बंपर उत्पादन के बावजूद हताश हैं किसान, नहीं मिलते उपज के सही दाम


प्रदेश में जलवायु की विविधता से औसत उत्पादन अलग-अलग है। प्रदेश के पांच फसलीय क्षेत्र में उत्पादन में इस बार घट-घट बढ़ होने का अनुमान है।


ब्रजेश शर्मा
उनकी बात Published On :

इस बार समूचे मध्य प्रदेश में मक्के और धान की बंपर आई फसल को अच्छे दाम मिलने का इंतजार है। अगले हफ्ते से प्रदेश की विभिन्न नामचीन मंडियों में धान, मक्का, सोयाबीन, तिल की जबरदस्त आवक शुरू हो जाएगी।

इस बार समूचे मध्य प्रदेश में बारिश की असामान्य स्थिति के बावजूद धान,सोयाबीन, मक्के की पैदावार बंपर आने की उम्मीद है हालांकि असामान्य बारिश से फसल थोड़ी कमजोर हुई है लेकिन नरसिंहपुर, रायसेन, जबलपुर, सिवनी मंडला, कटनी समेत कई जिलों में अच्छी पैदावार का अनुमान है। प्रदेश के नरसिंहपुर, रायसेन जिले में धान और मक्का बेहतर है।

फिलहाल  फसल की कटाई, गहाई शुरु हो चुकी है। नरसिंहपुर जिले में इस बार 48 हज़ार हैक्टेयर में मक्के की बुवाई है जबकि धान 72 हज़ार हेक्टेयर में है। यह दोनों मुख्य फसलें पिछले साल की तुलना में ज्यादा रकबे में बोई गई है।

इस बार मक्का करीब 8 हज़ार हेक्टर में ज्यादा बोया गया है जबकि धान भी 68से 72 हजार हेक्टर में लगाया गया है। नरसिंहपुर में सोयाबीन जरूर पिछले कुछ वर्षों की स्थिति में 30 हजार हेक्टेयर में सिमटा है फिर भी यह पिछले वर्ष की तुलना में तीन गुना बढ़ा है पिछले वर्ष सोयाबीन का रकबा मात्र 10 हज़ार हेक्टेयर था।

वहीं प्रदेश के अन्य जिलों में धान की भी अच्छी आवक की हो सकती है। जबलपुर में 1 लाख़ 50 हज़ार हेक्टेयर में, कटनी में 1.64 लाख़ हेक्टेयर में बालाघाट में 2.67लाख़ हेक्टेयर में, सिवनी में 1.70लाख़ हेक्टेयर में, नरसिंहपुर में 78 हज़ार हेक्टर में और मंडला में करीब एक लाख 63 हजार हैक्टेयर, डिंडोरी में 1 लाख़ 30 हज़ार हैक्टेयर और छिंदवाड़ा में करीब 32 हज़ार हैक्टेयर में धान की फसल बोई गई है।

इसे मिला कर समूचे मध्य प्रदेश में खरीफ की फसल का रकबा लगभग 145 लाख़ 71 हज़ार हैक्टेयर का है इसमें धान और सोयाबीन की बुवाई 90 फ़ीसदी में है। वहीं मक्का 15.3 लाख हेक्टेयर में है।

अरहर का रकबा

धान का रकबा मध्य प्रदेश में करीब साढे 33 लाख हेक्टर में है, अरहर का रकबा पिछली वर्ष की तुलना में कम हुआ है हालांकि यह स्थिति सभी जिलों में नहीं है। इस बार प्रदेश में लगभग 4 लाख़ 15 हजार हेक्टर में अरहर का रकबा है।

प्रदेश में जलवायु की विविधता से औसत उत्पादन अलग-अलग है। प्रदेश के पांच फसलीय क्षेत्र में उत्पादन में इस बार घट-घट बढ़ होने का अनुमान है। लोगों ने सोयाबीन उत्पादन में हो रहे घाटे के बावजूद उसे बोया है जबकि धान दूसरी मुख्य फसल है। उधर मक्का भी प्रदेश के कुछ जिलों में बारिश की असामान्य स्थिति से कमजोर हुआ है लेकिन नरसिंहपुर, रायसेन, जबलपुर, सिवनी, रीवा समेत समेत कुछ जिलों में उसके बंपर पैदावार होने का अनुमान है लेकिन जल्द ही इसके दाम बेहतर हों, इस उम्मीद में किसान हैं।  हरियाणा, बिहार, गुजरात, दिल्ली सहित कई राज्यों से मक्के की मांग शुरु हो गई है। यहां पिछली दो वर्षों में मक्का आधारित औद्योगिक तंत्र बढ़ा है।

मध्य प्रदेश ग्रेन मर्चेंट एसोसिएशन के जिला सचिव लाल साहब जाट कहते हैं कि मक्के की पूछ परख ज्यादा है इसलिए एक बार फिर खरीद उठेगी। जल्द ही मांग बढ़ने का अनुमान व्यापारियों को है अभी फिलहाल आ रहे मक्के के दाम हजार 1000 – 1200 रु प्रति क्विंटल है। इस सिलसिले में जाट कहते हैं कि अभी मक्का गीला, नमी वाला आ रहा है। एक डेढ़ हफ़्ते बाद अनाज की आवक अच्छी होगी तो इसके दाम 1800-1900 प्रति क्विंटल तक हो जाएंगे।

इसका एमएसपी 2090 प्रति क्विंटल हो गया है जो पिछले वर्ष की तुलना में 128 रुपए प्रति कुंटल बढ़ा है। किसान और व्यापारी कहते हैं कि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य अर्थात एमएसपी नाम के लिए बढ़ी है।

सामान्य धान पिछले वर्ष की तुलना में 143 रुपए बढ़कर 2183 रुपए ,ए ग्रेड की धान भी 2200 रु, मोटे अनाज में ज्वार 210 रुपए प्रति कुंटल से बढ़कर 3180 रुपए, मक्का 128 रुपए बढ़ कर 2090 रुपए, सोयाबीन 300 प्रति क्विंटल से बढ़कर 4600 रु और तिल 805 रुपए बढ़कर 8635 रु है।

इसी परिपेक्ष में पिछले वर्ष की तुलना में लागत भी बढ़ी है, किसान कहते हैं की लागत 44 से 46000 रुपए प्रति हैक्टेयर तक है अगर प्रति हेक्टेयर मक्का 25 से 30 क्विंटल भी निकाला तो भी किसान को ज्यादा कुछ नहीं मिलने वाला। मौजूदा दाम अधिकतम 1200 रु होंगे यह फिलहाल तो घाटे का सौदा ही है।

इसमें किसान की जमीन मिट्टी और श्रम की कीमत फिलहाल नहीं जुड़ी है। समनापुर बरेला के किसान दौलत सिंह पटेल कहते हैं कि यूरिया डीएपी की कीमतें बढ़ी है।

मक्का का बीज 500 रु प्रति किलो खरीदा, बीज महंगा है। इसी बीच अतिवृष्टि तो कभी अल्प दृष्टि से फसल प्रभावित हुई है। इस दौर में जब बारिश नहीं हुई तो 40% बीज मर गया इससे उत्पादन कम हो गया।

वे कहते हैं कि अब किसान को खेत खलियान से अनाज मंडी तक ले जाना भी महंगा हो गया है। पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ने से ट्रैक्टर का किराया भी बढ़ा दिया गया है। एक सोयाबीन उत्पादक किसान नारायण पटेल कहते हैं कि प्रति एकड़ 5 से 10 क्विंटल जाएगा पर फिलहाल खुले बाज़ार में दाम शुरुआत तौर पर 3 से 4000 रु कुंटल ही हो पाएंगे।

सोयाबीन, मक्के की बुआई करने वाले अधिकतर किसान लघु और सीमांत किसान हैं। जिनके पास एक से ढाई एकड़ तक ही जमीन है। उनके लिए रकबा कम होने से लागत बढी ही रहती है और नुकसान होता है।

क्षेत्र में डोंगरगांव के किसान ईश्वर यादव, कम रकबे में खेती से ज्यादा फायदा नहीं हो पाता, लागत और श्रम तो उसी अनुपात में रहता है और उत्पादन प्रभावित होता है। प्रदेश में 27.15% ऐसे छोटे किसान हैं जिनके पास करीब ढाई हेक्टेयर जमीन है जबकि 48.3% सीमांत किसान हैं जिनके पास सिर्फ एक हेक्टर जमीन है। इनके लिए खेती लाभ का धंधा बना पाना मुश्किल है चाहे आप सोयाबीन बोएं या मक्का या फिर धान लगाएं।


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