को बताया कि

कपास की खरीदी भारत सरकार के मापदंडों के अनुसार की जाती है और सीसीआई द्वारा 8 -12 % नमी के साथ एफएक्यू वाला कपास खरीदा जाता है। बजाज के मुताबिक उन्हें किसानों के विरोध के बारे में फिलहाल कोई जानकारी नहीं है।

इस बारे में जानकार किसान बताते हैं

सरकार पहले किसानों को लुभाने के लिए  कपास का  समर्थन मूल्य घोषित करती है और इससे अच्छे दाम मिलने की उम्मीद का भ्रम पैदा हो जाता है। इसके बाद भ्रम तोड़ने का काम सीसीआई करती है।  किशोर भाई कहते है कपास का समर्थन मूल्य व्यापारियों पर लागू नहीं होने से इन्हें  बहुत कम भाव पर कपास बेचने की मजबूरी होती है। इस पर सरकारी एजेंसी व निजी खरीद वालो की मिलीभगत किसानों को कहीं का नहीं छोड़ती।

कपास की खेती में  भंडारण की समस्या भी अहम है। भंडारण पर 10 से 20  क्विंटल कपास का सुखत से वजन  कम हो जाता है यानी करीब 1 लाख रु का नुकसान। किसानों ने अपनी यह समस्या खरगोन के लोकसभा सांसद गजेन्द्र सिंह पटेल व बड़वानी के राज्यसभा सांसद सुमेर सिंह को समस्या बताई। किसानों ने उन्हें मंडी में आकर व्यवस्था देखने को भी कहा लेकिन वे नहीं पहुंचे।


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