मध्य प्रदेश में सरपंचों के अधिकार छीने जाने के विरोध में राष्ट्रीय सरपंच संघ के आंदोलन को पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह का समर्थन मिला है। दिग्विजय सिंह 2 अक्टूबर को सागर जिले की बीना तहसील की ग्राम पंचायत सतोरिया में पंचायत प्रतिनिधियों और स्थानीय लोगों के साथ इस आंदोलन में शामिल होंगे। इसके अलावा, उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से भी आग्रह किया है कि वे अपनी-अपनी ग्राम पंचायतों में गांधी जयंती के दिन सरपंच संघ के प्रदर्शन में शामिल होकर पंचायती राज को मजबूत बनाने में योगदान दें।
दिग्विजय सिंह ने एक वीडियो संदेश में कहा, “महात्मा गांधी जी का सपना था कि पंचायती राज के माध्यम से गांव के हर व्यक्ति को अपने संसाधन और भविष्य की योजना बनाने का अधिकार मिलना चाहिए। उसी सोच को आगे बढ़ाते हुए राजीव गांधी जी ने संविधान संशोधन का प्रस्ताव लाया था। लेकिन भाजपा ने सत्ता में आने के बाद सरपंचों के अधिकार छीन लिए। आज स्थिति यह है कि सरपंचों के पास कोई अधिकार नहीं बचे हैं।”
सिंह का यह बयान उस समय आया है जब प्रदेश में राष्ट्रीय सरपंच संघ द्वारा 2 अक्टूबर को गांधी जयंती पर प्रदेशव्यापी प्रदर्शन की तैयारी की जा रही है। इस आंदोलन के माध्यम से सरपंच संघ ने अपनी 20 सूत्रीय मांगों को सरकार के सामने रखा है।
राष्ट्रीय सरपंच संघ की प्रमुख मांगें
राष्ट्रीय सरपंच संघ ने सरकार के सामने अपनी मांगों में मनरेगा को मूल रूप में लागू करने, पंचायतों को 25 लाख रुपये की आर्थिक स्वीकृति देने, ग्राम पंचायत विकास निधि गठित करने, सरपंचों का मानदेय 15,000 रुपये प्रतिमाह करने, ग्राम स्वराज अधिनियम में संशोधन, और पंचायतों के कार्यों की स्वतंत्रता सहित कई मुद्दों को शामिल किया है।
आधिकारिक सूचनाओं के अनुसार, पंचायती राज की व्यवस्था को मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार ने ग्राम पंचायतों को विभिन्न योजनाओं के तहत स्वायत्तता और अधिकार दिए थे। हालांकि, मध्य प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों में सरपंचों के अधिकार सीमित कर दिए गए हैं। कई नीतिगत बदलावों और योजनाओं की शर्तों के चलते सरपंचों को निर्णय लेने की स्वतंत्रता नहीं मिल रही है। राष्ट्रीय सरपंच संघ ने इसी कारण राज्यव्यापी आंदोलन की घोषणा की है।
दिग्विजय सिंह का समर्थन और आगामी प्रदर्शन
दिग्विजय सिंह ने अपने वीडियो संदेश में कहा कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं को सरपंच संघ के इस आंदोलन का समर्थन करना चाहिए और पंचायतों के सचिवों को ज्ञापन सौंपकर मुख्यमंत्री से मांग करनी चाहिए कि सरपंचों के अधिकार पुनः बहाल किए जाएं। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने सरपंचों की मांगें नहीं मानीं, तो 18 अक्टूबर को हर गांव में चक्काजाम किया जाएगा।
सरकार की प्रतिक्रिया
फिलहाल, राज्य सरकार की ओर से इस मुद्दे पर कोई ठोस बयान सामने नहीं आया है। लेकिन दिग्विजय सिंह और राष्ट्रीय सरपंच संघ के दबाव के चलते इस मामले को लेकर आने वाले दिनों में राजनीतिक माहौल गरमा सकता है।
राष्ट्रीय सरपंच संघ की 20 सूत्रीय मांगों का सारांश
1. मनरेगा को मूलरूप में लागू करना: केंद्र सरकार से सहयोग मांगें, और यदि वह नहीं मिलता है, तो राज्य अपनी रोजगार गारंटी योजना बनाकर मजदूरी और सामग्री भुगतान की पारदर्शी व्यवस्था करे।
2. स्व-सहायता समूहों को जोड़ना: ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए मनरेगा से स्व-सहायता समूहों को जोड़ें और हितग्राही मूलक योजनाओं जैसे पशु शेड, मुर्गी शेड, बकरी शेड आदि के निर्माण को बढ़ावा दें।
3. ग्राम पंचायतों को 25 लाख तक की स्वीकृति: पंचायतों को 25 लाख रुपये तक की स्वीकृति जनपद पंचायत स्तर पर देने की मांग। इससे जिला स्तर पर आने वाली तकनीकी समस्याओं को कम किया जा सके।
4. खेत सड़क योजना: प्रत्येक ग्राम पंचायत में दो खेत सड़क योजना लागू की जाए, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर बन सकें।
5. ग्राम पंचायत विकास निधि: ग्राम पंचायतों के लिए एक विकास निधि बनाई जाए, जिसमें 1 लाख रुपये प्रतिवर्ष आवंटित हों, ताकि आपदा के समय तत्काल सहायता दी जा सके।
6. नई आर्थिक गतिविधियों से जोड़ना: पंचायतों को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने के लिए नई आर्थिक गतिविधियों का संचालन किया जाए।
7. पैसा एक्ट का लागू होना: ग्राम पंचायत और ग्राम सभाओं के बीच टकराव से बचने के लिए पैसा एक्ट को सही तरीके से लागू करने की मांग।
8. सरपंचों का बीमा और पेंशन: सरकारी कर्मचारियों की तरह सरपंचों और पंचों का 20 लाख रुपये का जीवन बीमा और न्यूनतम 2,000 रुपये प्रतिमाह की पेंशन की व्यवस्था हो।
9. चेकडेम और एनीकट: पंचायत में चेकडेम और एनीकट निर्माण के लिए 25% भुगतान तीन वर्ष बाद किया जाए, ताकि पर्यावरण संरक्षण के लिए नए वृक्ष लगाए जा सकें।
10. 15वें वित्त आयोग की डीपीआर: डीपीआर की प्रक्रिया को सरल बनाते हुए एक बार हस्ताक्षर के बाद उसे स्वीकृत माना जाए, जिससे बार-बार कमीशन देने की समस्या खत्म हो।
11. टाइड अनटाइड व्यवस्था समाप्त: केंद्र और राज्य सरकार से टाइड-अनटाइड फंड व्यवस्था को समाप्त करने का प्रस्ताव।
12. ग्राम स्वराज अधिनियम: इस अधिनियम की धारा 40 के तहत मनरेगा के कार्यों में सरपंच को नोटिस न दिया जाए। इसके अधिकार कलेक्टर और राज्यपाल के अनुमोदन से ही हों।
13. जनपद पंचायतों में बैठक: जनपद पंचायतों की बैठकों में सरपंचों को रोस्टर के अनुसार बुलाने की व्यवस्था।
14. रोजगार सहायक और सचिव: उनकी सीआर लिखने और वेतन-छुट्टी के अधिकार ग्राम पंचायत को दिए जाएं। रोजगार सहायक का स्थानांतरण नीति जल्द लागू हो।
15. पत्र दिनांक 01.07.2024 को वापस लेना: अधिकतम कार्यों की सीमा 20 को हटाया जाए।
16. झूठी शिकायतों पर कार्रवाई: सीएम हेल्पलाइन पर झूठी शिकायत करने वालों के खिलाफ एफआईआर की जाए।
17. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आवास योजना: हर पंचायत में आवास योजना का लाभ दिया जाए।
18. सरपंच का मानदेय: सरपंचों का मानदेय 15,000 रुपये प्रतिमाह किया जाए।
19. उपसरपंच का मानदेय: उपसरपंचों को 3,000 रुपये प्रतिमाह मानदेय दिया जाए।
20. मंत्री गौतम टेटवाल का इस्तीफा: सरपंचों के खिलाफ अपमानजनक बयान देने वाले मंत्री गौतम टेटवाल से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा लिया जाए।