निजीकरण का कठिन सफ़रः रेलवे की टिकिट खिड़कियां भी हो गईं प्राईवेट, अब MST पास भी नहीं बन रहे, रेल कर्मी भी चिंतित


जबलपुर मंडल के तहत आने वाले 46 रेलवे स्टेशनों पर 16 मार्च तक बैठ जाएंगे टिकिट देने वाले एजेंट


ब्रजेश शर्मा
उनकी बात Updated On :

नरसिंहपुर। केंद्र सरकार लगातार निजीकरण की ओर बढ़ रही है और इस प्रक्रिया का सबसे ज्यादा विरोध रेलवे के मामले में हो रहा है क्योंकि इससे भारत का सबसे बड़ा यातायात तंत्र प्रभावित होगा। जिससे करोड़ों लोग जुड़ते हैं और लाखों रोजगार भी पाते हैं। हालांकि सरकार ऐसा होने से इंकार करती रही है लेकिन यह दावे पूरी तरह सही दिखाई नहीं देते।

नरसिंहपुर में अब रेलवे स्टेशनों पर अब टिकट खिड़की का निजीकरण हो रहा है। यहां निजीकरण के नुकसान भी कुछ हद तक दिखाई दे रहे हैं। वहीं जिन बेरोजगारों को ठेके पर टिकट काउंटर दिए जा रहे हैं उन्हें भी इससे कोई ठोस रोजगार मिलने की उम्मीद नहीं हैं को लेकिन इसके बावजूद अधिकारी और कर्मचारी मजबूर हैं। ऐसे में कर्मचारी यूनियन आंदोलन के लिए लामबंद हो रही हैं।

57 वर्षीय जगदीश राजपूत पिछले 20 – 22 सालों से गोटेगांव से नरसिंहपुर अप डाउन कर रहे हैं। वे एक संस्था में वह कर्मचारी हैं और आनेजाने के लिए वे हर महीने एमएसटी बनवाते हैं। बीते 3 मार्च को नरसिंहपुर रेलवे स्टेशन के टिकट काउंटर पर एमएसटी बनवाने गए तो वहां कह दिया गया कि सूचना पढ़ लो, मोबाइल में यूटीएस डाउनलोड करो और एमएसटी बना लो क्योंकि अब काउंटर से एमएसटी नहीं बनेगी।

यह सुनकर राजपूत अचरज में के रह गए क्योंकि उन्होंने दशकों तक इसी टिकिट खिड़की से अपना एमएसटी पास बनवाया है और अब इसी ठीक टिकट खिड़की से उन्हें मना कर दिया गया।

इसके बाद राजपूत ने अपना मोबाइल अपनी जेब से बाहर निकाला और टिकट खिड़की पर बैठे कर्मचारी को दिया और पूछा कि बताइए कैसे बनाया जाता है एमएसटी कोड!

राजपूत बताते हैं कि कर्मचारी ने बिना देखे ही उन्हें मना कर दिया और कहा कि वह उनकी मदद नहीं कर सकता क्योंकि उसे कॉन्ट्रेक्ट के मुताबिक ऐसा करने के लिए नहीं कहा गया है। हालांकि जब उसकी नजर मोबाइल फोन पर पड़ी तो वह लगभग हंस दिया और कहा कि यह तो कीपैड वाला मोबाइल फोन है पहले जाकर एंड्रॉयड फोन लेकर आइए उस पर ऐप डाउनलोड कीजिए और फिर एमएसटी बन पाएगा।

जगदीश राजपूत बताते हैं कि जब उन्होंने कहा कि उनके पास फोन नहीं है तो टिकट खिड़की पर बैठे कर्मचारी ने उन्हें टका सा जवाब दे दिया और कहा कि फिर जाओ यह हमारी परेशानी नहीं ट्रेन में यात्रा भी बाद में टिकिट लेकर ही करना।

दरअसल जिले के सैकड़ों बुजुर्ग और एंड्रॉयड फोन इस्तेमाल न करने वाले पेंशनर्स जगदीश राजपूत की तरह ही परेशान है। इन पेंशनर्स के मुताबिक उनकी मंथली सीजन टिकट नहीं बन रही है।
इस बारे में बहुत से लोगों ने जब रेलवे की इंक्वायरी रूम में जाकर पता किया तो उन्हें बताया गया कि अब रेलवे के टिकट काउंटर प्राइवेट व्यक्तियों को दे दिए गए हैं।

इंक्वायरी में बताया गया कि अब टिकट काउंटर से सीधे टिकट मिल सकती है और मंथली सीजन टिकट नहीं बनाई जा सकती।

इसके बाद से रेलवे स्टेशनों के टिकट काउंटरों पर आए दिन छुटपुट विवाद हो रहे हैं। इन विवादों में ज्यादातर ग्रामीण इलाकों से आने वाली महिलाएं और बुजुर्ग शामिल हैं। लोग समझ नहीं पा रहे कि आखिर क्या वजह है कि रेलवे ने मंथली सीजन टिकट बनाना बंद कर दिया है और अगर यह काम निजी कंपनी को दिया गया है तो वह इस काम से कैसे मना कर सकती है।

करेली के रेलवे स्टेशन पर टिकट खिड़की पर लगा संदेश कहता है कि अब एमएसटी पास मैनुअल नहीं बल्कि मोबाइल से बनेंगे

करेली के टिकट काउंटर पर कई लोगों ने बताया कि उन्हें एंड्रॉयड फोन चलाने में खासी परेशानी होती है। ऐसे में वे लोग ऐप डाउनलोड नहीं कर पाते और पैसों का ऑनलाइन ट्रांजैक्शन करने में भी उन्हें परेशानी होती है।

जगदीश राजपूत और अन्य नागरिकों के अनुभव से पता चलता है कि रेलवे में निजीकरण लगातार हो रहा है और यह प्रक्रिया लोगों को खासी प्रभावित कर रही है।

जानकारी के मुताबिक पश्चिम मध्य रेलवे ने अपने तकरीबन 46 स्टेशनों पर टिकट बुकिंग एजेंट के लिए टेंडर आमंत्रित किए हैं। इन टेंडरों की आखिरी तारीख 16 मार्च है ऐसे में कहा जा सकता है कि इसके बाद ज्यादातर स्टेशनों पर इसी तरह से परेशानी होगी।

जबलपुर मंडल ने जिन 46 स्टेशनों पर स्टेशन टिकिट बुकिंग एजेंट के लिए टेंडर जारी किए हैं उनमें NSG 5 और 6 श्रेणी के स्टेशन शामिल हैं। इन सभी स्टेशनों पर एक एक टिकट बुकिंग खिड़की बनाई जाएगी। रेलवे के टेंडर के अनुसार इसके लिए निजी व्यक्ति को ही टेंडर भरने की अनुमति है। इस तरह टिकट खिड़कियों से रेलवे कर्मचारियों को हटाने की तैयारी है वही जो निजी लोग इन खिड़कियों पर बैठेंगे उन्हें तीन श्रेणियों में भुगतान किया जाएगा।

रेलवे द्वारा निजीकरण के लिए निकाला गया टेंडर

पहली श्रेणी में बीस हजार रु की मासिक टिकट बिक्री पर 25% कमीशन मिलेगा, वहीं 20 हज़ार रुपए से एक लाख रुपए कब की टिकट बिक्री पर 15% कमीशन और इससे अधिक की टिकट बिक्री पर 4% कमीशन दिया जाएगा।

इस तरह टिकट बुक खिड़की पर बैठने वाले इन ठेका कर्मियों को भी रोजगार अस्थाई ही मिलेगा और रेलवे इस तरह से स्थाई कर्मियों पर होने वाले अपने खर्च से मुक्ति पा सकेगी।

जाहिर है टिकट खिड़कियों के निजी करण से शुरू हो रहा यह मामला आगे भी जाएगा ऐसे में रेलवे कर्मचारियों कि यूनियन सक्रिय नजर आ रही हैं।

रेलवे कर्मचारियों की संगठन डब्ल्यू सीआरएमएस के संरक्षक देवेंद्र शुक्ला कहते हैं कि पिछली सरकारों ने इस तरह का तंत्र नहीं बनाया था और रेलवे के कामकाज अपने हाथों में रखे थे यही वजह थी कि रोजगार पर्याप्त थे लेकिन अब निजीकरण के साथ यह स्थिति नहीं रहेगी। शुक्ला कहते हैं कि उनका संगठन इसका पुरजोर विरोध करेगा और जरूरत पड़ी तो रेल के पहिए थामने के लिए भी संघर्ष किया जाएगा।

 

इसी सगठन सुनील जाट ने बताया कि और भी टिकट काउंटरों को निजी हाथों में देने की तैयारी है लेकिन इसका विरोध करेंगे क्योंकि इस कदम से कर्मचारियों की असुरक्षा बढ़ रही है।


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